पं दीनदयाल उपाध्याय जन्म जयंती : जन्म से लेकर राष्ट्रपुरोधा बनने तक का पूरा सफ़र
दिन था सोमवार, तारीख थी 25 सितम्बर 1916 जब उत्तर प्रदेश के मथुरा जनपद में रहने वाले भगवती प्रसाद उपाध्याय और रामप्यारी उपाध्याय के घर एक बच्चे का जन्म हुआ, जिनका नाम रखा गया ‘दीनदयाल उपाध्याय’। बच्चे के जन्म से घर में खुशियों का माहौल था, सभी लोग दंपति को बधाइयाँ दे रहे थे। बालक दीनदयाल की माता रामप्यारी जी धार्मिक प्रवृत्ति की थीं और पिता भगवती प्रसाद रेलवे में जलेसर रोड स्टेशन में सहायक स्टेशन मास्टर के रूप में कार्यरत थे।
शायद किसी को अंदाजा भी न रहा होगा…….
मध्यमवर्गीय परिवार में जन्मे जिस बच्चे के जन्म पर सभी लोग घर आकर बधाईयां दे रहे थे, उस बालक का जीवन एक दिन इतिहास बनेगा, वह बालक लोगों का आदर्श बन जाएगा, वह आने वाले समय में राष्ट्र निर्माण का प्रणेता बन जाएगा, वह अपनी लगन, जज्बे, कड़ी मेहनत से राष्ट्र का पुरोधा बनकर उभरेगा, शायद उन्हें भी इस बात का अंदाजा भी न रहा होगा।
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कानपुर में ही प्राप्त हुआ डॉ हेडगेवार का सानिध्य
किंतु किसी भी व्यक्ति को आदर्श, इतिहास, प्रणेता, पुरोधा बनने में अपना सम्पूर्ण जीवन लोगों के लिए समर्पित कर देना पड़ता है, शायद इस बात एहसास पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी को शिक्षारत रहने के दौरान ही हो गया था, इसीलिए तो मुश्किल भरे पड़ावों को पार करते हुए जब वह कानपुर में बीए कि पढ़ाई कर रहे थे तभी अपने सहपाठी बालूजी महाशब्दे से प्रेरणा लेकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ गए। इसी दौरान दीनदयाल जी को कानपुर में ही संघ के संस्थापक डॉ हेडगेवार जी का सानिध्य प्राप्त हुआ।
प्रचारक के रूप में बिताया सम्पूर्ण जीवन
दीनदयाल जी को डॉ हेडगेवार जी का सानिध्य प्राप्त होने के उपरांत शायद उन्होंने भी यही विचार बना लिया था कि अब यह जीवन राष्ट्रसेवा, समाजसेवा के लिए ही समर्पित कर देना है। इसीलिए तो पढ़ाई पूरी करते ही दीनदयाल जी ने संघ के द्वितीय वर्ष का प्रशिक्षण पूर्ण किया और आजीवन संघ के प्रचारक के रूप में कार्यरत रहने का संकल्प लिया और अपना सम्पूर्ण जीवन उन्होंने प्रचारक के रूप में बिताया।
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डॉ मुखर्जी ने कहा
जब 21 अक्टूबर 1951 को डॉ श्यामाप्रसाद मुखर्जी की अध्यक्षता में ‘भारतीय जनसंघ’ कि स्थापना हुई तब गुरु जी (गोलवलकर जी) जी कि प्रेरणा से उपाध्याय जी भारतीय राजनीति में आए और जब 1952 में इसका प्रथम अधिवेशन कानपुर में हुआ तब उपाध्याय जी इस दल के महामंत्री बने। इस अधिवेशन के दौरान ‘डॉ मुखर्जी’ उपाध्याय जी की कार्यकुशलता और लगन से इतना प्रभावित हुए कि उन्होंने मंच से ही कहा कि, ‘यदि मुझे दो दीनदयाल मिल जाएं, तो मैं भारतीय राजनीति का नक्शा बदल दूं”।
चुने गए अध्यक्ष
इसके बाद से दिन दोगुनी रात चौगुनी के हिसाब से प्रगति करते हुए पं दीनदयाल जी 1967 में हुए कालीकट अधिवेशन में भारतीय जनसंघ के अध्यक्ष निर्वाचित हुए। हालांकि अध्यक्ष निर्वाचित होने के महज 43 दिन बाद ही उनकी हत्या कर दी गई। इस तरह से 10/11 फरवरी 1968 कि रात्रि में राष्ट्रपुत्र पं दीनदयाल जी इस धरा से गोलोकवासी हो गए।
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