तकनीक से गूंज रही आंगन में किलकारियां

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आज के युग में महिलाओं में करियर(careers) पर जोर, ज्यादा उम्र में शादी(marriage) और शादी के बाद नौकरी की व्यस्तताओं के कारण देर से गर्भधारण आम बात हो गई है। पहली बार गर्भधारण करने वाली महिलाओं की औसत उम्र भी बढ़ रही है, लेकिन इस बीच ध्यान रखने वाली बात यह है कि बढ़ती उम्र के साथ-साथ गर्भधारण की संभावनाएं भी कम होती जाती हैं। ऐसे में तकनीक महिलाओं को संतान-सुख दिलाने में मददगार साबित होती है।

फोर्टिस हॉस्पिटल्स में सलाहकार स्त्री रोग विशेषज्ञ और आईवीएफ विशेषज्ञ डॉ. मनीषा सिंह ने कहती हैं, “अगर हम कहें कि तकनीक एक दोहरी तलवार है तो गलत नहीं होगा। एक ओर मोबाइल फोन, कंप्यूटर व अन्य उपकरण हैं, जिनके रेडियोफ्रीक्वेंसी विकिरण के उत्सर्जन से स्वास्थ्य व प्रजनन क्षमता प्रभावित हो रही है और यह डीएनए स्तर पर माइक्रसेलुलर क्षति का भी कारण होता है, तो वहीं दूसरी ओर असिस्टेड रिप्रोडक्टिव टेकनीक (एआरटी) यानी सहायक प्रजनन तकनीक ने दुनियाभर के लाखों जोड़ों को संतान-सुख हासिल करने में सक्षम बनाया है।”

उन्होंने कहा, “हमारी जान-पहचान में कम से कम एक व्यक्ति ऐसा होता ही है, जिसने गर्भधारण में तकनीक की मदद ली होती है। यह अपने आप में इस बात का प्रमाण है कि कैसे तकनीक लगातार उन्नत हो रही है।”

पठानकोट स्थित अमनदीप हॉस्पिटल की स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. रश्मि सम्मी ने कहा, “अधिक उम्र के अलावा जीवनशैली संबंधी बदलाव और हार्मोन का अंसतुलन भी गर्भधारण में कठिनाइयां पैदा करने का कारण होता है। इन चुनौतियों से निपटने के लिए ज्यादा से ज्यादा महिलाओं को विज्ञान का सहारा लेना पड़ता है। वैज्ञानिकों का दावा है कि तकनीक किसी भी उम्र की महिला को अपना आनुवांशिक बच्चा पैदा करवाने में मददगार साबित हो रही है।”

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उन्होंने कहा, “बांझपन से जुड़ी समस्याओं के समाधान के लिए चिकित्सक और वैज्ञानिक लगातार मेहनत कर रहे हैं। इनमें से ज्यादा तरीके इन व्रिटो फर्टिलाइजेशन (आईवीएफ) पर आधारित हैं। यह संतानोत्पत्ति के लिए इस्तेमाल की जाने वाली सबसे लोकप्रिय तकनीक है।”

डॉ. रश्मि ने बताया, “आईवीएफ में महिलाओं के अंडाशय से अंडे लेकर उन्हें वीर्य के साथ मिलाया जाता है और लैब में निषेचित कराया जाता है। इसके बाद निषेचित अंडों को महिलाओं के गर्भाशय में रखा जाता है।

इनमें से किसी एक अंडे को सफलतापूर्वक स्वस्थ बच्चे के रूप में विकसित कराने की संभावना रहती है। यह प्रक्रिया मेडिकल जगत का बहुत बड़ा आविष्कार है। लेकिन अगर उम्र ज्यादा हो तो अंडों से वांछित नतीजे मिलने की उम्मीद नहीं रहती।”

इसी कड़ी में कॉम्प्रिहेंसिव क्रोमोसोमल स्क्रीनिंग (सीसीएस) आईवीएफ एक अच्छा उपाय बनकर सामने आई है। इस तकनीक में महिलाओं के गर्भाशय में भ्रूण को इस उम्मीद से रखा जाता है कि कम से कम एक अंडा सफल गर्भधारण करा सके। बहुत सारे भ्रूण रखने से एक साथ कई बच्चे पैदा होने की संभावना बनने का जोखिम रहता है, जो मां की जिंदगी के लिए खतरनाक भी हो सकता है।

आईवीएफ विशेषज्ञों के मुताबिक, सीसीएस के इस्तेमाल से स्वस्थ भ्रूण का पता लगाना आसान होता है। इस तकनीक के जरिए सबसे स्वस्थ भ्रूण को गर्भाशय में रखकर एक से ज्यादा बच्चा पैदा होने की आशंका टाली जा सकती है और इस तरह मां के जीवन को भी सुरक्षित रखा जा सकता है।

इस प्रक्रिया में भ्रूण का बायोप्सी सैंपल लेकर कंप्यूटर के जरिए विश्लेषण किया जाता है और किसी तरह की संभावित गड़बड़ी का पहले ही पता लगा लिया जाता है। यह प्रक्रिया आईवीएफ के जरिए स्वस्थ गर्भधारण सुनिश्चित कराने में मदद मिलती है।

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नई दिल्ली के अवेया फर्टिलिटी संस्थान के संस्थापक डॉ. साहिल गुप्ता के अनुसार, “यह आम चलन है कि अपनी मां की तुलना में महिलाएं खुद मां बनने में देरी कर रही हैं। मेडिकल तकनीक इस चलन को और बढ़ावा दे सकती है।

उदारहण के लिए महिलाएं अंडों को फ्रीज करवा कर अपनी फर्टिलिटी सुरक्षित करवा सकती हैं। इसका मतलब यह हुआ कि 27 साल की उम्र में फ्रीज करवाए अंडों से वे 38 की उम्र में भी मां बन सकती हैं।”

साहिल की बात पर समर्थन जताते हुए नई दिल्ली स्थित इंटरनेशनल फर्टिलिटी सेंटर (आईएफसी) की संस्थापक व अध्यक्ष डॉ. रीता बख्शी कहती हैं, “ज्यादा उम्र में अंडों से संतानोत्पत्ति की संभावना क्षीण हो जाने की चुनौती से निपटने के लिए ‘एग फ्रीजिंग’ बड़ा ही कारगर मेडिकल उपाय है।

इसमें महिला के अंडे लेकर क्राइपोप्रिजर्वेशन के जरिए फ्रीज कर रखा जाता है और मनोवांछित समय पर गर्भधारण कराने में उनका इस्तेमाल किया जाता है।”

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