किसान परिवार से हैं यूपीएससी टॉपर, बेटे को IAS बनाने के लिए पिता ने बेच दिया था घर
मध्य प्रदेश की व्यावसायिक राजधानी इंदौर के प्रदीप सिंह का नाम हर तरफ चर्चा में है। उन्होंने संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) में बड़ी सफलता हासिल की है। उन्होंने पूरे देश में टॉप किया है। प्रदीप को हर संभव सुविधा मुहैया कराने के लिए पिता मनोज सिंह ने न केवल पेट्रोल पंप में पेट्रोल भरने की नौकरी की, बल्कि पुश्तैनी जमीन तक बेच दी।
प्रदीप बचपन से ही पढ़ने में अच्छे रहे हैं। बचपन से उनके दादा यही कहते थे कि बेटा ऐसा कुछ काम करना जिससे परिवार का नाम रौशन हो। प्रदीप का नाता बिहार के गोपालगंज से है। बिहार के छात्र बड़ी संख्या में आईएएस और आईपीएस बनते हैं, बस यहीं से उनके दिमाग में एक बात बैठ गई कि आईएएस बनना है।
2018 की यूपीएससी में 93 रैंक हासिल की थी-
प्रदीप के पिता मनोज सिंह नौकरी की तलाश में बिहार के गोपालगंज से इंदौर आ गए। उन्होंने प्रदीप को पढ़ाई के लिए हर संभव सुविधा मुहैया कराने की कोशिश की। मनोज एक साल पहले तक पेट्रोल पंप पर नौकरी किया करते थे। प्रदीप ने वर्ष 2018 की यूपीएससी में 93 रैंक हासिल की थी और वह वर्तमान में आयकर विभाग में असिस्टेंट कमिश्नर हैं।
लेकिन प्रदीप आईएएस बनना चाहते थे, और इसलिए उन्होंने नौकरी से छुट्टी लेकर तैयारी की और दूसरी बार यूपीएससी की परीक्षा में बैठे। इस बार वह न केवल आईएएस बन गए, बल्कि उन्होंने पूरे देश में टॉप किया है।
परिवार ने सबकुछ दांव पर लगाया-
प्रदीप ने देवी अहिल्या बाई विश्वविद्यालय के इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ प्रोफेशनल स्टडीज से 2017 में बीकॉम ऑनर्स की पढ़ाई पूरी की। उसके बाद प्रदीप दिल्ली कोचिंग करने जाना चाहते थे, मगर आर्थिक स्थिति आड़े आई। परिवार के सदस्यों ने अपना सबकुछ दांव पर लगाकर प्रदीप को सुविधाएं दिलाई।
प्रदीप के पिता मनोज का कहना है कि आज का दिन कभी नहीं भूलने वाला दिन है। कुछ साल पहले इसकी कल्पना भी नहीं की थी कि बेटा देश में नाम रोशन करेगा।
परिजन बताते हैं कि प्रदीप दिल्ली में रहकर यूपीएससी की तैयारी करना चाहता थे, लेकिन आर्थिक इसकी अनुमति नहीं देती थी। उनके पास इतना पैसा नहीं था कि दिल्ली में कोचिंग की फीस दी जा सके और अन्य खर्च उठाए जा सकें। इसके बाद भी पिता मनोज सिंह ने हार नहीं मानी और बेटे की कोचिंग के लिए अपना घर तक बेच दिया।
बेच दी पुश्तैनी जमीन-
मनोज बताते हैं कि दिल्ली में कोचिंग फीस डेढ़ लाख रुपये थी। बाकी पढ़ाई के अन्य खर्चे भी थे। कुछ समय बाद गांव की पुश्तैनी जमीन बेची। लेकिन बेटे को कभी कुछ नहीं बताया। उसे सिर्फ पढ़ाई पर ध्यान रखने को कहते रहे।
प्रदीप भी अपनी सफलता से संतुष्ट हैं। वह कहते हैं कि पोस्ट और कैडर मायने नहीं रखता। जिस काम के लिए हमने मेहनत की है, उसके जरिए बदलाव लाना चाहते हैं। मेहनत करने से सफलता मिली और परिजनों की दुआ काम आई।
परिवार के सदस्यों में प्रदीप का एक भाई संदीप और मां अनीता सिंह हैं। पिछले साल जब यूपीएससी की परीक्षा थी तब उनकी मां की तबीयत ठीक नहीं थी। पिता ने मां की तबीयत ठीक न होने की बात प्रदीप को इसलिए नहीं बताई ताकि उनकी पढ़ाई पर कोई असर न पड़े।
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