भारत के महान जासूस व RAW के पहले निदेशक ‘चेल्लम सर’ की कहानी, वाराणसी से था गहरा नाता

कॉव और उनके महज़ चार ऑफिसर्स की वजह से ही सिक्किम, भारत का अभिन्न हिस्सा बन सका था।

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अमेजन प्राइम पर रिलीज हुई वेब सीरीज ‘फैमिली मैन’ के सीजन-2 को दर्शकों की तरफ से जबरदस्त प्रतिक्रियाएं मिली थी। फैमिली मैन सीजन-2 में पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई की मदद से श्रीलंका के तमिल विद्रोहियों के भारत में एक बड़े हमले को अंजाम देने की कहानी को दिखाया गया था। सीरीज में जहां मुख्य किरदार के तौर पर मनोज बाजपेयी और अभिनेत्री सामंथा की तारीफ हुई थी, वहीं एक किरदार ऐसा भी है, जिसे इस सीरीज का रियल हीरो बताया गया था। वो किरदार था एक एक्‍स-अंडरकवर एजेंट चेल्लम सर का, जिसे अभिनेता उदयभानु महेश्वरन ने निभाया था। शो में जहां भी श्रीकांत तिवारी (मनोज बाजपेयी) को कुछ समझ नहीं आता, वहां ‘चेल्लम सर’ की एंट्री होती है। चेल्‍लम सर के पास बागियों से लेकर सरकारी महकमे तक हर सवाल के जवाब हैं। ऐसे ही थे भारत के महान जासूस, Legendary Spy और RAW के पहले निदेशक रामेश्वर नाथ काव जिन्होंने पाकिस्तान सबसे बड़ा जख्‍म को दिया था। आइए जानते हैं कि कौन थे रामेश्‍वरनाथ कॉव?

रिसर्च एंड एनालिसिस विंग यानी की RAW:

आजादी के बाद जब भारत विकास के पथ पर अग्रसर हुआ तो उसके सामने चुनौतियां बढ़ती चली गईं। स्वतंत्रता के बाद एक तरफ जहाँ देश के अंदर आंतरिक परेशानियां बढ़ रही थीं तो वहीं दूसरी तरफ पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान और चीन की साजिशें चिंताओं को और बढ़ा रही थीं। जिसको देखते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 1968 में सेंट्रल इंटेलिजेंस एजेंसी (CIA) और ब्रिटिश इंटेलिजेंस एजेंसी MI6 की तर्ज गुप्तचर संस्था (खुफिया एजेंसी) बनाने का निर्णय लिया। जिसका नाम उन्होंने रिसर्च एंड एनालिसिस विंग यानी की RAW रखा। रामेश्वर नाथ काव को इसका पहला निदेशक बनाया गया।

आकर्षक व्यक्तित्व के धनी काव:

रामेश्वरनाथ काव का जन्म 10 मई, 1918 को उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले में हुआ था। उनका ताल्लुक एक कश्मीरी ब्राह्मण परिवार से था। बचपन से ही पढ़ने में होशियार काव बेहद आकर्षक व्यक्तित्व के धनी थे। उन्होंने इंग्लिश लिट्रेचर में पोस्ट ग्रेजुएशन किया। मात्र 22 साल की उम्र में, 1940 में उन्होंने भारतीय पुलिस सेवा जिसे उस ज़माने मे आईपी कहा जाता था की परीक्षा उत्तीर्ण की। काव को उत्तर प्रदेश काडर मिला। 1948 में जब इंटेलिजेंस ब्यूरो की स्थापना हुई, तो उसका सहायक निदेशक रामेश्वरनाथ काव को बनाया गया और प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी उन्हें सौंपी गई।

कैरियर की शुरुआत:

रामेश्वरनाथ काव को अपने करियर की शुरुआत में ही एक बहुत बारीक ख़ुफ़िया ऑपरेशन करने का मौका मिला। साल 1955 में चीन सरकार ने एयर इंडिया का एक विमान ‘कश्मीर प्रिंसेज़’ चार्टर किया था। इस विमान से चीन के पीएम चू एन लाई, बाडुंग सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए जाने वाले थे। अंतिम मौके पर एपेंडेसाइसटिस का दर्द उठने के कारणपर उन्होंने अपनी यात्रा रद्द कर दी थी। यह विमान इंडोनेशिया के पास क्रैश कर गया था, इसमें सवार सभी चीनी अधिकारियों और पत्रकारों की मौत हो गई थी। रामेश्वरनाथ काव को इस दुर्घटना की जांच की ज़िम्मेदारी सौंपी गई थी। काव ने जांच कर पता लगाया था कि इस षडयंत्र के पीछे ताइवान की ख़ुफ़िया एजेंसी का हाथ था।

जब महारानी ने की तारीफ:

1950 में ब्रिटिश महारानी के भारत में पहले दौरे के दौरान उनकी सिक्योरिटी की जिम्मेदारी काव को दी गयी। एक कार्यक्रम के दौरान महारानी की ओर फेंके गए एक बुके को काव ने पकड़ लिया था। जिसके बाद महारानी ने उनकी काबिलियत की तारीफ करते हुए “गुड क्रिकेट” बोला था।

पाकिस्तान से युद्ध के समय कॉव की आशंका:

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बीबीसी में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार काव रॉ में अपनी उपयोगिता 1971 के भारत पाकिस्तान युद्ध में सिद्ध कर दी। रामेश्वरनाथ काव का खुफिया नेटवर्क इतना जबरदस्त होता था कि उनको यह तक पता होता था कि पाकिस्तान किस दिन हमला करेगा। काव को करीबी से जानने वाले आंनद वर्मा ने बीबीसी से बात करते हुए बताया कि पाकिस्तान से एक मैसेज कोड के माध्यम से आया। जिसे डिसाइफर किया गया तो पता चला कि पाकिस्तान हवाई हमले की साजिश रच रहा है। मिली सूचना में हमले की तय तारीख से दो दिन पहले की डेट दी गई थी। काव की सलाह पर वायुसेना को तैयार रहने के लिए कहा गया। जब दो दिनों तक कोई एक्टिविटी नहीं हुई तो वायुसेना ने काव से कहा कि इतने दिनों तक एयरफोर्स को हाई अलर्ट नहीं रख सकते हैं। जवाब में उन्होंने कहा एक दिन और रुक जाइए। 3 दिसंबर को पाकिस्तान की तरफ से हमला हुआ तो भारतीय सेना उस हमले के लिए पूरी तरह से तैयार थी। पाकिस्तान को बुरी तरह से खदेड़ दिया गया। इस जीत ने काव को दिल्ली के सत्ता गलियारों में एक हीरो बना दिया।

सिक्किम विलय:

कॉव और उनके महज़ चार ऑफिसर्स की वजह से ही सिक्किम, भारत का अभिन्न हिस्सा बन सका था। उन्होंने इस काम को इतनी गोपनीयता से किया कि उनके विभाग के अधिकारियों को भी भनक नहीं लग पाई इस योजना की। ये एक तरह से रक्तविहीन तख़्तापलट चीन की नाक के नीचे हुआ था, जिसकी भनक तक चीन को नहीं लग पाई।

काव की अच्छी छवि:

रामेश्वरनाथ काव की अपने कौशल और बेहतरीन काम के कारण सिर्फ भारत में ही नहीं, अंतरराष्ट्रीय खुफिया समुदाय में भी की अच्छी छवि बन गयी थी। फ़्रांस की पूर्व खुफिया एजेंसी एसडीईसीई के पूर्व प्रमुख काउंट एलेक्ज़ांड्रे द मेरेंचे ने 1970 में उनको विश्व के पांच महान एजेटों में से एक बताया था। उन्होंने कहा था कि “काव जी शारीरिक और मानसिक शिष्टता के एक अद्भुत मिश्रण हैं। लाजवाब उपलब्धियां! बेहतरीन मित्रता ! और फिर भी अपनी उपलब्धियों और अपने दोस्तों के बारे में बात करने से कतराते हैं!”

काव पर लिखी गईं कई पुस्तकें:

काव के कार्यशैली और उनके जीवन पर कई पुस्तकें भी लिखी गई हैं। इनमें आरएन काव : जेंटलमैन स्पायमास्टर, ए लाइफ इन सीक्रेट और भारतीय गुप्तचरसंस्थेची गूढ़गाथा (Marathi Edition) शामिल हैं।

काव पर हुई जांच:

1977 में जब इंदिरा गाँधी के चुनाव हारने के बाद मोरारजी देसाई सत्ता में आए तो उन्हें इस बात का शंका हो गया कि इमरजेंसी के दौरान लागू हुई नीतियों के पीछे काव का दिमाग था। इसके बाद एक एसपी सिंह कमेटी बिठाई गई। उस कमेटी ने छह महीने के अंदर रिपोर्ट दी। जिसमे रॉ को बेदाग़ बताने के साथ ये भी कहा कि इमरजेंसी से काव का कोई लेनादेना नहीं था।

मृत्यु:

20 जनवरी 2002 को रामेश्वर नाथ काव की नई दिल्ली में मृत्यु हो गई।

 

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