यूपी उपचुनावः 57 साल, 14 विधायक… बाहर से आए और हवाई विधायक कहलाए

57 साल के दौरान इस सीट से 14 विधायक बने लेकिन एक भी क्षेत्रीय नहीं

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By Election: उत्तर प्रदेश में होने वाले उपचुनाव अब 20 नवंबर को होंगे. वहीं पश्चिमी यूपी में एक खास रसूख रखने वाली विधानसभा सीट मीरापुर का इतिहास बड़ा ही दिलचस्प है. इस बार के उपचुनाव में यहां से 11 प्रत्याशी चुनावी मैदान में हैं. इस सीट का इतिहास ऐसा कि लोग अचंभित हो जाते हैं. बता दें कि मीरापुर विधानसभा में 1967 से लेकर अब तक कोई भी विधायक विधानसभा क्षेत्र का नहीं चुना गया है. 57 साल के दौरान इस सीट से 14 विधायक बने लेकिन एक भी क्षेत्रीय नहीं हैं.

2012 में परसीमन के बाद बनी थी मीरापुर सीट

बता दें कि मीरापुर विधानसभा सीट 2012 में परसीमन के बाद वजूद में आई थी. इससे पहले 1962 तक उक्त सीट को मोरना विधानसभा क्षेत्र के रूप में जानी जाती थी. 1962 से पहले यह भोकरहेड्डी विधानसभा क्षेत्र कहलाता था. अगर इस विधानसभा सीट का इतिहास देखा जाए तो पिछले 57 साल में स्थानीय निवासियों की सियासी सोच जिले के अन्य लोगों से अलग ही पाई जाएगी. उत्तर प्रदेश के पहले डिप्टी सीएम बाबू नारायण सिंह मोरना विधानसभा क्षेत्र से जीतकर ही विधानसभा पहुंचे थे. इस सीट पर जीते कुछ विधायक भले ही जनपद के रहने वाले रहे हो, लेकिन उनका मोरना से कोई ताल्लुक नहीं रहा.

57 साल-14 विधायक

गौरतलब है कि इस विधानसभा के इतिहास में देखा जाए तो 57 साल में यहां से 14 विधायक चुने गए हैं. हालांकि इनमें एक भी स्थानीय न होने के कारण कहा जा सकता है कि क्षेत्र की जनता बाहरी लोगों पर ज्यादा विश्वास करती रही है. 86 दलों ने तात्कालिक राजनीतिक परिस्थितियों के अनुसार यहां टिकट वितरण किया और प्रत्याशियों को जनता ने वोट भी भरपूर दिया.

हरियाणा के अवतार भड़ाना भी जीते चुनाव…

बता दें कि इस विधानसभा सीट में उत्तर प्रदेश ही नहीं हरियाणा के भी लोग यहां से चुनाव जीत चुके हैं. साल 2017 में अवतार बढ़ाना सपा के उम्मीदवार लियाकत अली को हराकर विधायक बने थे. दूसरी ओर चुनाव जीतने के बाद कई सालों तक विधानसभा में उनकी उपस्थिति नहीं हुई तो लोगों ने उन्हें हवाई विधायक कह दिया. इसके बाद उन्होंने त्यागपत्र दे दिया जिससे यह सीट रिक्त हो गई.

मीरापुर सीट पर एक ही परिवार का प्रतिनिधित्व…

बता दें कि इस सीट पर एक ही परिवार की तीन पीढियों ने प्रतिनिधित्व किया. यूपी के पहले डिप्टी सीएम बाबू नारायण सिंह इस सीट से विधायक रहे थे. बाबू नारायण सिंह के पुत्र और पोते ने भी विधानसभा में इस सीट का प्रतिनिधित्व किया और संयोग देखिए, दोनों ही फिर संसद भी पहुंचे.

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इस बार मिथलेश पाल और सुम्बुल राणा में टक्कर…

बता दें कि इस बार के उपचुनाव में NDA और से RLD की तरफ से उम्मीदवार मिथिलेश पाल हैं जबकि मिथिलेश के सामने सपा ने पूर्व सांसद कादिर राणा की पुत्रवधु सुम्बुल राणा को उम्मीदवार बनाया है.

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किसी ने क्षेत्रीय तो किसी ने उतारा बाहरी उम्मीदवार…

बता दें कि पिछले 5 दशक के ट्रेंड को देखते हुए इस बार भी कई दलों ने क्षेत्रीय तो कई ने बाहरी उम्मीदवार उतारे हैं. RLD और सपा ने बाहरी उम्मीदवार उतारे हैं तो वहीं BSP और चंद्रशेखर की अगुवाई वाली आज़ाद समाज पार्टी ने क्षेत्रीय उम्मीदवार पर दांव लगाया है. अब देखने वाली बात यह होगी कि इस सीट पर जनता स्थानीय नेता को चुनती है या बाहरी पर ही उसका भरोसा कायम रहेगा.

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