अनुप्रिया की साख का सवाल, गढ बचाने की चुनौती
मिर्जापुर, सोनभद्र-भदोही सीट
वाराणसी। काशी व प्रयागराज के बीच विंध्यपर्वत की गोद में बसा मिर्जापुर जिला। धार्मिक रूप से विख्यात मां विध्यवासिनी धाम। रोजाना की तरह मां की चौखट पर शीश नवाते श्रद्धालुओ की भीड में जयकारा लगाते एक राजनीतिकदल के कार्यकर्ता पुजारी से जल्द दर्शन कराने की गुहार लगाते बोले, गुरूजी …. जल्दी दर्शन करा द माई क.. तीन दिन बचल हौ चुनाव में…., अबकी बार साख क सवाल हौ…. बस माई क कृपा हो जाए…
अंतिम चरण यानी 7 मार्च को होने वाले मिर्जापुर में चुनावी घमासान के बीच बडे नेताओं की सांख दांव पर लगी है। जातीय खांचे में जिसने भी समीकरण साध लिए जीत का सेहरा उसी के सिर पर सजता रहा है।
राजनीतिक लिहाज से देखा जाए तो मिर्जापुर ने देश के दिग्गज नेताओं में से केन्द्रीय केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने राजनीति का ककहरा यहीं से सीखा और 1977 में पहली बार विधायक बने। यह जिला उस समय चर्चा में आया जब दस्यु सुंदरी स्व फूलनदेवी यहां से लोकसभा चुनाव में उतरी और देश सदन में पहुंची। देश के सबसे चर्चित दस्यु सरगना रहे ददुआ के भाई बाल कुमार पटेल को भी जनता ने सदन में पहुंचाने का कार्य किया। अपनादल की अध्यक्ष अनुप्रिया पटेल लगातार दूसरी बार इसी जिले से संसद की सीढियां चढी। माना जाता है कि अपनादल ने राजनीति में जो मुकाम हासिल किया वह मिर्जापुर जिले के मतदाताओं की ही देन है।
वरिष्ठ पत्रकार जयेन्द्र चतुर्वेदी कहते हैं कि अनुप्रिया पटेल ने केवल पटेल मतदाताओं में ही अपनी पैंठ नहीं बढायी बल्कि गैर यादव ओबीसी से जुडे अन्य बिरादरी में उनके समर्थकों की संख्या बढी है। वह उदाहरण देते हैं कि वर्ष 2012 में मिर्जापुर की पांच सीटों में तीन सपा, एक बसपा एवं एक कांग्रेस के खाते में थी। मगर मोदी लहर और अनुप्रिया के प्रयास से विपक्ष का सूपडा साफ हो गया। इस जीत में अनुप्रिया की भूमिका काफी महत्वपूर्ण रही। मगर इस बार माहौल बदला हुआ है। उसके पीछे कारण यह कि वर्तमान विधायकों से जो अपेक्षाएं लोगों की थी वह पूरी नहीं हो पायी। लिहाजा इस बार मिर्जापुर की तीन सीटों पर त्रिकोणीय टक्कर देखने को मिल रही है। अंत में जीत किसके पाले में जाएगी कुछ कहा नहीं जा सकता।
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मिर्जापुर नगर सीट पर सपा के कद्दावर नेता कैलाश चौरसिया तीन बार प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। इस बार भी वह चुनावी मैदान में है। वहीं भाजपा ने वर्तमान विधायक रत्नाकर को उतारा है। वरिष्ठ पत्रकार वीरेन्द्र दुबे की माने तो अपनादल कमेरावादी के खाते में जो सीट गई है उस पर बीजेपी का पलडा भारी दिख रहा। कारण, सपा से उम्मीदवारी की आस लगाए लोगो को गठबंधन में सीट जाने से झटका लगा है। लिहाजा जो उत्साह कार्यकर्ताओं में होना चाहिए वह नहीं दिखायी दे रहा। इनमें चुनार, मडिहान एवं मझवा विधानसभा सीट पर बीजेपी को कहीं सपा तो कहीं बसपा चुनौती मिल रही है।
कारोबारी मन्नन पांडेय वर्तमान व्यवस्था से नाराजगी जताते है। कहते है केवल बडी बातों से जनता का पेट नहीं भरने वाला। जनता को जो वादा किया गया वह पूरा नहीं हुआ। महंगाई चरम पर है। शहर में बुनियादी समस्याओं का निराकरण नहीं हो पाया। युवा परेशान हैं। वहीं गृहणी रेनुका पांडेय महिला सुरक्षा को लेकर सरकार की तारीफ करती हैं। उनका मानना है कि विकास के बहुत काम हुए मगर सरकार को महंगाई पर भी ध्यान देना चाहिए।
धर्मवाद-जातिवाद के कार्ड का असर
अंतिम चरण में पटेल, निषाद, केवट, बिंद, मल्लाह, कश्यप, नोनिया, माझी, गोंड समेत अन्य ओबीसी वोटरों वाले मिर्जापुर, सोनभद्र एवं भदोही जिले में जातिवाद के साथ धर्मवाद का भी टंप कार्ड खूब चला। अंतिम चरण के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव, मायावती एवं प्रियंका गाधी ने दौरा कर पुरजोर कोशिश की है कि तीनों जिलों की 12 सीटों पर जीत हासिल हो सके।
पहली बार सोनभद्र में तीन महिलाएं चुनावी मैदान में
भौगोलिक रूप से भारत का दूसरा सबसे बडा जिला सोनभद्र। यह एक मात्र ऐसा जिला है जो मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ, झारखंड एवं बिहार राज्यों की सीमा से जुडता है। यूपी में आदिवासियों की सबसे अधिक संख्या यही है। वर्ष 2012 में पहली बार निर्दल प्रत्याशी के रूप में रूबी प्रसाद चुनावी मैदान में उतरी और जीत हासिल की। महिला प्रत्याशी की लोकप्रियता को देखते हुए इस बार दलों ने तीन महिलाएं चुनावी मैदान में उतारा है। इनमें कांग्रेस ने दुद्धी से बसंती पनिका व घोरावल से विंदेश्वरी सिंह को टिकट दिया है जबकि जनता दल (यू) से घोरावल सीट से अनीता कोल चुनावी मैदान में उतरी हैं। इन महिलाओं में कौन सदन पहुंचेगा यह तो दस मार्च को ही पता चलेगा।
वैसे देखा जाए तो दो साल पहले बहुचर्चित उभ्भा हत्याकांड के चलते देशभर में चर्चा के बाद यहां की सियासत गर्म है। दुद्धी, चोपन, घोरावल एवं राबर्ट्सगंज सीट पर त्रिकोणीय लडाई है। वरिष्ठ पऋकार शुभ्रांशु शेखर कहते हैं कि आदिवासियों की बहुचर्चित हत्याकांड के बाद प्रियंका गांधी सबसे पहले पहुंची थी लेकिन राजनीतिक रूप से वह इस घटना को भुना नहीं पायी। यही हाल सपा-बसपा का रहा। इलाके के पीयूष कुमार कहते हैं कि राबटसगंज सीट पर वर्तमान विधायक से लोग नाराज है। बाकी सीटों पर भी एंटी एनकंबेसी है। रिटायर्ड कर्मचारी झन्नन पांडेय कहते हैं कि इस बार किसी की लहर नहीं है। कहीं जातिवाद के नाम पर वोट जाएगा तो कहीं धर्मवाद, राष्टवाद एवं विकास के नाम पर।
कालीन नगरी में बाहुबल की होगी परीक्षा
मखमली कालीन के लिए पूरी दुनिया में विख्यात भदोही जिले में तीन सीटें ज्ञानपुर, भदोही एवं औराई आती हैं। कालीन निर्यात कंपनियां एवं कारखाने इसी जिले में है। हर साल हजारों करोड की कालीनें विदेशों में निर्यात की जाती हैं। इस विधानसभा को सभी प्रमुख राजनीतिक दल अपना अपना गढ मानते हैं और सभी दलो की यहां विधायक बनाने का मौका मिलता रहा है। वर्ष 2017 के चुनाव में भदोही विधानसभा सीट पर भाजपा को जीत तो हासिल हुई लेेकिन मामूली अंतर से। इस बार सपा ने जाहिद बेग को भाजपा ने रविन्द्र नाथ तिवारी को टिकट दिया है। सबसे अधिक चर्चा में है ज्ञानपुर विधानसभा सीट। पूर्वांचल के बाहुबली विजय मिश्र इस बार प्रगतिशील मानव समाज पार्टी से चुनावी मैदान में हैं। वह लगातार चार बार चुनाव जीतते रहे हैें। वर्तमान में वह जेल में बंद हैं। लिहाजा उनकी कमान उनकी एमएलएसी पत्नी रामलली मिश्रा व अधिवक्ता बेटी रीमा पांडेय ने चुनाव की कमान संभाले हुए हैं। बिंद एवं ब्राम्हण बाहुल्य वाले इस विधानसभा सीट से सपा ने पूर्व मंत्री रामकिशोर बिंद को उतारा है। जबकि भाजपा निषाद गठबंधन से विपुल दुबे ताल ठोक रहे। वही बसपा से उपेन्द्र सिंह व कांग्रेस से सुरेश मिश्र चुनावी मैदान में हैं। वरिष्ठ पत्रकार हरिनाथ यादव कहते हैं कि विजय मिश्र के साथ जनता भावनात्मक रूप से जुडी है। वह भले ही जेल में हो लेकिन लोगों की मदद के लिए उनके परिवार या उनके करीबी लोग हमेशा रहते हैं। जनमानस में उनकी यही पहल उनको लगातार जीत दिलाती रही है। वहीं औराई सीट पर वर्तमान विधायक दीनानाथ भास्कर एवं अंजनी सरोज के बीच सीधी टक्कर दिखायी दे रही। इलाके के शिव कुमार बिंद कहते हैं कि अबकी बार तीनों सीटों पर कांटे की लडाई है। विजय मिश्र के जेल में रहने के कारण प्रचार पर असर पडा है। बहरहाल आने वाले दस मार्च को पता चलेगा कि भदोही की जनता ने किसके सिर जीत का सेहरा बांधा।
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एक नजर तीनों जिलों की विधानसभा सीटों पर-
भदोही- ज्ञानपुर, भदोही एवं औराई
मिर्जापुर- मिर्जापुर नगर, मढिहान, मझवा, चुनार एवं छानबे
सोनभद्र- दुद्धी, चोपन, घोरावल एवं राबर्ट्सगंज
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