कोटे के भीतर कोटे की मंजूरी… सुप्रीम कोर्ट ने दिया अहम फैसला…

सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों के फैसले को पलटा

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नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ( Supreme Court ) ने आज अनुसूचित जाति ( Schedule Caste ) और अनुसूचित जनजाति ( Schedule Tribe ) कोटे में कोटे की मंजूरी प्रदान कर दी है. कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि कोटे के अंदर कोटा असमानता के खिलाफ नहीं है. सुप्रीम कोर्ट में सात जजों की सुनवाई कर रही बेंच ने कहा कि राज्य सरकार अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के अंदर सब केटेगरी ( Sub Category ) बना सकती है जिससे मूल और जरूरत मंद लोगों को आरक्षण का लाभ मिल सके.

राज्य सरकार नहीं कर सकते मनमर्जी…

सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि कोटे के भीतर कोटा तर्कसंगत पर आधार पर होगा. इसको लेकर राज्य सरकारें मनमानी नहीं कर सकती. कोर्ट ने कहा कि राज्यों की गतिविधियां न्यायिक समीक्षा के अधीन होगी. इसके साथ ही अदालत ने 2004 में ईवी चिन्नैया मामले में दिए गए सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों के फैसले को पलट दिया है.

जानें क्या था 2004 का फैसला ?…

बता दें कि वर्ष 2004 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि राज्यों के पास आरक्षण देने के लिए अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति में सब केटेगरी करने का अधिकार नहीं है. एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट के समक्ष मुख्य मुद्दा एससी और एसटी कैटेगिरी के भीतर सब-कैटेगिरी (कोटे के भीतर कोटा) का है. इसमें कोर्ट ने बता दिया है कि राज्य विधानसभाओं के पास कोटा के भीतर कोटा लागू करने का अधिकार है.

जानें क्या है पूरा मामला…

गौरतलब है कि साल 1975 में पंजाब सरकार ने आरक्षित सीटों को दो श्रेणियों में विभाजित करके अनुसूचित जाति के लिए आरक्षण नीति पेश की थी. इसमें मुख्य रूप से एक-एक वाल्मीकि और मजहबी सिखों के लिए और दूसरी बाकी अनुसूचित जाति वर्ग के लिए था. सरकार का यह फैसला लागू रहा और साल 2006 में यह मामला पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट पहुंचा. वहं ईवी चिन्नैया बनाम आंध्र प्रदेश राज्य मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला दिया गया था. इसके बाद पंजाब सरकार को झटका लगा और इस नीति को रद्द कर दिया गया.

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100 फीसद आरक्षण की मंजूरी नहीं

सुनवाई के बाद फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि सब कैटेगरी की अनुमति देते समय राज्य किसी उप-श्रेणी के लिए सौ फीसद आरक्षण निर्धारित नहीं कर सकता. साथ ही, राज्य को उप-श्रेणी के अपर्याप्त प्रतिनिधित्व के संबंध में अनुभवजन्य आंकड़ों के आधार पर उप-वर्गीकरण को उचित ठहराना होगा.

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