यूपी के उन्नाव से था शीला दीक्षित का गहरा नाता
देश के गृहमंत्री रहे उमाशंकर दीक्षित के बेटे संग शीला का विवाह हुआ था। उमाशंकर दीक्षित राज्यसभा से चुनकर देश के गृहमंत्री बने थे। मौजूदा समय में ऊगू नगर पंचायत है। हालांकि अब उनके परिवार के लोगों का यहां पर आना जाना नहीं होता है।
ज़मानत जप्त हुई थी शीला की-
उन्नाव। गृहमंत्री रहे उमाशंकर दीक्षित की बहू शीला दीक्षित ससुराल में अपनी जमानत नहीं बचा सकी थीं। कन्नौज से सांसद चुने जाने के बाद अगले चुनाव में नब्बे के दशक में वह साहित्यिक नगरी से चुनाव लड़ीं तो यहां के मतदाताओं ने उन्हें खारिज कर दिया। उसके बाद यूपी में शीला का सियासी सफर थम गया लेकिन फिर वह दिल्ली का प्रमुख चेहरा बनकर उभरीं और लगातार तीन बार मुख्यमंत्री रहीं।
नब्बे के दशक कांग्रेस से बगावत करके उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री नारायाण दत्त तिवारी ने तिवारी कांग्रेस का गठन किय था। यह वही वक्त था जब राम मंदिर का मुद्दा चुनाव में गरमाया था। सपा और बसपा भी सूबे की सियासत में मजबूती से दस्तक दे रही थीं। कांग्रेस ने राजा विजय कुमार त्रिपाठी को चुनावी मैदान में उतारा तो तिवारी कांग्रेस ने कन्नौज की पूर्व सांसद शीला दीक्षित को अपना प्रत्याशी बनाया। चुनावी समर थमा और परिणाम आए तो कांग्रेस और तिवारी कांग्रेस दोनों की जमानत जब्त हो चुकी थी।
मिली दिल्ली की सियासत-
चुनाव में शीला दीक्षित को सिर्फ 11037 वोट मिले जो कुल पड़े मत का सिर्फ 2.30 फीसदी ही थे। भाजपा को इस चुनाव में जीत मिली थी। उसके बाद शीला दीक्षित एक बार फिर से कांग्रेस में शामिल हुईं और पार्टी ने उन्हें दिल्ली की सियासत सौंप दी। फिर क्या था उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। 1998 से 2013 तक शीला दीक्षित लगातार तीन बार दिल्ली पर राज करतीं रहीं। 2017 के विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस ने एक बार फिर से शीला दीक्षित को उत्तर प्रदेश की सियासत में उतारने की कोशिश की। हालांकि कांग्रेस और सपा के गठबंधन के बाद शीला दीक्षित की दिल्ली वापसी हो गई।