‘सशर्त’ सेना सरकार के फैसले पर हुई सहमत

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रमजान के पाक महीने में भारतीय सेना के जम्मू-कश्मीर में ऑपरेशन नहीं चलाने के सरकार के फैसले पर अब सेना भी सहमत हो गई है। हालांकि, सेना(army) की प्रमुख चिंता है कि इस मौके का फायदा घाटी में सक्रिय आतंकी संगठनों को फिर से एकजुट होने और आतंकी वारदात अंजाम देने का मौका मिल सकता है। इसी चिंता के कारण आर्मी की तरफ से शुरुआत में इस फैसले का विरोध किया जा रहा था।

सरकार के फैसले का सेना ने किया था विरोध

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, ‘शुरुआत में सेना ऑपरेशन रोकने के ऐसे किसी भी एकतरफा फैसले के खिलाफ थी। ऐसे वक्त में जब पाकिस्तान की तरफ से इस तरह के कोई संकेत नहीं मिले हैं सेना ऑपरेशन रोकने के पक्ष में नहीं थी। कश्मीर में पाक समर्थित आतंकी संगठन जैसे हुर्रियत और कई दूसरे सक्रिय संगठनों की मौजूदगी को देखते हुए आर्मी ने इस फैसले को लेकर अपनी दो प्रमुख चिंताएं जाहिर कीं।’ सूत्र ने यह भी कहा कि इससे इनकार नहीं किया जा सकता है कि यह बहुत हद तक राजनीतिक प्रभाव में लिया गया फैसला है।

किसी भी हमले का मुंहतोड़ जवाब देगी सेना

‘सेना ने स्पष्ट कर दिया है कि अगर आर्मी के किसी काफिले, कैंप या ठिकाने पर हमला किया गया तो सेना के पास इंटेलिजेंस आधारित काउंटर ऑपरेशन करने की छूट होगी। यह ऑपरेशन 30 अप्रैल को हुए समीर भट उर्फ टाइगर के खात्मे वाले ऑपरेशन जैसा हो सकता है।’ सूत्रों ने यह भी बताया कि भारतीय सेना पूर्ववत क्षेत्रों में पूरी सक्रियता के साथ पट्रोलिंग करती रहेगी।

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अटल सरकार में भी किए गए थे ऐसे प्रयास

खबरों के मुताबिक ‘कासो (कॉर्डन ऐंड सर्च) और साड (सीक ऐंड डिस्ट्रॉय) ऑपरेशन की संख्या पहले की तुलना में कुछ कम जरूर की जा सकती है। हालांकि, इन दोनों ही ऑपरेशन की जरूरत क्षेत्र में स्थिता और सड़कों पर गाड़ियों की सुरक्षित आवाजाही के लिए बहुत जरूरी है। सूत्र ने यह भी बताया कि सेना का स्पष्ट मानना है कि ऐसे शांति प्रयासों के कोई दूरगामी असर नहीं निकलते हैं। 2000-2001 में जब अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में भी ऐसे प्रयास किए गए थे, तब भी नतीजा कुछ अधिक पक्ष में नहीं आया था। इसके उलट हिंसा की कुछ घटनाओं में इजाफा ही हुआ था।

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