Wrong Signal! से बिछा लाशों का ढेर, ‘कवच’ होता तो भी नहीं रुकता पटरियों पर मौत का तांडव

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शुक्रवार को ओडिशा के बालासोर जिले में पटरियों पर मौत का तांडव घंटों चला। एक गलत सिगनल ने सैंकड़ों यात्रियों को मौत के मुंह में ढकेल दिया। पटरियों पर मौत का मंजर इतना खौफनाक था कि जिसने भी देखा उसकी रूह कांप गई। 128 किमी प्रति घंटा की गति से चल रही ट्रेन जब बेपटरी हुई तो अपने साथ बाकी दो ट्रेनों को भी बेपटरी कर दिया। इस हादसे में अब तक 288 लोगों की मौत हो चुकी है जबकि 1,100 यात्री घायल हैं, जो अस्पताल में मौत की दास्तां को याद कर अभी भी सदमें में हैं।

आखिर इन मौतों के लिए कौन जिम्मेदार है, इसकी जवाबदेही में पूरा शासन-प्रशासन एक-दूसरे की ओर निहारता दिख रहा है। कोई कवच नहीं होने की बात कह रहा है तो कोई सिगनल वापस लेना वजह बता रहा है। अब बात आती है कि अगर वहां कवच होता तो क्या हादसा टल जाता ? यहां हम इस कवच के बारे में आपको बताएंगे और ये भी कि कैसे ये ट्रेनों की रक्षा करता है।

इस तरह बनी तीनों ट्रेने मौत का कुआं

ओड़िसा में बालासोर के बहानगा बाजार स्टेशन के पास हुआ रेल हादसा इस साल का तीसरा सबसे बड़ा रेल हादसा है। सिगनल देने के बाद सिगनल वापस लेने के बाद आसमंजस में आकर 128 किमी प्रति घंटा की स्पीड से चल रही कोरोमंडल एक्सप्रेस की कई बोगियां पटरी से उतर गई और लूप में चली गईं। जिससे ट्रेन के डब्बे पहले से खड़ी मालगाड़ी से टकराई और ट्रेने के कई डिब्बे पटरी से डीरेल हो गए। इसी बीच 116 किमी प्रति घंटा से चल रही बेंगलुरू-हावड़ा सुपरफास्ट एक्सप्रेस भी अगले ट्रैक पर आ रही थी। कोरोमंडल एक्सप्रेस ट्रेन के बेपटरी डिब्बों से वो भी टकरा गई और इस तरह से तीनों ट्रेनों ने पटरियों पर मौत का त्रिकोण बना दिया, जिसमें फंस कर कई यात्रियों की मौत हो गई।

इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग में बदलाव से हुआ हादसा

इस विभीर्त्स हादसे के बाद से ही केंद्रीय रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव घटनास्थाल पर ही मौजूद हैं। रेल मंत्री ने आज फिर घटनास्थल से एक बयान जारी किया है। रेल मंत्री ने बताया कि उन्होंने हादसे की वजह का पता लगा लिया है। केंद्रीय रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा कि रेलवे सुरक्षा आयुक्त ने मामले की जांच की है। हादसे के कारण का पता लग गया है और इसके लिए जिम्मेदार लोगों की पहचान भी कर ली गई है। इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग में बदलाव के कारण यह दुर्घटना हुई है।

कवच होता तो भी नहीं टलता हादसा

भयानक हादसे के बाद कवच-एंटी कोलिशन टेक्नोलॉजी की चर्चा एक बार फिर जोर पकड़ने लगी है। ‘कवच‘ एक टक्कर रोधी तकनीक है। दावा किया जाता है कि ये तकनीक इतनी सटीक है कि अगर दो ट्रेनें पूरी रफ्तार में आमने-सामने आ जाएं तो भी टक्कर नहीं होगी और इससे अगले 5 किलोमीटर के दायरे में सभी ट्रेन बंद हो जाएंगी। लेकिन फादर ऑफ वंदे भारत एक्सप्रेस कहे जाने वाले सुधांशु मणि का कहना है कि कवच इस दुर्घटना को नहीं रोक सकता था। यहां ये समझना होगा कि 120 किलोमीटर प्रति घंटे रफ्तार से दौड़ रही कोरोमंडल एक्सप्रेस में अगर कवच लगा भी होता तो अचानक लूप लाइन में आ जाने पर वह ट्रेन 5 सेकेंड में रोकने में नाकाम रहता।

क्या है रेलवे का कवच

कवच भारतीय रेलवे का स्वचालित सुरक्षा प्रणाली सिस्टम है, जिसके जरिए रेलवे ट्रेन हादसों को रोकने का प्लान बना रही है। दरअसल, कवच लोकोमोटिव में स्थापित इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों और रेडियो फ्रीक्वेंसी आइडेंटिफिकेशन की एक ऐसी प्रणाली है जो रेलवे के सिग्नल सिस्टम के साथ साथ पटरियों पर दौड़ रही ट्रेनों की स्पीड को भी नियंत्रित करती है। इसी के जरिए रेल हादसों पर लगाम लगाने की बात कही जा रही है। कोरोमंडल ट्रेन हादसे को लेकर रेलवे अधिकारियों की ओर से कहा जा रहा है कि इस ट्रेन में कवच सिस्टम इंस्टॉल नहीं था। यानी अगर इस ट्रेन में ये सिस्टम इंस्टॉल होता तो शायद यह एक्सीडेंट नहीं होता।

ऐसे काम करता है कवच सिस्टम

कवच एक ऐसा सिस्टम है जिसे हर स्टेशन पर एक किलोमीटर की दूरी पर इंस्टॉल किया जाता है, इसके साथ ही इसे ट्रेन, ट्रैक और रेलवे सिग्नल सिस्टम में भी इंस्टॉल किया जाता है। यह पूरा सिस्टम एक दूसरे कंपोनेंट्स से अल्ट्रा हाई रेडियो फ्रिक्वेंसी के जरिए कम्युनिकेट करता है।

लूप लाइन क्या है

स्टेशन क्षेत्र में बनी ‘लूप लाइन’ का उद्देश्य परिचालन को सुगम करने के लिए अधिक ट्रेनों को समायोजित करना होता है। यह आमतौर पर 750 मीटर लंबी होती है ताकि लंबी मालगाड़ी का पूरा हिस्सा उस पर आ जाए।

क्यों उठा हादसे के बाद कवच का विषय

दरअसल, सुधांशु मणि ने कहा है कि पहली दृष्या में ये सिग्नल फेल होने का मामला नहीं लगता। इसका मूल कारण पहली ट्रेन का पटरी से उतरना लगता है। इसके साथ ही उन्होंने सवाल उठाते हुए कहा कि सरकार को जांच करनी चाहिए कि पहली ट्रेन पटरी से क्यों उतरी। वहीं, सूत्रों ने संकेत दिया है कि हादसे का संभावित कारण सिग्नल में गड़बड़ी होना है। प्रारंभिक जांच में पता चला है कि ट्रेनों की टक्कर रोकने वाली ‘कवच’ प्रणाली इस मार्ग पर उपलब्ध नहीं थी।

 

घायलों से भरा अस्पताल

रेल हादसे के बाद बालासोर जिला अस्पताल और सोरो अस्पताल में बड़ी संख्या में घायलों को लाया गया। इन अस्पतालों में कमरे से लेकर गैलरी तक घायलों से भरे हैं। अधिकारियों ने बताया कि पुलिसकर्मी व स्थानीय लोग स्वेच्छा से अस्पतालों में रक्तदान कर रहे हैं। अस्पताल के मुर्दाघर में शवों का ढेर लगा हुआ है।

 

रेल हादसे के आंतरिक बिंदु

1.  अधिकारियों ने बताया कि बचाव अभियान में 1,200 कर्मियों के अलावा 200 एंबुलेंस, 50 बस और 45 सचल स्वास्थ्य इकाइयां दुर्घटनास्थल पर काम कर रही हैं। वायुसेना ने चिकित्सकीय दलों के साथ दो हेलीकॉप्टर भेजे।

2.  हादसे के बाद 90 ट्रेनों को रद्द किया गया, 46 ट्रेनों के मार्ग में परिवर्तन किया गया, जबकि 11 ट्रेनों को उनके गंतव्य से पहले रोक दिया गया। प्रभावित ट्रेनों में ज्यादातर दक्षिण और दक्षिण-पूर्व रेलवे की हैं।

3.  रेलवे ने मृतकों के परिजनों को 10 लाख, गंभीर रूप से घायलों को दो लाख रुपये और अन्य घायलों को 50,000 रुपये की अनुग्रह राशि देने की घोषणा की है।

 

भारतीय रेल इतिहास की तीसरी सबसे भीषण दुर्घटना

6 जून, 1981

बिहार में पुल पार करते समय बागमती नदी में गिर गयी थी एक ट्रेन, 750 से ज्यादा यात्रियों की हुई थी मौत।

20 अगस्त, 1995

उत्तर प्रदेश में पुरुषोत्तम एक्सप्रेस फिरोजाबाद के पास खड़ी कालिंदी एक्सप्रेस से टकरा गई थी, लगभग 305 यात्री मारे गए थे।

2 जून, 2023

यह इस साल का तीसरा बड़ा रेल हादसा है। इस हादसे में कोरोमंडल एक्सप्रेस ट्रेन पहले से लूप लाइन में खड़ी मालगाड़ी और बगल की ट्रैक पर आ रही बेंगलुरू-हावड़ा सुपरफास्ट एक्सप्रेस से टकरा गई। हादसे में अब तक 288 लोगों की मौत होने की जानकारी मिली है। 1100 यात्री घायल हुए हैं। मृतकों की संख्या बढ़ भी सकती है।

 

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