नागा साधु महाकुंभ में ही क्यों आते हैं नजर? जानें इसके पीछे का रहस्य…
महाकुंभ मेला धार्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है, जहां विभिन्न अखाड़ों के साधु-संत एकत्रित होते हैं. इन साधुओं में एक विशेष समूह नागा बाबा का होता है, जो केवल कुंभ स्नान के समय ही दिखाई देते हैं. नागा बाबा हिंदू धर्म के साधु वर्ग का एक अहम हिस्सा होते हैं, जो अपनी कठोर तपस्या, नग्न रहने की आदत और युद्ध कला में निपुणता के लिए प्रसिद्ध हैं. वे विभिन्न अखाड़ों से जुड़े होते हैं और सनातन परंपरा के साधु-संन्यासी होते हैं, जो जीवन को वैराग्य और आध्यात्मिक साधना में समर्पित कर देते हैं. कुंभ मेला जो हर 12 साल में एक बार आयोजित होता है, उनके लिए एक विशेष आध्यात्मिक अवसर है और महाकुंभ के शाही स्नान का बेसब्री से इंतजार किया जाता है.
महाकुंभ मेले में नागा बाबा क्यों होते हैं मौजूद?
नागा बाबाओं का जीवन समाज से अलग और एकांत में रहता है. वे साधना के उद्देश्य से लोगों से दूर रहते हैं और केवल विशेष अवसरों पर, जैसे कुंभ मेले, में ही प्रकट होते हैं. नागा बाबा शिव के परम भक्त होते हैं और कुंभ मेला उनके लिए एक महत्वपूर्ण अवसर होता है. इस दौरान वे विभिन्न अखाड़ों के साथ मिलकर परंपराओं, ज्ञान और साधना का आदान-प्रदान करते हैं. कुंभ मेले में गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम में शाही स्नान को अत्यधिक महत्व दिया जाता है, जिसे आत्मा के शुद्धिकरण और मोक्ष की प्राप्ति का माध्यम माना जाता है.12 साल में एक बार यह स्नान होता है, जो नागा बाबाओं के तप और साधना को सिद्ध करता है.
नागा बाबा की विशेषताएं
-नागा बाबा आमतौर पर नग्न रहते हैं, केवल धोती या लंगोट पहनते हैं, और आकाश को ही अपना वस्त्र मानते हैं.
-वे युद्ध कला में निपुण होते हैं, और तलवार, त्रिशूल जैसी पारंपरिक हथियारों का उपयोग करते हैं.
-उनकी तपस्या कठोर होती है, जिसमें ठंडे पानी में स्नान करना और भोजन का त्याग करना शामिल है.
-नागा बाबा भगवान शिव के अनन्य भक्त होते हैं और विभिन्न अखाड़ों से जुड़े होते हैं, जैसे जूना अखाड़ा, निरंजनी अखाड़ा आदि.
महाकुंभ का धार्मिक महत्व
महाकुंभ हिंदू धर्म के सबसे बड़े और पवित्र त्योहारों में से एक है. यह एक विशाल धार्मिक समागम है, जहां लाखों श्रद्धालु गंगा, यमुना और सरस्वती जैसी पवित्र नदियों में स्नान करते हैं. महाकुंभ की उत्पत्ति पौराणिक कथाओं से जुड़ी है, जिसमें देवताओं और दानवों के बीच अमृत कलश के लिए युद्ध हुआ था, जिसके परिणामस्वरूप चार स्थानों पर कुंभ मेला आयोजित किया जाने लगा. महाकुंभ में स्नान करने से पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है. इसे देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त करने का एक महत्वपूर्ण अवसर माना जाता है.
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महाकुंभ 2025 शाही स्नान तिथियां
पौष पूर्णिमा – 13 जनवरी 2025 (पहला शाही स्नान)
मकर संक्रांति – 14 जनवरी 2025 (दूसरा शाही स्नान)
मौनी अमावस्या – 29 जनवरी 2025 (तीसरा शाही स्नान)
बसंत पंचमी – 3 फरवरी 2025 (चौथा शाही स्नान)
माघ पूर्णिमा – 12 फरवरी 2025 (पाँचवां शाही स्नान)
महाशिवरात्रि – 26 फरवरी 2025 (आखिरी शाही स्नान)