आजमगढ़: बदहाल कानून व्यवस्था पर रिहाई मंच ने जारी की रिपोर्ट

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रिहाई मंच ने आजमगढ़ के फूलपुर में पत्रकार संतोष जायसवाल पर दर्ज मुकदमा, निज़ामाबाद-फरिहा के करीब सुराही गांव के अरशद की दाऊदपुर में और सरायमीर के करीब बैतूल उलूम मदरसे के शफीर मौलाना मसरूर की कुरियावा गांव में बच्चा चोरी के नाम पर हुई पिटाई की घटनाओं को लेकर पीड़ित पक्षों से मुलाक़ात की। इस दौरे में लखनऊ से सृजनयोगी आदियोग, रिहाई मंच महासचिव राजीव यादव, गाजियाबाद से सत्य शोधक संघ के अजय, शाहआलम शेरवानी, मसीहुद्दीन संजरी, सालिम दाउदी, विनोद यादव, तारिक शफ़ीक़ मौजूद रहे।

प्रदेश में दलितों और पिछड़ों की लगातार हो रही हत्याओं और पत्रकारों के खिलाफ दमनात्मक कार्रवाइयों से एक तरफ जहां दहशत का माहौल है वहीं संविधान प्रदत्त अभिव्यक्ति की आज़ादी और सूचना के अधिकार का गला घोंटा जा रहा है। बच्चा चोरी की अफवाहों के चलते गरीब और मज़दूर वर्ग के लोगों की पिटाई की घटनाएं आज़मगढ़ में कई जगह हो चुकी हैं। इसके बावजूद पुलिस-प्रशासन ने इन अफवाहों पर काबू पाने के लिए न तो कोई जागरण अभियान चलाया और न ही दोषियों के खिलाफ कोई कठोर कार्रवाई की।

सूबे में सरकार और प्रशासन को आइना दिखाने वाली कोई खबर छापने की पत्रकार अगर हिम्मत करते हैं तो उन्हें प्रताड़ित किया जाता है। ऐसे ही एक मामले में फूलपुर के पत्रकार संतोष जयसवाल ने एक स्कूल में बच्चों के झाड़ू लगाने की तसवीर और खबर साझा की तो स्कूल प्रबंधन से मिलकर पुलिस ने उस पर फर्जी मुकदमा कायम किया और जेल भेज दिया। पत्नी पुलिस के भय से घर में ताला लगाकर मायके चली गईं।

आज़मगढ़ का दौरा करने के बाद रिहाई मंच ने कहा कि हाल की घटनाएं योगी सरकार के दलित, पिछड़ा, अल्पसंख्यक और गरीब विरोधी चेहरे को बेनकाब करती हैं। पुलिस का मनोबल इस कदर बढ़ा हुआ है कि अगर कोई पत्रकार ऐसे किसी मामले का पर्दाफाश करता है तो दोषियों के खिलाफ कार्रवाई करने के बजाए पुलिस पत्रकारों को फर्जी मुकदमें कायम कर जेल भेज दे रही है।

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जनपद के कुरियावां गांव में मदरसा बैतुल उलूम के सफीर (चंदा जमा करने वाले) मौलाना मसरूर को स्थानीय लोगों ने बच्चा चोरी का आरोप लगाकर बुरी तरह पीट दिया। मसरूर ने अपना परिचय भी दिया और कई लोगों ने उसे पुष्ट भी किया तो भी करीब दो सौ लोगों की भीड़ मौलाना मसरूर पर टूट पड़ी। इसमें मुसलमान भी शामिल थे। कुछ लोगों ने जरुर जैसे तैसे बीच-बचाव किया लेकिन तब तक उनको बुरी तरह पीटा जा चुका था। मदरसे के लोगों ने स्थानीय थाना सरायमीर में प्राथमिकी दर्ज करवाई लेकिन पुलिस ने दूसरे पक्ष से तहरीर लेकर मसरूर के खिलाफ भी प्राथमिकी दर्ज कर ली। इस तरह बच्चा चोर कहकर एकतरफा पिटाई को क्रास केस में तब्दील कर दिया गया।

ग्राम सुराही के इरशाद अहमद मज़दूरी करते हैं। ग्राम माधव पट्टी के पास बच्चों के स्कूल में छुट्टी का समय पूछा। यही समय उनकी छुट्टी का भी होता था। इतना सुनना था कि वहां मौजूद लोगों ने उनको पीटना शुरू कर दिया। उन्होंने बताया कि घटना स्थल से एक किलोमीटर पर ग्राम दाऊदपुर में उनकी ससुराल है, कि वह बच्चा चोर नहीं हैं लेकिन भीड़ ने उनकी एक न सुनी और उन्हें बुरी तरह घायल कर दिया। ग्राम लुहसां थाना गंभीरपुर में भी दो बिहारी मज़दूरों को बच्चा चोरी का आरोप लगाकर लोगों ने पीट दिया। कुछ समझदार लोगों के हस्तक्षेप पर उन्हें पुलिस के हवाले कर दिया गया लेकिन कानून को हाथ में लेने वालों के खिलाफ कोई प्राथमिकी तक दर्ज नहीं की गई। जनपद में इसी तरह की घटनाएं लाटघाट, छतवारा समेत कई अन्य स्थानों पर भी हो चुकी हैं लेकिन सरकार या प्रशासन की तरफ से इस तरह के हिंसक हमलों के खिलाफ किसी तरह का जागरण अभियान नहीं चलाया गया। इसके बरअक्स वाहनों की चेकिंग दिन–रात चल रही है और एक ही थाना क्षेत्र के पुलिस अधिकारी एक साथ कई स्थानों पर इस काम में लगे रहते हैं।

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पीड़ित द्वारा अपना परिचय देने के बाद भी बच्चा चोरी के नाम पर इस तरह की घटनाएं मॉब लिंचिंग का नया रूप हैं। अपराधियों के हौसले बुलंद हैं। हों भी क्यों नहीं, जब किसी पहलू खान को सरेआम लिंच किया जाए और उसका वीडियो भी अपलोड किया जाए लेकिन अदालत से सभी आरोपी सबूतों के अभाव में बरी हो जाएं। अलीमुद्दीन अंसारी के हत्यारोपियों का केंद्रीय मंत्री फूल–माला पहना कर स्वागत करें और इस तरह हत्यारी भीड़ को सत्ता सरंक्षण को स्पष्ट संकेत दें। इन्स्पेक्टर सुबोध कुमार के हत्यारोपियों को जमानत मिलने पर जय श्रीराम के जयकारे के साथ उनका ऐसा स्वागत हो गोया वे कोई जंग जीतकर लौटे हों। तबरेज़ अंसारी की सात घंटे तक लिंचिंग हो और अस्पताल में उसकी मौत का कारण दिल का दौरा बताकर पुलिस आरोपियों के खिलाफ धारा 302 हटाकर धारा 304 में आरोप पत्र दाखिल करे तो रक्त पिपासुओं को अगली वारदात करने से कौन रोक सकता है। जनपद में लगातार हो रही अम्बेडकर प्रतिमाओं की तोड़फोड़ को भी इसी संदर्भ में देखा जा सकता है।

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आज़मगढ़ से लगे मऊ जिले के घोसी कोतवाली क्षेत्र में ट्रैक्टर की बैट्री चुराने का आरोप लगाकर ओंकेश यादव की पिटाई की जाती है। मौके पर पहुंची कोतवाली पुलिस गंभीर रूप से घायल ओंकेश का इलाज करवाए बिना धारा 379 के तहत मामला दर्ज करके उसे जेल भेज देती है। दो दिन बाद उसकी हिरासत में ही मौत हो जाती है। घर का इकलौता चिराग़ ही नहीं बुझता बल्कि बूढ़े माता-पिता पर उसके तीन मासूम बच्चों की परवरिश का बोझ भी चढ़ जाता है। आज़मगढ़ के सीमावर्ती मऊ के चिरैयाकोट थाना के असलपुर गांव के दलित प्रधान मुन्ना राव बाग़ी पोखरे की नीलामी में थे। इसी बीच सामंती तत्वों ने गोली मार कर उनकी हत्या कर दी।

यह घटनाएं प्रदेश सरकार के अपराधमुक्त प्रदेश बनाने के दावे को न केवल खारिज करती हैं बल्कि सत्ता के करीबी अपराधियों और भ्रष्ट आचरण वाले रसूखदारों के पक्ष में खड़ी नज़र आती है। इससे यह संदेश भी जाता है कि कानून व्यवस्था के नाम पर समाज के हाशिए पर खड़े वर्ग के जानमाल की कीमत पर सरकार यह दिखाना चाहती है कि वह प्रदेश को अपराधमुक्त बनाने के लिए कड़े कदम उठा रही है।

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