एक और मांझी…

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जहां आसमां को ज़िद है बिजलियां गिराने की, हमे भी ज़िद है वहीं आशियां बनाने कीआंधियों से कोई कह दो औकात में रहेंएक तिनके ने की है हिम्मत सर उठाने की।

अगर चींटी दीवार पर चढ़ने से पहले उसकी ऊंचाई की तुलना अपने नन्हें पैरों से करने लगे, तो कभी-भी वो दीवार पर चढ़ने का दुस्साहस न करे। लेकिन ये भी सच है कि साहस करने से तो सफलता मिलती है, लेकिन दुस्साहस करने से आप इतिहास का हिस्सा बन जाते हैं। जैसे सिकंदर ‘महान’ और परमवीर अब्दुल हमीद बन गए।

कुछ ऐसा ही दुस्साहस झारखंड निवासी 83 वर्षीय सिमोन उरांव ने पांच दशक पहले किया था, उन्होंने गांव में तीन बांध बना डाले, जिसके कारण आज उनके गांव में ही नहीं, आस-पास के गांवों में भी पानी की कोई किल्लत नहीं रही।manjhiइस साल के पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित ‘सिमोन बाबा’ का ये अद्भुत कारनामा किसी भी साहस से परे है। सिमोन बाबा की हिम्मत और हौसले ने जब ज़िद बनना शुरू किया, तब उन्होंने पानी को तरसते अपने गांव में सिंचाई का पानी पहुंचाने की ठान ली।

पड़हा राजा पद्मश्री सिमोन उरांव का रांची में भव्य स्वागत

पद्मश्री सम्मान से नवाजे जाने के बाद शनिवार को दिल्ली से लौटे पड़हा राजा सिमोन उरांव का रांची रेलवे स्टेशन पर अखिल भारतीय आदिवासी महासभा के बैनरतले ढोल-नगाड़े के साथ स्वागत किया गया।manjiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiइसके बाद एक्सआइएसएस तक की यात्रा उन्होंने खुली जीप पर पूरी की़  छांव के लिए बांस की छतरी ‘मदचातोम’ लगायी गयी थी़।  पूरे रास्ते आदिवासी गीत व पारंपरिक  नृत्य से उनकी आगवानी की गयी़।

ज़िद ने हिम्मत दी

अनपढ़ सिमोन के पास न तो कोई तकनीक थी, और न ही हाथ में पैसे। उनके पास कुछ था, तो सिर्फ़ ज़िद और कुछ कर गुजरने का ज़ज़्बा। यह ज़िद सूखे खेतों तक पानी पहुंचाने की थी। उन्होंने नारा दिया, ‘जमीन से लड़ो, मनुष्य से नहीं’manjhiiiiiiiiiiiiiiii

रांची में रहने वाले सिमोन उरांव ने अपने हौसले पर उम्र को कभी हावी होने नहीं दिया। अब भी कुदाल लेकर कभी खेतों में नज़र आते हैं, तो कभी गांव वालों का झगड़ा सुलझाते हुए। बाबा के नाम से प्रसिद्ध सिमोन ने वह कारनामा कर दिखाया, जो सरकार करोड़ों रुपए खर्च करने के बाद भी नहीं कर पाई।

अब साल में तीन फ़सलें उगाई जाती हैं

आज उनके बनाए बांधों से पांच गांवों की सूरत बदल गई है। एक ब्लॉक की यह कहानी पूरे झारखंड के लिए मिसाल बन गई। सिंचाई सुविधा के अभाव में जहां एक फ़सल उगाना मुमकिन नहीं था, वहां साल में तीन फ़सलें उगाई जाने लगीं। वो जब कुदाल लेकर अकेले निकल पड़े, हर कोई उन पर हंसता था, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। धीरे-धीरे ग्रामीणों का साथ मिला और ये शुरुआत एक मिशन बन गई।

उन्होंने छोटी-छोटी नहरों को मिलाकर तीन बांध बना डाले। आज इन्हीं बांधों से करीब 5000 फीट लंबी नहर निकाल कर खेतों तक पानी पहुंचाया जा रहा। इसके अलावा जब ग्रामीण हाथियों के आंतक से त्रस्त थे, बाबा ने युवाओं को एकत्र किया। हर युवक को 20-20 रुपए देकर रात का पहरा कराया और वन विभाग के सहयोग से हाथियों को खदेड़ा।

हर मर्ज़ का इलाज़ करते हैं सिमोन बाबा

उन्होंने ग्रामीणों की आर्थिक समस्याएं दूर करने के लिए फंड बनाया। बैंक में खाता खुलवाया। अब ग्रामीणों को ज़रुरत के समय इसी फंड से 10-10 हजार रुपए की सहायता दी जाती है। किसी गरीब की बेटी की शादी हो, तो दो-दो क्विंटल चावल भी दिया जाता है। वे देशी जड़ी-बूटी से रोगियों का इलाज भी करते हैं।

गांव में किसी प्रकार का विवाद हो, तो सुलझाने के लिए बाबा को ही बुलाया जाता है। आज दुनिया भर में उनकी इस हिम्मत की चर्चा हो रही है। सच ही कहा गया है, ‘किसने कहा आसमान में सुराख नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारों…

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