सुभाष चंद्र बोस ने Port Blair पर पहली बार 78 साल पहले फहराया था तिरंगा

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इतिहास के पन्नों में ऐसे कई दिन और तारीख होते हैं, जो लोगों के जीवन भर याद रहते हैं। 30 December भी उन्हीं तारीखों में से एक है। 1943 में आज ही के दिन नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने पोर्ट ब्लेयर के रास द्वीप में यूनाइटेड फ्री इंडिया के प्रधानमंत्री के रुप में पहली बार तिरंगा फहराया था। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान कब्जे के बाद जापान ने आजाद हिंद सरकार को यह द्वीपसमूह सौंपा था।

सुभाष ने अंडमान का नाम शहीद द्वीप रखा था…

जब सुभासचन्द्र बोस ने 30 दिसंबर 1943 में तिरंगा फहराया तो उसके बाद उन्होंने अंडमान का नाम बदलकर शहीद और निकोबार का नाम बदल कर स्वराज रखा. बता दें कि सुभाष ने जो तिरंगा फहराया था, वो कांग्रेस का अपनाया गया तिरंगा ही था. जिसके बीच में सफेद पट्टी पर चरखा बना था. इसके बाद आजाद हिंद सरकार ने जनरल लोकनाथन को यहां अपना गवर्नर बनाया. 1947 में ब्रिटिश सरकार से मुक्ति के बाद ये भारत का केंद्र शासित प्रदेश है.

नेताजी ने कहा था कि हम भारतीय भूमि पर होंगे…

नेताजी ने इससे पहले जापान और सिंगापुर में अपने भाषणों में कहा भी था कि इस साल के आखिर तक आजाद हिंद फौज भारतीय धरती पर कदम जरूर रखेगी. जब पोर्ट ब्लेयर पहुंचे तो उन्होंने सेल्यूलर जेल जाकर यहां एक जमाने में बंदी बनाए गए भारतीय क्रांतिकारियों और शहीदों के प्रति श्रृद्धांजलि भी व्यक्त की.

फिर सुभाष ने क्या भाषण दिया था…

अंडमान पर भारतीय तिरंगा फहराने के बाद सुभाष 03 दिन यहां रहे. 01 जनवरी को वो सिंगापुर पहुंचे. सिंगापुर में उन्होंने भाषण में कहा, आजाद हिंद फौज हिंदुस्तान में क्रांति की वो ज्वाला जगाएगी, जिसमें अंग्रेजी साम्राज्य जलकर राख हो जाएगा. अंतरिम आजाद हिंद सरकार, जिसके अधिकार में आज अंडमान और निकोबार द्वीप समूह हैं और जिसे जर्मनी और जापान सहित विश्व के 09 महान देशों ने मान्यता दी है. उन्होंने हमारी सेना को भी पूरा समर्थन देने का वादा किया है.

क्या है अंडमान का मतलब…

अंमान शब्द मलय भाषा के शब्द हांदुमन से आया है जो हिन्दू देवता हनुमान के नाम का परिवर्तित रूप है. निकोबार शब्द भी इसी भाषा से लिया गया है जिसका अर्थ होता है नग्न लोगों की भूमि. सुन्दरता में एक से बढ़कर एक यहां कुल 572 द्वीप हैं.

आजादी की लड़ाई में क्या है इसका महत्व…

ब्रिटिश शासन द्वारा इस स्थान का उपयोग स्वाधीनता आंदोलन में दमनकारी नीतियों के तहत क्रांतिकारियों को भारत से अलग रखने के लिये किया जाता था. इसी कारण यह स्थान आंदोलनकारियों के बीच काला पानी के नाम से जाना जाता था. कैद के लिए पोर्ट ब्लेयर में एक अलग कारागार सेल्यूलर जेल का निर्माण किया गया था, जो ब्रिटिश इंडिया के लिए साइबेरिया की तरह ही था. इस जेल के अंदर 694 कोठरियां हैं. इन कोठरियों को बनाने का उद्देश्य बंदियों के आपसी मेल जोल को रोकना था. आक्टोपस की तरह सात शाखाओं में फैली इस विशाल कारागार के अब केवल तीन अंश बचे हैं. कारागार की दीवारों पर वीर शहीदों के नाम लिखे हैं. यहां एक संग्रहालय भी है जहां उन अस्त्रों को देखा जा सकता है जिनसे स्वतंत्रता सेनानियों पर अत्याचार किए जाते थे.

सुभाष के नाम पर यहां एक द्वीप भी है…

यहां पर एक द्वीप रास है, जिसे सुभाष चंद्र बोस द्वीप के नाम से भी जाना जाता है. ये ब्रिटिश वास्तुशिल्प के खंडहरों के लिए प्रसिद्ध है. ये द्वीप 200 एकड़ में फैला है. यहां बहुत ढेर सारे पक्षी रहते हैं.

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