आखिर, सदियों से क्यों जल रही है पृथ्वी, जानिए क्या हैं इसके वैज्ञानिक दृष्टिकोण ?

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जैसा कि आप सभी जानते हैं कि हमारे पूरे सौरमंडल में पृथ्वी ही एकमात्र ऐसा ग्रह है जहां मानवीय जीवन मौजूद हैं, जहां असंख्य जीव – जंतुओं और संसाधनों के साथ 7 अरब 94 करोड़ से भी अधिक इंसानों का भागौलिक समावेश जीवन यापन कर रहा है। लेकिन आप ये जानकर हैरान हो जाएंगे कि इसी पृथ्वी से लाखों – करोड़ों मील दूर आसमान में जो सूर्य आप जलते हुए आग के गर्म गोले के रूप में चमकते हुए देखते हैं। दरअसल उतनी ही गर्मी हमारी पृथ्वी में भी समाहित है जो कि आज से लगभग 4.5 अरब साल पहले इसके निर्माण के वक्त से अभी तक बनी हुई है।

जाने, क्यों इतना ज्यादा गर्म रहती है पृथ्वी…

जानकारी के लिए आपको बता दें कि पृथ्वी का निर्माण आज से लगभग 4.5 अरब साल पहले शुरू हो गया है था।

– पृथ्वी का ऊपरी हिस्सा तो भगौलिक स्तिथियों में परिवर्तन और मौसम में बदलाव आने के कारण ठंडा हो गया लेकिन वहीं ज्वालामुखी और भूगभीर्य परिवर्तनों के कारण पृथ्वी का आंतरिक भाग अभी भी बहुत ज्यादा गर्म है या फिर यूं कहें कि सूर्य के ऊपरी सतह जितना गर्म है।

– पृथ्वी की सतह अलग अलग महाद्वीपों के प्लेटों से बनी हुई है, इसकी पपर्टी और बाहरी मेटल मिल कर इस हिस्से का निर्माण करते हैं जिसे हम और आप स्थलमंडल कहते हैं।

– इन्हीं प्लेटों के आपस में टकराने से या फिर टेक्टोनिक गतिविधि करने से भूकंप और ज्वालामुखी के फटने जैसे घटनाएं घटती हैं।

– और इसी तरह प्लेटों की स्तिथि अपना चक्र बदलती है जो कि मेटल के गर्म होने से ही संभव है। जिसके कारण तापमान बढ़ता रहता है।

– जितना ज्यादा आप पृथ्वी के नीचे (भीतरी हिस्से) पर जायेंगे उतना ज्यादा तापमान बढ़ता जाएगा।

– पृथ्वी के अंदर गर्मी के लिए सबसे बड़ा कारक है 4.5 अरब साल पहले इसके निर्माण के समय उत्सर्जित हुई गर्मी से जो कि नीचे ही दब कर रह गई।

– पृथ्वी के आंतरिक भाग में मौजूद गर्मी का दूसरा स्त्रोत्र है रेडियोधर्मी आइसोटोप (रेडियोएक्टिव) जो हमें धरती पर कई जगह अजैविक वस्तु के रूप बिखरे पड़े मिल जाएंगे।

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पृथ्वी पर बढ़ते तापमान के पीछे वैज्ञानिक दृष्टिकोण…

साइंस मैगजीन में छपे एक प्रयोग के अनुसार पृथ्वी के केंद्र में मौजूद लौह अयस्क पर अत्यधिक दबाव डालकर ये देखा गया है कि वो किस तरह बनता और पिघलता है।

– इस प्रयोग से पृथ्वी की गहराई और उसकी परतों के घनत्व के बारे में तो पता चला लेकिन तापमान के संदर्भ में कोई सटीक जानकारी नहीं मिल पाई।

– 1990 के शुरुआती सालों में ये अंदाजा लगाया गया था कि पृथ्वी के केंद्र का तापमान करीब 5000 डिग्री सेंटीग्रेड तक हो सकता है।
ये पुष्टि कर दें कि उक्त आकलन तमाम नतीजों को कंप्यूटर के जरिए गणना करके निकाला गया था।

– फ्रांससी शोध एजेंसी सीआईए के मुताबिक पृथ्वी का मौजूदा तापमान लगभग 5300 डिग्री सेल्सियस है।

 

ये लेख विकास चौबे द्वारा लिखा गया है, विकास महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के पत्रकरिता विभाग के छात्र हैं ।

 

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