अंतर्राष्ट्रीय गिद्ध जागरूकता दिवस पर कार्यशाला का आयोजन

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अंतर्राष्ट्रीय गिद्ध जागरूकता दिवस की पूर्व संध्या पर ए.जे.एस. एकेडेमी के तत्त्वावधान में कार्यशाला का आयोजन किया गया। कार्यशाला में मुख्य वक्ता के रूप में वन्यजीव विशेषज्ञ डॉ. जितेंद्र शुक्ला ने देश में गिद्धों की लगातार घटती पर चिंता जताई। एल.डी.ए. पराग रोड स्थित ए.जे.एस. एकेडेमी के सभागार में आयोजित कार्यशाला को सम्बोधित करते हुए वन्यजीव विशेषज्ञ डॉ. जितेंद्र शुक्ल ने कहा कि भारत में 90 के दशक में गिद्धों की कुल संख्या लगभग 40 लाख थी। वर्तमान में इनकी संख्या कुछ हजार ही बची है। यह निश्चय ही गंभीर चिंता का विषय है।

डॉ. शुक्ल ने बताया कि जीवो की अंतर्राष्ट्रीय संस्था आईयूसीएन के द्वारा गिद्धों को गंभीर संकटग्रस्त प्रजाति की श्रेणी में सूचीबद्ध किया गया है।इसका मतलब है कि यह कभी भी समाप्त हो सकते हैं। पारिस्थितिकी तंत्र के अंतर्गत आहार श्रृंखला अंतर्गत गिद्ध सर्वोच्च शिखर पर होते हैं। वातावरण में होने वाले रासायनिक प्रदूषण भोज्य पदार्थों की कमी, लिंगानुपात में कमी और आवास के नष्ट होने के प्रति यह संवेदी होते हैं।

उन्होंने बताया कि गिद्धों की संख्या में गिरावट की शुरुआत 1980 दशक के आरंभिक वर्षों में हुई, जिसका कारण मवेशियों को दी जाने वाली दर्द निवारक दवा डाइक्लोफिनेक थी। इस दवा के देने के 72 घंटे के अंदर पशु की मृत्यु हो जाने पर यह दवा पशुओं के शरीर में रहती थी। उन मरे हुए पशुओं को जब गिद्ध खाते थे तो यह दवा उनके शरीर में जाकर उनकी किडनी पर दुष्परिणाम डालती थी। फलस्वरूप किडनी के खराब होने से गिद्धों की अकाल मृत्यु होने लगी। यह तथ्य पाकिस्तान में जीवो के संरक्षण के लिए कार्यरत अमेरिकी संस्थान ने बताएं। जिसके फलस्वरूप भारत सरकार ने डाइक्लोफिनेक को प्रतिबंधित कर दिया तथा इसके स्थान पर मेलाक्सी कैम दवा को अनुमति दी जो दुष्प्रभाव नहीं डालती थी।

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डॉ.शुक्ल ने बताया कि भारत के सुदूरवर्ती गांवों और कस्बों में आज भी डाइक्लोफिनेक का प्रयोग हो रहा है, जो गिद्धों के जीवन के लिए संकटदायी है। अतः जब तक डाइक्लोफिनेक के दुष्परिणाम आम जनमानस तक नहीं बताए जाएंगे तब तक गिद्धों के जीवन पर प्रश्न चिन्ह लगा रहेगा। उल्लेखनीय है कि गिद्धों के संरक्षण एवं संवर्धन के लिए संपूर्ण विश्व में सितंबर माह के प्रथम शनिवार को अंतर्राष्ट्रीय गिद्ध जागरूकता दिवस मनाया जाता है। इसकी शुरुआत अफ्रीकी देशों से हुई। इसका मुख्य उद्देश्य गिद्धों की समस्त प्रजाति का संरक्षण करना है। अंतर्राष्ट्रीय गिद्ध जागरूकता दिवस की पूर्व संध्या पर आयोजित कार्यशाला में गिद्धों के संरक्षण के लिए निबंध प्रतियोगिता का आयोजन भी विद्यार्थियों के मध्य किया गया।

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