Chhadimar Holi: गोकुल में आज खेली जाएगी छड़ीमार होली…

जानें इस परम्परा का इतिहास और महत्व

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Chhadimar Holi: रंग और हुडदंग संग होली का त्यौहार पूरे देश में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है. बात करें यदि कृष्णनगरी मथुरा में होली की तो, यहां होली के दस दिन पहले ही त्यौहार की धूम शुरू हो जाती है. इसके साथ ही 17 मार्च को मनाई गयी लड्डू की होली से शुरू होने वाला होली का कार्यक्रम विभिन्न प्रकार की होलियों को मनाने के साथ ही अंत में हुरंगा के साथ खत्म हो जाता है.

वैसे मथुरा की हर होली ही खास है लेकिन आज गोकुल में छड़ीमार होली जाएगी. वैसे तो छड़ीमार होली पूरी कृष्ण नगरी में खेली जाती है लेकिन इस होली का आयोजन विशेष तौर पर गोकुल में किया जाता है. गोकुल की छड़ीमार होली एक जीवंत परंपरा के वार्षिक उत्सव के तौर पर मनाया जाता है. तो, आइए जानते हैं इस होली को मनाने की पीछे का इतिहास और महत्व…

छड़ीमार होली का क्या है महत्व

22मार्च को यानी आज गोकुल में छड़ीमार होली खेली जा रही है. हिन्दू पंचांग के अनुसार, हर साल फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को गोकुल में छड़ीमार होली खेली जाने की परंपरा है. बताते हैं कि, छड़ीमार होली खेलने की शुरुआत नंदकिले के नंदभवन में ठाकुरजी के समक्ष राजभोग का भोग लगाकर की जाती है. हर साल होली खेलने वाली गोपियां 10 दिन पहले से छड़ीमार होली की तैयारियां शुरू कर देती हैं.

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क्यों खेली जाती है छड़ीमार होली ?

पौराणिक कथाओं में बताया जाता है कि कृष्ण जी बचपन से ही बड़े नटखट स्वभाव के थे, जिसकी वजह से वे बृज की गोपियों को परेशान किया करते थे. कृष्ण की शैतानियों से परेशान होकर गोपियां कृष्ण को सबक सीखाने के लिए उनके पीछें छड़ी लेकर भागती थी. बताते है, गोपियां ऐसा सिर्फ कृष्ण को डराने के लिए करती थी. कहते है कि, इस परंपरा के चलते आज के दिन गोकुल में छड़ीमार होली खेले जाने की परंपरा है, जिसमें लट्ठ की स्थान पर महिलाएं छड़ी का प्रयोग करती है. लट्ठ की जगह छड़ी का इस्तेमाल किया जाता है ताकि बाल गोपाल को चोट न लगे. कहते हैं कि छड़ीमार होली कृष्ण से प्रेम का प्रतीक है.

 

 

 

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