किसानों के लिए मिसाल बने दिलीप, खेती-बाड़ी से कमा रहे करोड़ों

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हमारा देश कृषि प्रधान देश होने के बाद भी तकनीकी खेती से कोसों दूर है। इसका मुख्य कारण किसानों को सही जानकारी का न होना। साथ ही इसलिए भी क्योंकि हमारे देश में खेती करना एक छोटा काम माना जाता  है। तकनीकी जानकारी न होने की वजह से हमारे देश के किसानों की हालत भी दयनीय होती जा रही है। पारंपरिक खेती करने की वजह से किसानों को मुनाफा नहीं मिलता है। जिसकी वजह से किसान परेशान रहता है।

लेकिन धीरे-धीरे देश में खेती-बाड़ी की तरफ लोगों का रुझान दिखाई देने लगा है। क्योंकि सरकार और तमाम समाजसेवी संगठनों ने तकनीकी खेती करने के लिए किसानों को जागरुक करने में लगे हुए हैं। सरकार भी कई तरह की योजनाओं को  लांच कर रही है, जिससे किसानों को पारंपरिक खेती से अलग खेती करने की जनकारी मिलने लगी है।

कुछ ऐसी ही तकनीकी और गैरपारंपरिक खेती के जरिए गोंडा के मुजेहना इलाके में रहने वाले किसान दिलीप वर्मा ने कृषि के क्षेत्र में अपना परचम लहरा रहे हैं। दिलीप की मेहनत और तकनीकी खेती  की वजह से आज वो करोड़पति बन गए हैं। दिलीप करीब 21 एकड़ जमीन पर पपीते और केले की  केती कर मिसाल बन गए हैं। दिलीप एक मध्यम परिवार से ताल्लुक रखते  हैं।

पढ़ाई के बाद दिलीप ने एक चीनी मिल में  लिपिक की नौकरी कर परिवार के भरण पोषण में लग गए। कुछ दिन बाद दिलीप ने वो नौकरी छोड़कर एक प्राइवेट बैंक में नौकरी करने लगे। यहां उन्हें महज 25 हजार मिलते थे, जिससे उनके पूरे परिवार का किसी तरह से खर्च चल जाता था। लेकिन दिलीप उससे संतुष्ट नहीं थे।

साल 2015 में बैंक में ही एक किसान ने दिलीप को फल की खेती से जुड़ी जानकारी दिलीप को दी। जिससे उन्हें इस खेती में पायदा दिखा। दिलीप ने अपने परिवार से इस बात पर गहन विचार-विमर्श किया। दिलीप ने दृढ़ निश्चय के साथ ही  बैंक की नौकरी छोड़ दी और गांव से कुछ दूरी पर 21 एकड़ जमीन लीज पर ले ली और उसमें केले की खेती शुरू कर दी।

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और अप्रैल 2016 में चार एकड़ जमीन पर पपीते की खेती भी शुरू कर दी। दिलीप बताते हैं कि रोपाई के लिए उन्होंने लखनऊ से ताइवान 487 नामक प्रजाति लेकर आए थे। धीरे-धीरे दिलीप की मेहनत और लगन रंग लाने लगी और अच्छा फायदा होने लगा। दिलीप के मुताबिक आज के समय में वो केले और पपीते से करीब एक करोड़ रुपए सालाना कमा रहे हैं। जिसमें पपीते से सिर्फ 25-30 लाख रुपए आता है।

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