मानसरोवर घाट पर घाट संस्कृति का हुआ आयोजन…
काशी के घाट भारतीय संस्कृति के महाकाव्य हैं- प्रो श्रीप्रकाश शुक्ल
वाराणसी: अंतरराष्ट्रीय काशी घाटवॉक विश्वविद्यालय द्वारा संवाद सह सांस्कृतिक समारोह के अंतर्गत ‘काशी में घाट संस्कृति’ विषय पर एक आयोजन किया गया. कार्यक्रम में सांस्कृतिक चर्चा के साथ- साथ सांस्कृतिक प्रस्तुतियाँ भी दी गई.
स्वागत वक्तव्य में काशी घाटवॉक विश्वविद्यालय के संस्थापक व प्रतिष्ठित चिकित्सक प्रो. विजयनाथ मिश्र ने काशी के घाटों की सांस्कृतिक महत्ता को बताते हुए कहा कि इन घाटों पर एक ओर संस्कृति के नित्य विहार होता है तो वहीं दूसरी ओर समाज के तमाम उपक्रम अपनी गतिशीलता को प्राप्त करते हैं. यहीं पर नाव खेने वाले मल्लाह हैं तो वहीं अपनी साधना में रत सन्यासी भी हैं जो संसार से विरत हैं, साथ ही अपना संसार चलाने का उपक्रम करने वाले व्यापारी भी इन्हीं घाटों पर मिलेंगे. प्रो.मिश्र ने कहा कि इन घाटों पर कोई किसी पद से सम्बोधित नहीं होता बल्कि सभी घाट वॉकर हैं.
काशी हिंदू विश्वविद्यालय के आचार्य प्रो. श्रीप्रकाश शुक्ल ने कहा कि घाटों को समझना काशी की संस्कृति को सहेजना या समझना है. इस विश्वविद्यालय का प्रमुख लक्ष्य घाटों की संस्कृति को समझना है., ये घाट भारतीय ज्ञान परम्परा के जीवंत दस्तावेज हैं, भारतीय परम्परा का संघनित रूप इन घाटों पर दिखाई देता है,. ये घाट भारतीय संस्कृति के महाकाव्य हैं जहाँ रस, नाट्य और काव्य तीनों का मेल दिखाई देता है. यह घाटों पर तीनों दिन की तीनों बेला अलग-अलग रूपों पर दिखाई देती है, अस्सी पर सुबह और मानसरोवर पर दोपहर, शाम दशाश्वमेध घाट पर अपने अनूठे रूप में विराजती है.
मुख्य अतिथि काशी में देव दीपावली की शुरुआत करने वाले मंगला गौरी मंदिर के महंत नारायण गुरु ने कहा कि घाटवॉक विश्वविद्यालय देव दीपावली की भाँति ही एक ऐसा उपक्रम है जो काशी की सांस्कृतिक विरासत का बोध नई पीढ़ी में जागृत करता है. यह घाट काशी की सांस्कृतिक गतिविधियों का बड़ा केंद्र हैं.
विशिष्ट अतिथि काशी हिंदू विश्वविद्यालय के संगीत एवं मंच कला संकाय में प्रो.विधि नागर ने अपने घाट से जुड़े अनुभवों को काव्यमय शब्दों में सुनाया. इस अनुभव में शरीर के पांचों इंद्रियों के साथ होने वाले दिव्य अनुभवों को बताते हुए कहा कि काशी और गंगा का आकर्षण इतना गहन है कि यहाँ बार-बार आने को मन करता है. गंगा पार से खड़े होकर देखने पर बनारस एक बड़े से प्रेक्षागृह के रूप में दिखाई देता है जहाँ से वह तमाम दृश्य जीवन कोलाहलों से अप्रभावित चलते हुए नज़र आते हैं. काशी के घाट साधना की बड़ी भावभूमि हैं जहाँ से असंख्य कलाकार अपनी साधना में रत रहते हैं. यह घाट इतने आकर्षक हैं कि यहाँ पर आने वाले तमाम साधक कभी बनारस को छोड़कर गए ही नहीं और यहीं होकर रह गए. इन घाटों पर अपने-अपने प्रतिनिधियों के साथ पूरा भारत रमता और बसता है.
नगर निगम के पार्षद जितेंद्र कुशवाहा ने भी इस अवसर पर अपने विचार रखे। कार्यक्रम का संचालन डॉ. विंध्याचल यादव ने किया तथा उदय पाल ने अपना एक गीत भी प्रस्तुत किया।
धन्यवाद ज्ञापन शैलेश तिवारी ने किया।
सांस्कृतिक प्रस्तुति के अंतर्गत प्रसिद्ध लोक कलाकर अष्टभुजा मिश्र द्वारा संत रविदास का भाव अभिनय प्रस्तुत किया गया। कार्यक्रम में राजेंद्र कुमार श्रीवास्तव के निर्देशन में कठपुतली नृत्य की भी भव्य प्रस्तुति दी गयी। जीटीवी की तरफ से ऋतु सिंह की सांस्कृतिक प्रस्तुति हुई और जाह्नवी श्रीवास्तव ने शिव तांडव प्रस्तुत किया। राकेश मिश्रा ने शिव स्तुति की गीत प्रस्तुत किया।देवेंद्र दास व सथियो ने कबीर गायन की प्रस्तुति की।
कार्यक्रम का आयोजन और संयोजन मानसरोवर घाटवॉक की धनावती देवी ने किया। इस कार्यक्रम में कलाकार प्रो मदनलाल, मनीष खत्री,अमिताभ भट्टाचार्य,अनिल गुप्ता, शैलेन्द्र सिंह,अजय शर्मा, रोटी बैंक की टीम, मालवीय मिशन की टीम, सौरभ राय, सत्यप्रकाश मिश्र,, वाचस्पति उपाध्याय, कुबेर तिवारी, छात्र नेता इष्टदेव पाण्डेय, प्रिंस मिश्रा, रिशु उपाध्याय, अनिल मिश्रा, प्रतीक , अप्पू, डॉ. अनिल गुप्ता, उमाशंकर गुप्ता, डॉ. अजय शर्मा, आशुतोष पाठक आदि लोगों की उपस्थिति रही।