पावर ट्रिक और मनी का संतुलित गेम रहा, गुजरात-हिमाचल का चुनाव

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अनिल कुमार सिंह

ईमानदारी और तटस्थता के साथ यदि देखेंगे तो वह सारे बिंदु दिखेंगे जिन पर गुजरात में रायशुमारी हुई। परिणाम आने के बाद लोगों ने कहा कि नोटबंदी बेअसर रही। सही बात है उसी को मैनेज करने पर तो सारा काला गोरा हो गया इसके बाद भी गुस्सा क्यों रहेगा? बैंक में लाइन लगाना तो आम आदमी की आदत में है वह कोई मुद्दा हो ही नहीं सकता। जीएसटी आजादी का दूसरा जश्न था तो उस पर भला गुजराती क्यों नाराज होगा? हां, जो गुस्सा था टैक्स स्लैब को लेकर उसे चुनावी प्रक्रिया के बीच बहुत ही बारीकी से जीएसटी काउंसिल की मीटिंग कर बड़े पैमाने पर राहत देने की शाही घोषणा कर दी गई। उसका कई दिन प्रचार भी हुआ।

चुनाव आयोग इस ईमानदार कार्रवाई पर चुप्पी साधे रहा। क्या उस फैसले से जनमत प्रभावित नहीं हुआ? माना जाय तो सीधे तौर पर शहरी मतदाता प्रभावित हुआ। सरदार सरोवर बांध को ऐन चुनाव के पहले उद्घाटित कर और यहां बुलेट ट्रेन चलाने की घोषणा कर क्या संदेश दिया? बांध से जुड़ी नहरों ने उन गांवों तक भाजपा को पहुंचाया जहां उसका वोट नहीं था। बुलेट ट्रेन ने शहरी मतदाताओं को सपना दिखाया।ऐसी ही कई घोषणाओं के लिए चुनाव के कार्यक्रम देर से घोषित किए गए? जबकि चुनाव आयोग अलग से गुजरात के चुनाव कार्यक्रम के घोषणा का कोई समीचीन जवाब नहीं दे सका।

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