आजमगढ़: जाति की राजनीति, सपा की चलेगी साइकिल या खिलेगा कमल
अरुण मिश्र/हिमांशु शर्मा:
सपा-बसपा का गढ़ कहे जाने वाले आजमगढ़ के मतदाताओं के बीच इस बार जातिवाद के साथ ही विकास भी बडा मुद्दा बना हुआ है। इस जिले में अतरौलिया, गोपालपुर, सगरी, मुबारकपुर, आजमगढ, निजामाबाद, फूलपुर पवई, दीदारगंज, लालगंज एवं मेहनगर सीटें आती हैं। किसके सिर जीत का सेहरा सजेगा यह तो आगामी 10 मार्च को पता चलेगा, मगर सभी दलों ने जिस तरह से जातीय समीकरण साधने वालों को उम्मीदवार बनाया है उससे शहर से लेकर गांव तक के चट्टी-चौराहे पर सियासी वाकयुद्ध जारी है। इसके पीछे सबसे बड़ा कारण यह भी कि इस बार एआईएमआईएम के राष्ट्रीय अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने भी सपा-बसपा के इस गढ़ में सेंध लगाने के लिए अपने प्रत्याशी उतारे हैं। वहीं, आजमगढ़ में राज्य विश्वविद्यालय, एयरपोर्ट, पूर्वांचल एक्सप्रेस, स्वास्थ्य सेवाएं के अलावा मुफ्त राशन के जरिए भाजपा जनता के बीच पकड़ मजबूत करने में जुटी है। कुल मिलाकर, पिछली बार 10 में से 9 सीटें जीतने वाली सपा-बसपा के लिए प्रदर्शन दोहराना बडी चुनौती है।
आजमगढ़ में समाजवादी पार्टी की ताकत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि दस विधानसभा सीटों पर वर्ष 2017 में प्रचंड मोदी लहर के बावजूद बीजेपी केवल एक ही सीट पर विजय प्राप्त कर सकी थी। जातीय आंकडों पर नजर डालें तो यादव, दलित एवं मुस्लिम मतदाताओं की संख्या यहां बहुतायत है। दो विधानसभा क्षेत्र लालगंज एवं मेहनगर में करीब 32 से 39 फीसदी सवर्ण मतदाता है। जबकि पांच विधानसभा क्षेत्रों में 27 से 37 फीसदी तक दलित मुस्लिम मतदाता चुनावी जीत-हार का फैसला करते हैं। वरिष्ठ पऋकार राकेश श्रीवास्तव कहते हैं कि दलितों-पिछडों के बीच विकास के साथ लाभार्थी योजना के जरिए बीजेपी ने पहुंच बनाने की भरपूर कोशिश की है। खासकर, राज्य विश्वविद्यालय पूर्वांचल एक्सप्रेस एवं स्वास्थ्य सुविधाओं के विकास के मुद्दे पर लोगो के विचार में बदलाव आया है। सपा-बसपा के परम्परागत मत बिखर जाएं तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।
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वरिष्ठ पत्रकार स्वरमिल चंद्रा कहते हैं कि यह आजमगढ है। हमेशा विपरीत धारा में बहा है यहां का वोटर। वह याद दिलाते हैं कि वर्ष 2014 में मोदी लहर में मुलायम सिंह यादव ने यहां से लोकसभा सीट जीता था। वर्ष 2017 में जब बीजेपी का परचम पूरे पूर्वांचल में लहरा रहा था तब भी यहां के मतदाताओं का मिजाज नहीं बदला। दस विधानसभा सीट में से पांच पर सपा ने जीत हासिल की। चार बसपा के खाते में गया। जबकि बीजेपी को सिर्फ एक सीट से संतोष करना पडा। वह कहते है इस बार बीजेपी के खाते में दो से तीन सीट जा सकती है। वह इसलिए की बीजेपी और बसपा ने जो प्रत्याशी उतारे है वह जातिगत समीकरण को साधने वाले है।
चार दशक से बना हुआ है इस सीट पर सपा का तिलस्म
आजमगढ़ सदर विधानसभा एक मात्र ऐसी सीट है जिस पर समाजवादी पार्टी का तिलस्म वर्ष 1985 से आज तक बना हुआ है। वर्ष 1985 से 2017 तक हुए नौ चुनाव में दुर्गा प्रसाद को सिर्फ एक बार हार का सामना करना पडा। वर्ष 1993 में यह सीट बसपा के खाते में चली गई। इस सीट पर यादव-मुस्लिम मतदाताओं की संख्या सबसे अधिक होने के कारण भाजपा- बसपा एवं एआईएमआईएम ने जातीय समीकरण को देखते हुए इस बार अपने प्रत्याशी उतारकर चुनाव को दिलचस्प बना दिया है। वोटर्स का एक पक्ष पूर्वांचल ‘एक्सप्रेस वे’ से रोजगार के नए अवसर खुलने की बात कह रहा है। लेकिन जातिवादी राजनीति पर यह प्रभावी होगा यह कहना मुश्किल है।
ग्रामीण इलाके के सियासी माहौल पर नजर रखने वाले पत्रकार रमेश मौर्य कहते हैं कि पहले आजमगढ से रानी के सराय तक पहुंचने में घंटों लगते थे। मगर सडक ठीक होने से यह दूरी मिनटों में तय हो जाती है। यही हाल बनारस-आजमगढ के फोरलेन बनने से व्यापारियों के साथ ही बनारस इलाज एवं पढाई करने वाले छाऋों को बडी सहूलियत के रूप में इस बार यहां के मतदाता देख रहे हैं।
जिसने साधा समीकरण वहीं बनेगा सिकंदर
मुबारकपुर विधानसभा सीट की बात करें तो यहां का सबसे बडा फलसफा यही है कि जिसने भी जातीय समीकरण साध लिया वहीं सिकंदर बना। पिछले दो चुनाव में बसपा विधायक शाह आलम गुडडू जमाली ने ऐसा समीकरण साधा कि सपा समेत अन्य प्रत्याशी पीछे छूट गए। इस बार वह गुडृडू जमाली ने चुनाव के ठीक पहले बसपा का साथ छोडकर सपा में चले गए। लेकिन वहां से उन्हें टिकट नहीं मिला तो वह ओवैसी के एआईएमआइएम पार्टी से ताल ठोक रहे हैं। करीब 30 फीसदी पिछडे मतदाता वाली इस सीट पर सपा से अखिलेश यादव सपा अध्यक्ष नहीं तो कांग्रेस के परवीन मंदे ने लडाई को उलझा दिया है। उलझी जंग में भाजपा के अरविंद जायसवाल पूरी ताकत लगाए हुए है। इलाके के धीरेन्द्र सिंह कहते हैं कि 27 फीसदी सवर्ण, 26 फीसदी अनसूचित एवं 16 फीसदी मुस्लिम मतदाओं के समीकरण को जिसने साध लिया उसी के माथे पर जीत का सेहरा सजेगा।
किस करवट बैठेगा उंट, आकलन करना मुश्किल
कुछ ऐसा ही हाल गोपालपुर विधानसभा सीट का है। यहां उंट किस करवट बैठेगा, इस बारे में राजनीतिक विष्लेषक भी सटीक आकलन नहीं कर पा रहे। दरअसल यह सपा की परम्परागत सीट मानी जाती है। सपा विधायक नफीस अहमद इस बार भी चुनावी मैदान में है। 14 फीसदी मुस्लिम एवं 29 फीसदी पिछडे मतदाताओं का समीकरण सभी पर भारी पडता रहा है। कई वर्षो तक आजमगढ में पत्रकारिता से जुडे रहे धीरेन्द्र सिंह कहते हैं कि इस बार छात्र राजनीति से निकले मिर्जा शाने आलम बेग एवं बसपा से रमेश यादव के मैदान में उतरने मुस्लिम एवं यादवों के वोट के बिखरने की पूरी संभावना है। वहीं भाजपा के सत्येन्द्र राय को 28 फीसदी सवर्ण तो रमेश को 24 फीसदी अनुसूचित मतदाताओं से उम्मीद है। ऐसे में यहां त्रिकोणीय मुकाबला संभव है।
बात अतरौलिया की भी
अतरौलिया सीट पर करीब 36 फीसदी सवर्ण एवं 29 फीसदी पिछडा मतदाता हमेशा से निर्णायक रहे है। यहां से सपा के कददावर नेता बलराम यादव के पुत्र डा संग्राम यादव फिर से मैदान में है। बीते चुनाव में इस सीट पर बीजेपी महज 2478 वोट से हारी थी। इस बार निषाद पार्टी ने प्रशांत सिंह को उतारा है। यहां से बसपा ने डॉ, सरोज एवं कांग्रेस के रमेश दुबे के उतरने से लडाई रोचक हो गई है। वहीं फूलपुर एवं पवई विधानसभा क्षेऋ में सपा-बसपा के बीच सीधी लडाई दिख रही है। जबकि दीदारगंज सीट पर पूर्व विधानसभा अध्यक्ष सुखेदव राजभर के बेट कमलाकांत राजभर पर सपा ने दांव लगाया है।यहां राजभर मतदाताओं की संख्या अधिक होने के बावजूद 25 फीसदी मुस्लिम मतदाता चुनावी जीत-हार में बडा कारण बनते हैं। जबकि मेहनगर विधानसभा सुरक्षित सीट पर भाजपा -सपा के बीच सीधी टक्कर होने की संभावना है।
दस में नौ सीट पर सपा का कब्जा
2012 में आजमगढ़ जिले के दस विधानसभा में कुल वोटर्स की संख्या 31,64,038 लाख थी। उसमें से 54.1 प्रतिशत मतदाताओं (17,11,041) ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया। समाजवादी पार्टी को 39 प्रतिशत वोट मिले थे। बहुजन समाज पार्टी 30 प्रतिशत वोट के साथ दूसरे नंबर पर थी। बीजेपी को तीसरे नंबर पर संतोष करना पड़ा था उसे 10.2 प्रतिशत वोट ही हासिल हो सका था। कांग्रेस की स्थिती तो यहां बहुत ही खराब रही है। उसे महज 6.9 प्रतिशत वोट ही मिला। राष्ट्रीय उलेमा काउंसिल भी 4.5 प्रतिशत वोट हासिल करने में कामयाब रही। इस चुनाव में समाजवादी पार्टी ने नौ सीटों पर कब्जा जमाया तो बहुजन समाज पार्टी को महज एक सीट हासिल हुई थी।
बसपा की झोली में चार सीट
हीं 2017 की बात करें तो आजमगढ़ में वोटर्स की संख्या में इजाफा हुआ। अब यहां कुल वोटर्स 34,35,702 हो चुके थे। इस बार के विधानसभा चुनावों में 55.4 प्रतिशत (19,08,357) लोगों ने वोट डाले।जिसमें से समाजवादी पार्टी का वोट परसेंट 33.9 प्रतिशत रहा. बहुजन समाज पार्टी का प्रदर्शन भी अच्छा रहा। उसे समाजवादियों से महज 1.1 प्रतिशत ही वोट कम मिला। भारतीय जनता पार्टी ने 2012 के चुनावों की तुलना में इस चुनाव में अपने प्रदर्शन को सुधारा और 16.4 प्रतिशत के बढ़त के साथ 26.6 प्रतिशत वोट हासिल करने में कामयाब रही। सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी को 3.3 प्रतिशत व अन्य को 1.3 प्रतिशत मत हासिल हुआ। 2017 के चुनाव में सपा को पांच बसपा को चार व भाजपा को एक सीट मिली थी।
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