हिंदुओं में बलि प्रथा… इस्लाम में कुर्बानी… आस्था नहीं है जीव हत्या

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हिंदुओं में बलि प्रथा… तो इस्लाम में कुर्बानी… आखिर आस्था के लिए क्यों दी जाती निर्दोष जीवों की बेरहमी से हत्या की जाती है। यह सवाल लोगों द्वारा जब भी उठाया जाता है तो धार्मिक संगठन अपनी-अपनी धारणाओं की दुहाई देने लग जाते हैं। यहां गौर करने वाली बात ये है कि धर्म की प्रासंगिता अलग-अलग है, लेकिन पशु हत्या दोनों में समान ही होती है। हम यहां किसी धर्म विशेष पर टिप्पणी ना कर के सामान्य तर्क पर निकाले गए निष्कर्ष के आधार पर इस तथ्य को साझा कर रहे हैं।

आस्था नही कराती जीव हत्या

इस्लाम धर्म में इन दिनों बकरीद त्यौहार को लेकर पशु हत्या पर रोक लगाने की मांग की जा रही है। इस्लाम में बकरीद पर्व कुर्बानी का दिन कहा गया है। इस पर्व पर मुस्लिम लोग अपनी प्रिय वस्तु के रूप में बकरे की कुर्बानी देते हैं। इसलिए अब पशु हत्या को हिंसा मानते हुए लोग इसे बंद करने की अपील कर रहे हैं। हालांकि ये कोई पहली बार नही हो रहा है, बल्कि काफी समय से त्यौहार आने पर इस विषय पर आवाज उठाई गई है। मगर, क्या केवल इस्लाम धर्म के भीतर ही है। सालों से हिंदू धर्म में भी किसी ना किसी रूप में पशु की बलि चढ़ाने की प्रथा प्रचलित है। इस तरह की प्रथाएं अभी गांव में शादियों व मंदिरों में देखी जाती हैं।

हिंदुओं में बलि पर हैं ढेरों किस्से

हिन्दू धर्म में खासकर मां काली और काल भैरव को बलि चढ़ाई जाती है। कई बार अन्य देवियों के दरबार में भी बलि आज भी ली जाती है। इसके अलावा हिंदू रीति-रिवाजों के अंतर्गत कई हिंदू समुदायों में पशु की बलि ली जाती है। खासकर शादी-ब्याह में कुल देवता को प्रसन्न करने के लिए ये बलि दी जाती है। यहां मान्यता होती है कि अगर कुल देवता को बलि नहीं दी जाएगी तो वो नाराज हो जाएंगे और अनिष्ट कर देंगे। माना ये भी जाता है कि इंसान अपनी इच्छा पूर्ति के लिए मां काली को पशुओं की बलि देता है।

हजरत इब्राहिम ने दी थी पहली कुर्बानी

वहीं इस्लाम धर्म में बलि के स्थान पर कुर्बानी दी जाती है। कुरान के अनुसार, बकरीद-उल-जुहा के दिन मुस्लिम समुदाय बकरे की कुर्बानी देते हैं। यहां इनकी ये धारणा होती है कि उनके अल्लाह मोहम्मद साहेब को मुस्लिमों द्वारा दी गई कुर्बानी से खुश किया जाता है। बकरीद को लेकर एक किस्सा भी प्रचलित है। एक बार हजरत इब्राहिम नाम के व्यक्ति ने मोहम्मद साहेब के लिए अपना प्रिय बेटा कुर्बान कर दिया था। व्यक्ति अपने बेटे से प्यार करता था। लेकिन वह अल्लाह को भी प्यार करता था। इसलिए उसने अपने बेटे की ही कुर्बानी दे दी। जिसके बाद से ही हर साल बकरीद पर मुस्लिम लोग बकरे के रूप में कुर्बानी देते हैं।

आस्था से बाहर हैं बलि व कुर्बानी 

यहां ये जान लेना भी जरूरी है कि बलि या कुर्बानी के अंतर्गत बकरा, मुर्गा या भैंसे की हत्या किए जाने का प्रचलन है। इस तरह आस्था के रूप में ये बलि और कुर्बानी कई धर्मों में देखने को मिलती है। वहीं कुछ धर्म विशेषज्ञों का मानना है कि बलि और कुर्बानी महज़ अंधविश्वास के चलते ली जाती है। इसमें आस्था का कोई समारूप नही है। हमने यहां दोनों ही धर्मों में ली जाने वाली बलि के अवधारणा को स्पष्ट कर दिया है।

हिंदू धर्म

बलि प्रथा मानव जाति में वंशानुगत चली आ रही एक सामाजिक प्रथा अर्थात सामाजिक व्यवस्था है। इस पारम्परिक व्यवस्था में मानव जाति द्वारा मानव समेत कई निर्दोष प्राणियों की हत्या यानि कत्ल कर दिया जाता है। विश्व में अनेक धर्म ऐसे हैं, जिनमें इस प्रथा का प्रचलन पाया जाता है।

इस्लाम धर्म

बकरीद पर्व ही कुर्बानी का पर्व है। यह हजरत इब्राहिम के अल्लाह के प्रति अपने बेटे इस्माइल की कुर्बानी की याद में मनाया जाता है। यह इस वाकये को दिखाने का तरीका है कि हजरत इब्राहिम अल्लाह में सबसे ज्यादा विश्वास करते थे। दरअसल अल्लाह पर विश्वास दिखाने के लिए उन्हें अपने बेटे इस्माइल की बलि देनी थी।

 

अब सवाल ये उठता है कि आखिर क्या आस्था इतनी कमजोर होती है कि वह किसी जीव की हत्या करा सकें। धर्म कोई भी हो, ईश्वर हो या अल्लाह, कभी पशुओंं की हत्या की मंजूरी नहीं दे सकते हैं। हर धर्म में ये बताया गया है कि धरती पर जीवों को ईश्वर (अल्लाह) ने पैदा किया है। फिर, जरा सोचिए, क्या आपका खुदा या ईश्वर अपनी ही संतानों की हत्या के लिए आपको आदेश दे सकता है क्या? इस मसले में समय-समय पर धर्मगुरुओं के बयान भी आते रहते हैं। कई बार कुछ धर्मगुरुओं ने भी इस बात को स्वीकृति दी है कि जीव हत्या स्वीकार नही हो सकती।

 

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