बरसी पर खास : एक छत जहां बसते हैं राम और अल्लाह साथ-साथ

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यूं तो ईश्वर आस्था और विश्वास का रूप है लेकिन अपने देश में ईश्वर की परिभाषा ही बदल गई है। यहां ईश्वर को  आस्था और विश्वास से न जोड़ कर सीधे धर्म से जोड़ दिया जाता है। कहते हैं ईश्वर एक है …लेकिन धर्म ने ईश्वर को भी बांट दिया है। राम और अल्लाह के नाम पर तलवारें खिंच जाती हैं। इंसान मरने और मारने पर तूल जाता है। कुछ ऐसा ही मामला सालों से चल रहा है अयोध्या में।हम बात कर रहे हैं अयोध्या विवाद की। अयोध्या नाम सुनते ही सीधे ध्यान अयोध्या विवाद पर जाता है। देश का बच्चा बच्चा इस विवाद से भली प्रकार से वाकिफ है। कल अयोध्या विवाद की सालगिरह है। इस मौके आपको बताते है क्या था पूरा मामला।

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1528 में मस्जिद का निर्माण हुआ था। कहा जाता है कि अयोध्या में मस्जिद का निर्माण हुआ। कहा जाता है कि मुगल सम्राट बाबर ने यह मस्जिद बनवाई थी। इस कारण इसे बाबरी मस्जिद के नाम से जाना जाता था। हिंदू उस स्थल को अपने आराध्य भगवान राम का जन्मस्थान मानते हैं और वहां राम मंदिर बनाना चाहते हैं। 1853 में  पहली बार अयोध्या में सांप्रदायिक दंगा हुआ। इसके बाद से झगड़ों का सिलसिला है कि थमने का नाम नहीं ले रहा। कभी धर्म के नाम पर तो कभी आस्था के नाम पर। ये विवाद इतना तूल पकड़ चुका था कि कब ये मुद्दा राजनीतिक बन गया कोई न समझ पाया। हर नेता इस  मुद्दे को उछाल कर राजनीतिक रोटी सेकने लगा, ये सिलसिला अभी तक जारी है।

 कब कब क्या हुआ

1859 में  ब्रितानी शासकों ने विवादित स्थल पर बाड़ लगा दी और परिसर के भीतरी हिस्से में मुसलमानों को और बाहरी हिस्से में हिंदुओं को प्रार्थना करने की अनुमति दे दी। 1949 में  भगवान राम की मूर्तियां मस्जिद में पाई गईं। कथित रूप से कुछ हिंदुओं ने ये मूर्तियां वहां रखवाई थीं। मुसलमानों ने इस पर विरोध व्यक्त किया और दोनों पक्षों ने अदालत में मुकदमा दायर कर दिया। सरकार ने इस स्थल को विवादित घोषित करके ताला लगा दिया। 1984 में  कुछ हिंदुओं ने विश्व हिंदू परिषद के नेतृत्व में भगवान राम के जन्मस्थल को मुक्त करने और वहां राम मंदिर का निर्माण करने के लिए एक समिति का गठन किया। बाद में इस अभियान का नेतृत्व भाजपा के प्रमुख नेता लालकृष्ण आडवाणी ने संभाल लिया। 1986 में  फैजाबाद के जिला मजिस्ट्रेट ने हिंदुओं को प्रार्थना करने के लिए विवादित मस्जिद के दरवाजे पर लगा ताला खोलने का आदेश दिया। मुसलमानों ने इसके विरोध में बाबरी मस्जिद संघर्ष समिति का गठन किया।

6 दिसंबर को विवादित ढांचे को ध्वस्त कर दिया

1989 में विश्व हिंदू परिषद ने राम मंदिर निर्माण के लिए अभियान तेज किया और विवादित स्थल के नजदीक राम मंदिर की नींव रखी। इसके बाद 1990 में  विश्व हिंदू परिषद के कार्यकर्ताओं ने विवादित ढांचे को कुछ नुकसान पहुंचाया। तत्कालीन प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने वार्ता के जरिए विवाद सुलझाने के प्रयास किए मगर अगले वर्ष वार्ताएं विफल हो गईं। 1992 में  विश्व हिंदू परिषद, शिवसेना और भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ताओं ने 6 दिसंबर को विवादित ढांचे को ध्वस्त कर दिया। इसके परिणामस्वरूप देश भर में हिंदू और मुसलमानों के बीच सांप्रदायिक दंगे भड़क उठे जिसमें 2000 से ज्यादा लोग मारे गए। 2002 जनवरी में अयोध्या विवाद सुलझाने के लिए प्रधानमंत्री वाजपेयी ने अयोध्या समिति का गठन किया।

नेता सरकार को मंदिर परिसर से बाहर शिलाएं सौंपेंगे

वरिष्ठ अधिकारी शत्रुघ्न सिंह को हिंदू और मुसलमान नेताओं के साथ बातचीत के लिए नियुक्त किया गया। फरवरी में  विश्व हिंदू परिषद ने 15 मार्च से राम मंदिर निर्माण कार्य शुरू करने की घोषणा कर दी। सैंकड़ों हिंदू कार्यकर्ता अयोध्या में इकठ्ठे हुए। अयोध्या से लौट रहे हिंदू कार्यकर्ता जिस रेलगाड़ी में यात्रा कर रहे थे, उस पर गोधरा में हुए हमले में 58 कार्यकर्ता मारे गए। 13 मार्च में सर्वोच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा कि अयोध्या में यथास्थिति बरकरार रखी जाएगी। 15 मार्च में  विश्व हिंदू परिषद और केंद्र सरकार के बीच इस बात को लेकर समझौता हुआ कि विहिप के नेता सरकार को मंदिर परिसर से बाहर शिलाएं सौंपेंगे। 22 जून में  विश्व हिंदू परिषद ने मंदिर निर्माण के लिए विवादित भूमि के हस्तांतरण की मांग उठाई। 2003 जनवरी में रेडियो तरंगों के जरिए ये पता लगाने की कोशिश की गई कि क्या विवादित राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद परिसर के नीचे किसी प्राचीन इमारत के अवशेष दबे हैं। कोई पक्का निष्कर्ष नहीं निकला।

कथित भूमिका के मामले में अदालत में तलब किया गया

अप्रैल में  इलाहाबाद हाइकोर्ट के निर्देश पर पुरातात्विक सर्वेक्षण विभाग की खुदाई में मंदिर के अवशेष मिले हैं। मई में सीबीआइ ने 1992 में अयोध्या में ढांचा गिराए जाने के मामले में उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी सहित आठ लोगों के खिलाफ पूरक आरोपपत्र दाखिल किए। जून में  कांची पीठ के शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती ने मामले को सुलझाने के लिए मध्यस्थता की। 2005 जनवरी में  लालकृष्ण आडवाणी को अयोध्या में छह दिसंबर 1992 को ढांचा विध्वंस में उनकी कथित भूमिका के मामले में अदालत में तलब किया गया।

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28 जुलाई में लालकृष्ण आडवाणी पर रायबरेली की एक अदालत ने आरोप तय किए। 2006-20 अप्रैल में  कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने लिब्रहान आयोग के समक्ष लिखित बयान में आरोप लगाया कि ढ़ांचे को ढहाया जाना सुनियोजित षडयंत्र का हिस्सा था और इसमें भाजपा, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ, बजरंग दल और शिवसेना की मिलीभगत थी। जुलाई में  विवादित स्थल पर बने अस्थाई राम मंदिर की सुरक्षा के लिए बुलेटप्रूफ कांच का घेरा बनाए जाने का प्रस्ताव किया। 2009-30 जून में ढांचा ध्वंस मामले की जांच के लिए गठित लिब्रहान आयोग ने 17 वर्षों के बाद अपनी रिपोर्ट प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को सौंपी। सात जुलाई में  उत्तर प्रदेश सरकार ने एक हलफनामे में स्वीकार किया कि अयोध्या विवाद से जुड़ी 23 महत्वपूर्ण फाइलें सचिवालय से गायब हो गई हैं।

24 सितम्बर में  हाईकोर्ट लखनऊ के तीन जजों की बेंच ने फैसला सुनाया…

24 नवंबर में  लिब्रहान आयोग की रिपोर्ट संसद के दोनों सदनों में पेश। आयोग ने अटल बिहारी वाजपेयी और मीडिया को दोषी ठहराया और नरसिंह राव को क्लीन चिट दी। 2010-26 जुलाई मे  राम जन्मभूमि और बाबरी मस्जिद विवाद पर सुनवाई पूरी हुई। 8 सितंबर को  अदालत ने अयोध्या विवाद पर 24 सितंबर को फैसला सुनाने की घोषणा की। 24 सितम्बर में  हाईकोर्ट लखनऊ के तीन जजों की बेंच ने फैसला सुनाया जिसमें मंदिर बनाने के लिए हिंदुओं को जमीन देने के साथ ही विवादित स्थल का एक तिहाई हिस्सा मुसलमानों को मस्जिद बनाने के लिए दिए जाने की बात कही गयी। मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले पर स्थगनादेश दे दिया। 2017-21 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने मध्यस्थता की पेशकश की। चीफ जस्टिस जेएस खेहर ने कहा कि अगर दोनों पक्ष राजी हों तो वह कोर्ट के बाहर मध्यस्थता करने को तैयार हैं।

तीन मुस्लिम मिलकर कर सिलते है राम लला के कपड़े

राम जन्मभूमि से जुड़े विवाद के बारे में सब जानते हैं, लेकिन शायद ही कोई इस बात से वाकिफ हो कि पिछले दो दशकों से भी ज्यादा समय से राम लला का वस्त्र तैयार करने से लेकर रोशनी और सुरक्षा की जिम्मेदारी तीन मुस्लिम निभा रहे हैं। जब कभी आंधी या तेज बारिश की वजह से कंटीले तार टूट जाते हैं तो लोक निर्माण विभाग अब्दुल वाहिद को याद करता है। वहीं, जब राम लला के लिए कपड़े की जरूरत पड़ती है तो सादिक अली उनके लिए कुर्ता, सदरी, पगड़ी और पायजामे तैयार करते हैं। इन दोनों के साथी महबूब आयोध्या के अधिकतर मंदिरों में चौबीसों घंटे बिजली की वयवस्था की जिम्मेदारी निभाते हैं।

किराये के तौर पर प्रति माह 70 रुपये का भुगतान करना होता है

‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक, अब्दुल, सादिक और महबूब वर्षों से राम लला मंदिर के लिए अपनी सेवाएं दे रहे हैं। अब्दुल वाहिद को मंदिर की सुरक्षा चाक-चौबंद रखने में सहयोग करने के लिए प्रतिदिन 250 रुपये मिलते हैं। वह बताते हैं कि यह काम करके उन्हें बहुत खुशी मिलती है। सादिक का कहना है कि वह राम जन्मभूमि मंदिर के मुख्य पुरोहित के लिए भी कपड़े तैयार करते हैं, लेकिन उन्हें सबसे ज्यदा संतुष्टि राम लला के लिए वस्त्र तैयार करने में मिलती है।

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वह बताते हैं कि ईश्वर सबके लिए एक है। बकौल सादिक, उन्होंने राम मंदिर-बाबरी मस्जिद विवाद के सभी पक्षकारों के लिए कपड़े तैयार किए हैं। इनमें हनुमानगढ़ी मंदिर के प्रमुख रामचंद्र दास परमहंस भी शामिल रहे हैं। सादिक बताते हैं कि वह और उनका बेटा पिछले 50 वर्षों से कपड़े सिलने का काम कर रहे हैं। सत्तावन वर्ष पुरानी ‘बाबू टेलर्स’ हनुमानगढ़ी मंदिर की जमीन पर ही है, जिसके लिए किराये के तौर पर प्रति माह 70 रुपये का भुगतान करना होता है।

अयोध्या में शांति और भाईचारे की परंपरा जारी रहेगी

वाहिद ने कहा, ‘मैंने वर्ष 1994 से काम करना शुरू किया था। उस वक्त मैं अपने पिता से बिजली का काम सीख रहा था। मैं एक भारतीय हूं और हिंदू मेरे भाई हैं। वे कानपुर से बिजली के तार और अन्य सामग्री लाते हैं। मैं उसे फिट करता हूं। ऐसा करके मैं गर्व का अनुभव करता हूं।’ वाहिद वर्ष 2005 के आतंकी हमले को याद करते हुए बताते हैं कि आतंकी किसी धर्म को नहीं जानते हैं। मेरी तरह ही सीआरपीएफ के जवान और पुलिसकर्मी भी चौबीसों घंटे काम करते रहते हैं। फैजाबाद आयुक्त की ओर से राम जन्मभूमि की निगरानी की जिम्मेदारी निभाने वाले बंसी लाल मौर्य को उम्मीद है कि आने वाले समय में भी अयोध्या में शांति और भाईचारे की परंपरा जारी रहेगी।

(साभार)

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