तरुण तेजपाल: एक तहलका जो ‘कलंक’ बन गया

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सारी दुनिया से सवाल पूछने वाले, बराबरी और सच की लड़ाई लड़ने वाले पत्रकार, जिनके काम की समाज बहुत इज्जत करता है, जब उनमें से ही कोई अपनी महिला सहकर्मियों के साथ दुर्व्यवहार करे तो ये बहुत दुखदायी होता है। 21 नवंबर 2013 से पहले तक ‘तहलका’ पत्रिका के पूर्व एडिटर इन चीफ तरुण तेजपाल पत्रकारिता की दुनिया का एक बड़ा नाम था। 30 साल लंबे करियर में खोजी पत्रकारिता के बादशाह कहे जाने वाले तेजपाल के खुलासे से सरकारें हिल गईं। लेकिन आज तेजपाल खुद पत्रकारिता का एक ‘कलंक’ बन गए हैं।

अर्श से फर्श तक पहुंचने का सफर

अपने पत्रकारीय और प्रबंधकीय तेज से देश-विदेश में अपार ख्याति प्रताप बटोर चुके तरुण तेजपाल के इर्दगिर्द अब अपमान, शर्म, सजा और फजीहत का एक बड़ा घेरा खिंच गया है। तेजपाल वो शख्स हैं जो खोजी पत्रकारिता की दुनिया में पिछले 13 साल से तहलका मचा रहा था। कई सफेदफोश चेहरों को बेनकाब किया। बेईमान नेता हों या रिश्वतखोर अफसर, सबकी रीढ़ की हड्डी कंपाने वाला ये इंसान जब खुद कठघरे में आ खड़ा हुआ है।

जन्म व शिक्षा

तरुण तेजपाल का जन्म 15 मार्च 1963 को पंजाब के जलंधर में हुआ था। पिता सेना में थे। लिहाजा देश के अलग-अलग हिस्सों में रहे और पढ़ाई की। चंडीगढ़ में पंजाब यूनिवर्सिटी से अर्थशास्त्र में ग्रेजुएशन किया और पत्रकारिता की ओर मुड़ गए।

करियर

करीब 30 साल से पत्रकारिता जगत में सक्रिय तेजपाल ने अपने करियर की शुरुआत 1980 के दशक में ‘इंडिया टुडे’ से की। इसके बाद उन्होंने इंडियन एक्सप्रेस, द टेलीग्राफ और आउटलुक में भी काम किया। आउटलुक के वो मैनेजिंग एडिटर भी रहे। मार्च 2000 में तेजपाल ने आउटलुक की नौकरी छोड़ दी और खोजी वेबसाइट ‘तहलका डॉट कॉम’ की शुरुआत की। तहलका में तेजपाल और उनकी टीम ने स्टिंग ऑपरेशन को पत्रकारिता का एक नया हथियार बनाया।

तेजपाल की ‘सनसनी’

वर्ष 2001 में तरुण तेजपाल ने ‘तहलका’ के जरिये भाजपा नेता बंगारू लक्ष्मण को रिश्वत लेते कैमरे में कैद कर तहलका मचा दिया था। उसके बाद मैच फिक्सिंग करते खिलाड़ियों और बुकियों को बेनकाब करना हो या गुजरात दंगों में अपने स्टिंग ऑपरेशन ‘कलंक’ के जरिये माया कोडनानी और बाबू बजरंगी की संलिप्तता दिखाकर उनको सलाखों के पीछे भिजवाना।

ऑपरेशन फॉलेन हीरोज

खोजी वेबसाइट की शुरुआत के साथ ही तेजपाल और उनकी टीम ने तहलका मचाना शुरू कर दिया। ‘तहलका’ ने अपना पहला स्टिंग साल 2000 में किया। नाम था ‘ऑपरेशन फॉलेन हीरोज’ और खोजी कैमरे की जद में था क्रिकेट का ‘फिक्सिंग’, इस खोजी रिपोर्ट ने आने के साथ ही पूरे देश में तहलका मचा दिया। इस स्टिंग ऑपरेशन में क्रिकेट में मैच फिक्सिंग का पहली बार खुलासा हुआ था।

ऑपरेशन वेस्ट एंड

अपनी इस रिपोर्ट में तहलका ने रक्षा सौदों में घूसखोरी का सनसनीखेज खुलासा किया। रक्षा मंत्रालय के अफसर और नेताओं की आपराधिक सांठगांठ का पर्दाफाश किया। तहलका के स्टिंग ऑपरेशन में सेना के अफसर और नेता हथियारों के सौदागर बने पत्रकारों से घूस लेते नजर आए। भाजपा के तत्कालीन अध्यक्ष बंगारू लक्ष्मण कैमरे पर लाख रुपए की रिश्वत लेते कैद हुए और जेल भी भेजे गए। तत्कालीन रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नाडिंस को भी अपनी गद्दी गंवानी पड़ी।

गुजरात दंगों का सच

‘आज तक’ टीवी चैनल और ‘तहलका’ पत्रिका ने ‘ऑपरेशन कलंक’ नाम के एक स्टिंग ऑपरेशन के जरिए 2002 के गुजरात दंगों के सच को सबके सामने ला दिया। ऑपरेशन कलंक में दिखाया गया कि दंगे आरएसएस, वीएचपी और बजरंग दल के बड़े नेताओं द्वारा रची गई सुनियोजित साजिश का परिणाम थे। खुफिया कैमरे पर भाजपा, विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल के कई नेताओं ने गुजरात दंगों में अपनी भूमिका मानी।

टेलीकॉम घोटाला

तहलका का एक और अहम खुलासा 2011 में सामने आया। ये स्टिंग ऑपरेशन दयानिधि मारन और टेलीकॉम घोटाला से जुड़ा था। डीएमके नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री की 700 करोड़ के टेलीकॉम घोटाले में भूमिका का खुलासा करते हुए बताया कि कैसे 2001 के दाम पर ही टेलीकॉम मंत्री रहते हुए मारन ने एयरसेल को लाइसेंस दिलवा दिए।

उत्पीड़न का आरोप

20 नवंबर 2013 को तहलका पत्रिका ने अपने स्टाफ को सूचित किया कि तेजपाल अगले छह महीने के लिए ‘संपादक’ के तौर के तौर पर अपना पद छोड़ रहे हैं, क्योंकि एक महिला सहयोगी ने उन पर यौन उत्पीड़न करने का आरोप लगाया है। गोवा में घटित इस घटना में गोवा पुलिस ने तेजपाल के खिलाफ बलात्कार सहित कई आरोपों में एफआईआर दर्ज की और गैरजमानती वॉरंट भी जारी किया। जिसके बाद 30 नवंबर 2013 को गोवा पुलिस ने तरुण तेजपाल को गिरफ्तार किया। ये अपने तरह का पहला मामला है कि जिस व्यक्ति ने ‘तहलका’ जैसे पत्रिका को खड़ा किया और सफलता की बुलंदियों तक पहुंचाया आज वही व्यक्ति खुद तहलका के लिए ‘त्रासदी’ बना हुआ है।

 

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