आसान नहीं था साधारण लड़की से स्पोर्ट्स वूमेन बनने का ये सफर
मुफलिसी का आलम ये था कि 2014 ग्लासगो राष्ट्रमंडल खेल में हिस्सा लेने के लिए पूनम के पिता ने भैंस बेच दिए थे। जब वहां कांस्य पदक जीता तो मिठाई बांटने के लिए पैसे नहीं थे। बीते दिन का जिक्र करते ही पूनम का मां और दादी की आखों से आंसू की धारा फूट पड़ती है। मां बाप के खेतों में काम से लेकर घर में भैंस और अन्य जानवरों को चारा देने तक का काम पूनम ही करती थी, लेकिन किस्मत को तो कुछ और ही मंजूर था।
मेडल जीत कर देश का किया नाम रौशन
बनारस में आज सबकी जुबां पर बस एक ही नाम है। और वो है पूनम यादव का नाम। बनारस के दांदूपुर गांव निवासी किसान की बेटी पूनम यादव ने राष्ट्रमंडल खेल गोल्ड मेडल जीतकर न ही देश का मान बढ़ाया, बल्कि अपने मां बाप के उस सपने को भी पूरा किया, जो उन्होंने मुफलिसी के दौर में कभी अपनी खुली आंखों से देखे थे। राष्ट्रमंडल खेल में जब पूनम ने वेटलिफ्टिंग में भारत को पांचवा गोल्ड मेडल दिलाया तो उनके परिवार,गांव सहित पूरे बनारस में में खुशी का माहौल छा गया। पूनम ने कहा कि देश के लिए गोल्ड मेडल जीतना गर्व की अनुभूति है। ये मेडल देश और बनारस को समर्पित है।
2014 के ग्लासगो राष्ट्रमंडल खेल में कांस्य पदक जीता
हर कोई अपनी लाडली की इस उपलब्धि पर फूला नहीं समा रहा है। यही वजह है कि आज पूनम के घर पर जश्न का माहौल है। सीएम योगी, पीएम मोदी,राष्ट्रपति, सहित कई बड़े नेताओं ने पूनम की इस उपलब्धि पर शुभकामनाएं दी है। शहर के सभी खिलाड़ी, जनप्रतिनिधिओं ने पूनम के घर पहुंच कर खुशियां मनाईं। 2014 के ग्लासगो राष्ट्रमंडल खेल में पूनम ने कांस्य जीतकर भारत को दिया था।
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इस उपलब्धि से पूनम के परिजन बेहद खुश हैं। वजह आज पूनम जिस मुकाम पर है, शायद उसकी कल्पना भी परिवार में किसी ने नहीं की थी। पिता कैलाश यादव मामूली किसान हैं और पूनम अब रेलवे में टीटीई है। मां का सपना था कि बेटी इस बार गोल्ड लाए और वो पूरा हो गया। पूनम की मां का कहना है कि बिटिया ने जब से खेलना शुरु किया है, तो घर का हर कमरा मेडल, शील्ड और सर्टिफिकेट से भरा हुआ है। बस कमी है तो गोल्ड की, जो उनकी बेटी ने आज जीतकर पूरा कर दिया।
गरीबी में बीता पूनम का बचपन
पूनम पांच बहन और दो भाइयों में चौथे पर नंबर है। मां उर्मिला जहां आज बेटी पूनम की उपलब्धि पर फूले नहीं समा रही है, वहीं बीते दिनों को याद नहीं करना चाहती। संघर्ष की बात पूछते ही मां उर्मिला ने भरे गले से कहा कि उन दिनों के बारे में अब मत पूछिए क्योंकि वह दौर हम सब भूलना चाहते हैं। बेटी घर में कुछ अलग करना चाहती थी, लेकिन गरीबी और मुफलिसी की वजह से हम सब उसकी मदद नहीं कर पा रहे थे।
खाली पेट रहकर पूनम करती थीं अभ्यास
हालात ऐसे थे कि ग्राउंड में अभ्यास करने के बाद पूनम को घर आकर भूखे पेट सोना पड़ता था। इन सब वजहों से एक बार तो टूटने लगी थी, लेकिन घर वालों ने उसे हिम्मत दी और इसी हिम्मत का नतीजा है कि आज उनकी बेटी एक के बाद एक उपलब्धि हासिल कर परिवार, बनारस और देश का नाम रोशन कर रही है। वहीं पूनम की दादी संदेयी अपनी पोती को इस ऊंचाई पर देखकर बेहद खुश हैं। उनका कहना था कि जब एक बार पूनम को वजन उठाते देखा, तो खूब रोई। डर लगता था कि इतना भारी लोहा कैसे उठाती है।
खेतों में पिता के साथ करती थीं काम
पूनम खेतों में खूब मेहनत करती थी। मां बाप के खेतों में काम से लेकर घर में भैंस और अन्य जानवर पालने व उनको चारा देने से लेकर साफ-सफाई तक का काम पूनम ही करती थी, लेकिन किस्मत को तो और कुछ मंजूर था। यही वजह है कि पूनम ने इन सब चीजों को छोड़कर सिर्फ और सिर्फ अपना ध्यान खेल में लगाया, जिसका नतीजा यह है कि आज वह अपने परिवार के साथ देश का नाम रोशन कर रही है।
आसान नहीं था पूनम के लिए ये सफर
पूनम के अचानक से साधारण लड़की से स्पोर्ट्स वूमेन बनने की कहानी भी काफी रोचक है। पूनम की मां ने बताया कि उसके पिता कैलाश ने कर्णम मल्लेश्वरी का गेम्स देख कर बेटी को वेटलिफ्टर बनाया। 2011 में बड़ी बहनों को देखकर पूनम ने ग्राउंड जाना शुरू किया। वहां लोग भी ताना मारा करते थे। गरीबी के चलते पूरी डाइट नहीं मिल पाती थी। यह बात पूनम ने अपने गुरु स्वामी अड़गड़ानंद जी से बताई, जिस पर स्वामी जी ने उसे एक स्थानीय समाजसेवी और नेता सतीश फौजी के पास भेजा। उन्होंने पूनम को खिलाड़ी बनाने में पूरा आर्थिक योगदान दिया।