सोशल मीडिया पर ‘गाली’ देना पड़ेगा महंगा

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सोशल मीडिया में गाली-गलौज की भाषा और आक्रामक टिप्पणियों पर सुप्रीम कोर्ट सख्त है। इसे रोकने के लिए कोर्ट ने नियम बनाने पर जोर दिया है। मुख्य न्यायाधीश जस्टिस दीपक मिश्र, एएम खानविलकर और डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ ने बुधवार को सोशल मीडिया में जजों, न्यायिक प्रक्रिया पर बेलगाम टिप्पणियों पर चिंता जताई।

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अब यह काम कोई सामान्य आदमी भी कर सकता है…

यूपी के पूर्व मंत्री आजम खां की टिप्पणियों से जुड़े एक मामले की सुनवाई के दौरान यह मुद्दा उठा। कोर्ट ने कहा कि लोग तथ्यों की जांच किए बगैर अदालत की कार्यवाही के बारे में भी गलत जानकारी फैला देते हैं। पहले किसी की निजता का सिर्फ सरकार उल्लंघन कर सकती थी। लेकिन, अब यह काम कोई सामान्य आदमी भी कर सकता है।

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यह मुद्दा संविधान पीठ के पास भेज दिया गया है

इस पर वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे ने कहा कि सोशल मीडिया पर इतनी गलत सूचनाओं और गलत भाषा का इस्तेमाल किया जाता है कि मैनें अपना ट्विटर अकाउंट बंद कर दिया। एक अन्य वरिष्ठ वकील एफएस नरीमन ने कहा कि उन्होंने सोशल मीडिया पर की जाने वाली टिप्पणियां देखना बंद कर दिया है। इस बीच, मंत्री या सार्वजनिक पद पर बैठा व्यक्ति आपराधिक मामले की जांच लंबित रहने पर किस हद तक बयानबाजी कर सकता है, यह मुद्दा संविधान पीठ के पास भेज दिया गया है।

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कोर्ट ने उनके खिलाफ अवमानना कार्रवाई खत्म कर दी थी

इस मामले में सुनवाई बुलंदशहर सामूहिक दुष्कर्म कांड में उप्र के तत्कालीन मंत्री आजम खां की टिप्पणी पर पीड़िता की ओर से सुप्रीम कोर्ट में आपत्ति उठाए जाने के बाद शुरू हुई थी। आजम खां के माफी मांगने के बाद कोर्ट ने उनके खिलाफ अवमानना कार्रवाई खत्म कर दी थी।

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न्यायालय का मददगार नियुक्त कर रखा है

लेकिन सार्वजनिक पदों पर बैठे लोगों के आपराधिक मामलों के बारे में, जिसकी जांच लंबित हो, बयानबाजी करने पर सुनवाई शुरू की थी। कोर्ट ने इस बारे में चार कानूनी प्रश्न तय किये थे, जिनमें सार्वजनिक पद पर बैठे व्यक्ति की अभिव्यक्ति की आजादी के दायरे का मसला शामिल है। गुरुवार को सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वकील नरीमन और साल्वे की ओर से उठाए गए सवाल महत्वपूर्ण हैं। इस पर पांच जजों की संविधान पीठ को विचार करना चाहिए। कोर्ट ने नरीमन और साल्वे को न्यायालय का मददगार नियुक्त कर रखा है।

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