कौन थे ‘हिंदू हृदय सम्राट’ कहलाने वाले कल्याण सिंह? इन्हें मानते थे अपना राजनीतिक गुरु

कल्याण सिंह के बतौर मुख्यमंत्री पहले कार्यकाल में एक बोल्ड फैसला ‘नकल अध्यादेश’ था। इस कानून में बोर्ड परीक्षा में नकल करते हुए पकड़े जाने वालों को जेल भेजने का प्रावधान था

0

कहते हैं यूपी राजनीति की प्रयोगशाला है। सदैव नए नए प्रयोग होते रहते हैं। इसी प्रयोगशाला से निकले थे सूबे के पूर्व मुख्यमंत्री और कभी ‘हिंदू हृदय सम्राट’ कहलाने वाले कल्याण सिंह, जो भारतीय जनता पार्टी को उत्तर प्रदेश में एक अलग मुकाम तक ले गए। कल्याण सिंह का जन्म 5 जनवरी 1932 को उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ जिले के मढ़ौली गांव में हुआ था। वह एक किसान परिवार से संबंध रखते थे। उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह एक बाल स्वयं सेवक थे, उनकी सक्रियता राष्ट्रीय स्वयंसेवक में बनी रही। जहां से वह राजनीति के गुण भी सीखते रहें। कल्याण सिंह ने कड़ी मेहनत और विपरित परिस्थितियों का सामना करते हुए उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद शिक्षक अध्यापन शुरू कर दिया।जानकारों की मानें तो जब कल्याण सिंह ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी तो उस दौरान उन्होंने मांगीलाल शर्मा का स्मरण करते हुए उन्हें अपना राजनीतिक गुरु बताया था। मांगीलाल शर्मा आरएसएस के प्रचारक थे। इन्हीं के कहने पर ही वह राजनीति में आएं और लगातार बुलंदियों को छुते चले गए।

कल्याण सिंह ने सबसे पहले साल 1962 में अलीगढ़ की अतरौली सीट से जनसंघ के टिकट पर विधानसभा चुनाव लड़ा, लेकिन वह चुनाव हार गए थे। लेकिन साल 1967 में अतरौली से ही अपना पहला चुनाव 4000 वोटों से जीतकर कल्याण सिंह यूपी विधानसभा पहुंचे थे। 1967 के बाद 69, 74 और 77 के चुनाव में भी उन्होंने अतरौली से जीत हासिल कर लगातार 4 बार विधायक रहे थे। जिसमें पहली 3 बार जनसंघ के टिकट पर, चौथी बार जनता पार्टी के टिकट पर।   1980 के विधानसभा चुनाव में कल्याण सिंह को कांग्रेस के अनवर खान ने अतरौली से हरा दिया। लेकिन कल्याण सिंह ने भाजपा के टिकट पर 1985 के विधानसभा चुनाव में फिर जीत हासिल की। तब से लेकर 2004 के विधानसभा चुनाव तक कल्याण सिंह अतरौली से लगातार विधायक बनते रहें।

कल्याण सिंह जब पहली बार मुख्यमंत्री बने

1991 में उत्तर प्रदेश की 11वीं विधानसभा के चुनाव में बनिया और ब्राह्मण की पार्टी कही जाने वाली भाजपा ने कल्याण सिंह को पिछड़ों का चेहरा बनाया और वादा किया गुड गवर्नेंस का। कल्याण सिंह लोधी राजपूतों के मुखिया और फायर ब्रांड हिंदू नेता के तौर पर उभरे। चुनाव हुए और देश के सबसे बड़े राज्य UP में 425 में से 221 सीट जीतकर भारतीय जनता पार्टी पूर्ण बहुमत से सरकार बनाई। कल्याण सिंह ने यूपी में भाजपा के पहले मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ली। कल्याण सिंह के बतौर मुख्यमंत्री पहले कार्यकाल में एक बोल्ड फैसला ‘नकल अध्यादेश’ था। इस कानून में बोर्ड परीक्षा में नकल करते हुए पकड़े जाने वालों को जेल भेजने का प्रावधान था। इस फैसले ने कल्याण सरकार को सियासी नुकसान पहुंचाया। सरकार बनने के एक साल बाद ही 6 दिसंबर 1992 को कारसेवकों द्वारा अयोध्या में बाबरी मस्जिद गिरा दी गई। उस समय बाबरी मस्जिद की सुरक्षा का जिम्मा कल्याण सिंह सरकार पर था। मस्जिद गिरने के बाद कल्याण सिंह ने मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया। 7 दिसंबर, 1992 को केंद्र की नरसिंह राव सरकार ने उत्तर प्रदेश की सरकार को बर्खास्त कर दिया।

कल्याण सिंह बतौर मुख्यमंत्री दूसरी बार

1996 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी 173 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनी। लेकिन किसी भी पार्टी की सरकार नहीं बनी। इसलिए राष्ट्रपति शासन लगाया गया। और राष्ट्रपति शासन हटा तो बीजेपी और बहुजन समाजवादी पार्टी में सरकार बनाने को लेकर समझौता हुआ, जिसमें छह महीने बसपा और छह महीने भाजपा का मुख्यमंत्री बनाने को लेकर सहमति हुयी। फिर बीजेपी के सहयोग से मायावती मुख्यमंत्री बन गई थीं, मायावती के छह महीने पूरे हुए तो कल्याण सिंह 21 सितंबर, 1997 को मुख्यमंत्री बने। लेकिन एक महीना भी नहीं बीता कि मायावती ने तारीख 19 अक्टूबर, 1997 समर्थन वापस ले लिया। राज्यपाल रोमेश भंडारी ने कल्याण सिंह को दो दिन के अंदर बहुमत साबित करने को कहा। 21 अक्टूबर को कल्याण सिंह ने बहुमत साबित कर दिया। इस दौरान विधानसभा में विधायकों ने एक दूसरे के ऊपर लात-जूते चलाए, कुर्सियां फेंकी और माइक फेंका। हालांकि उस कार्यकाल में उन्हें 90 से ज्यादा मंत्री बनाने पड़े जोकि अब तक सबसे बड़ा मंत्रिमंडल माना जाता है।

एक सचिवालय में दो मुख्यमंत्री

साल 1998 में राज्यपाल रोमेश भंडारी ने अचानक कल्याण सिंह सरकार को बर्खास्त करके जगदंबिका पाल को रात के साढ़े 10 बजे मुख्यमंत्री पद की शपथ दिला दी। जगदंबिका पाल, कल्याण सिंह सरकार में मंत्री थे। राज्यपाल के इस फैसले के विरोध में बीजेपी के बड़े नेता अटल बिहारी वाजपेयी समेत कई लोग धरने पर बैठ गए। रात को ही हाई कोर्ट में अपील की गई। हाई कोर्ट ने राज्यपाल के आदेश को खारिज कर कल्याण सिंह के पक्ष में फैसला दिया। कोर्ट के आदेश से पहले जगदंबिका पाल सचिवालय जाकर मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठ गए। जगदंबिका पाल को हाई कोर्ट के आदेश का हवाला दिया गया तब जाकर वो कुर्सी छोड़कर गए फिर कल्याण अपनी जगह पर वापस आए। 26 फरवरी को कल्याण सिंह ने फिर से बहुमत साबित कर दिया। जगदंबिका पाल कुछ घंटों के मुख्यमंत्री बनकर रह गए।

बतौर राज्यपाल

केंद्र में मोदी सरकार आने के बाद 26 अगस्त 2014 को कल्याण सिंह को राजस्थान का राज्यपाल बनाया गया। इसके बाद जनवरी 2015 में कल्याण सिंह को हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल का अतिरिक्त कार्यभार दिया गया था।

कल्याण सिंह का निधन

दो बार यूपी के सीएम रहे और राजस्थान के राज्यपाल रहे कल्याण सिंह 48 दिनों से अस्पताल में भर्ती थे और 7 दिनों से वेंटीलेटर पर थे। 89 साल की उम्र में उन्होंने लखनऊ स्थित संजय गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान ( SGPGI ) में 21 अगस्त 2021 को आखिरी सांस ली।

Leave A Reply

This website uses cookies to improve your experience. We'll assume you're ok with this, but you can opt-out if you wish. AcceptRead More