पंचातय चुनाव- कोरोना की मार, डिजिटल हो रहा प्रचार
गांव की सरकार चुनने के लिए हो रहे पंचायत चुनाव में किस्मत आजमा रहे प्रत्याशी का माहौल तब तक नहीं बनता जब तक वह कई दिनों तक गांव के बड़े-बूढ़ों का पांव छूकर आशीर्वाद ना ला ले
गांव की सरकार चुनने के लिए हो रहे पंचायत चुनाव में किस्मत आजमा रहे प्रत्याशी का माहौल तब तक नहीं बनता जब तक वह कई दिनों तक गांव के बड़े-बूढ़ों का पांव छूकर आशीर्वाद ना ला ले. अब इस बार डिजिटल चुनाव की हो रही है तैयार. खाने-पीने के शौकीनों को कई राउंड उनकी मनपसंद दावत का इंतजाम ना करे. महिलाओं तक उपहार ना पहुंचाए. लेकिन कोरोना ये करने नहीं दे रहा है. दूसरे फेज में लौट के आया तो पंचायत चुनाव पर भी कहर बरपा रहा है. संक्रमण के डर से डोर टू डोर कनवेंसिंग छोड़कर कैंडिडेट्स डिजिटल प्लेटफार्म पर प्रचार में जुट गए हैं. विधान सभा, लोकसभा चुनाव की तरह पंचायत चुनाव में डिजिटल प्रचार का जोर है. इसका जिम्मा ले ले लिया है बड़े-बड़े शहरों में स्थापित कम्पनियों ने.
हर तरह के डिजिटल पैकेज हैं मौजूद
पंचायत चुनाव में डिजिटल प्लेटफार्म पर प्रत्याशियों के प्रचार का जिम्मा लेने वाली नोयडा स्थित कम्पनी के फाउंडर प्रवीण कुमार सोनी बताते हैं कि मार्च में कोरोना का कहर बढ़ते ही प्रत्याशियों ने डिजिटल प्लेटफार्म पर प्रचार का तरीका अपना लिया. प्रत्याशियों 15 दिन से लेकर दो महीने तक का पैकेज बुक कराया है. बकायादा इसके लिए कम्पिनयों को पेमेंट भी किया है. कम्पनियों के पास उनके लिए हर तरह के पैकेज मौजूद हैं.
-प्रत्याशी आडियो, वीडियो और टेक्स्ट फार्मेट में प्रचार करा रहे हैं.
-पैकेज का रेट वोटर्स और मैसेज की संख्या पर तय हो रहा है.
-फेसबुक और ट्विटर पर प्रचार के लिए एक महीने का एक लाख चार्ज कर रही हैं कम्पनियां
-यूट्यूब पर चार्ज हर बार मैसेज के रन करने के मुताबिक हो रहा है.
-50 हजार टैक्स्ट मैसेज के लिए 15 से 20 हजार रुपये का पैकेज है
-वाह्टसएप मैसेज का पैकेज का 20 से 25 हजार प्रति माह में मिल जा रहा है.
-आडियो मैसेज में वोटर्स के मोबाइल पर बकायदा फोन काल जा रहा उसमें कैंडिडेट की बातें होती हैं.
-वीडियो मैसेज एक बेहतर जरिया बन रहा वोटर्स को आकर्षित करने का
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वाह्टसएप का हो रहा जबरदस्त यूज
वाह्टसएप सोशल मीडिया का जबरदस्त प्लेटाफार्म है. पंचायत चुनाव में किस्तम आजमा रहे प्रत्याशी इसका पूरा फायदा उठा रहे हैं. उनके पास अपने लगभग सभी वोटर्स के नम्बर होते हैं. जिनके पास स्मार्ट फोन है उनका ग्रुप बनाकर कम्पनियों के जरिए सुबह-शाम अपना मैसेज भेज रहे हैं. यह एसा प्लेटफार्म पर जिस पर हर फार्मेट में मैसेज आसानी से भेजा जा सकता है. इसके साथ ही वोटर्स के सजेशन और रियेक्शन जाना जा सकता है. इस काम के लिए कम्पियों ने बकायदा जगह-जगह टीम बना रखी है. जो लगातार मैसेज को वोटर्स तक सेंड करते हैं. प्रवीण बताते हैं कि इस वक्त काम काफी ज्यादा होने से उनकी कम्पनी से जुड़े लोग दो से तीन शिफ्ट में काम कर रहे हैं.
डिजिटल हो गए हैं गांव वाले
साफ्टवेयर इंजीनियर दीपक सनेही बताते हैं कि गांवों में भी बड़ी संख्या में लोग स्मार्ट फोन यूज कर रहे हैं. एक अनुमान के अनुसार यूपी में फोन करने वालों में 70 प्रतिशत के पास स्मार्ट फोन है. इनमें से 30 परसेंट लोग गांव के हैं. वो डिजिटल प्लेटफार्म पर एक्टिव भी रहते हैं. इसका फायदा इस वक्त कैंडिडेट्स को मिल रहा है. कोरोना के इस काल में जब सोशल डिस्टेंसिंग सबसे ज्यादा जरूरी है तब वोटर्स तक अपनी बात आसानी से पहुंचा पा रहे हैं. इस तरह का प्रचार विधानसभा और लोकसभा चुनाव में ज्यादा होता था लेकिन इस बार पंचायत चुनाव में काफी ज्यादा हो रहा है.
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सबको लग रहा डर
कोरोना का कहर दिन ब दिन बढ़ता जा रहा है. हर दिन संक्रमितों के साथ मौतों की बढ़ती संख्या ने हर किसी को डरा दिया है. यह डर पंचायत चुनाव में किस्मत आजमा रहे प्रत्याशियों और वोटर्स को भी सता रहा है. यूपी में चार चरण में होने वाले त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव के पहले दो चरण तो जैसे-तैसे निकल गए लेकिन अंतिम दो चरण काफी मुश्किल भरे मालूम होते हैं. प्रत्याशियों के सामने समस्या है कि संक्रमण से बचें या प्रचार करें. वहीं वोटर्स भी चाहते हैं कि कोई प्रत्याशी भीड़-भाड़ लेकर उनके पास नहीं आए.
नहीं मिल रहे प्रचार करने वाले
पंचायत चुनाव में पहले जहां प्रत्याशी दर्जनों लोगों की भीड़ लेकर चलता था वहीं अब आलम यह है कि घर के लोगों को छोड़ दिया जाए तो नारा-टेम्पू बोलने वालों के टोटे हो गए हैं. 15 दिन पहले जो समर्थक 24 घंटो प्रत्याशी के साथ चलने का भरोसा दिला रहा था अब वही घर के बाहर कदम रखने से भी कतरा रहा है. कई लोग तो बकायदा पेड वर्कर की तरह काम करते थे.
एसे लोग भी दिन भर नाला बुलंद करने के बाद मिलने वाले 100 रुपये का मोह छोड़कर कोरोना से अपनी जिंदगी को बचाने में लगे हैं. समर्थक ही नहीं खुद प्रत्याशी भी नहीं चाहते हैं कि इस महामारी के काल में हर वोटर्स तक वन टू वन पहुंचकर कनवेंसिंग करे. दो-चार समर्थकों के साथ निकलकर रहा है तो मास्क-गमछा आदि से मुंह ढंककर. अब एसे में वोटर पहचान ले तो ठीक नहीं तो मेहनत बेकार ही है.
नजर नहीं आ रहा उत्सव का माहौल
पंचायत चुनाव गांवों के लिए उत्सव जैसा होता है. कैंडिडेट और वोटर दोनों एक-दूसरे के करीबी होते हैं. इलेक्शन डिक्लेयर होने के एक-दो महीने पहले ही कैंडिडेट अपना माहौल बनाने के लिए लोगों के बीच उठना-बैठना शुरू कर देते हैं. चुनाव नजदीक आते-आते दावतों का दौर शुरू हो जाता है. कभी किसी कैंडिडेट की ओर से तो कभी किसी की ओर से. नामांकन के बाद तो जैसे यह माहौल चरम पर पहुंच जाता है. वोटर्स को अपने पक्ष में करने के लिए कैंडिडेट कोई कसर नहीं छोड़ता है.
दिल खोलकर रुपये खर्च करता है. इलेक्शन कमीशन की ओर से तय कैंडिडेट की तय धनराशि के 10 से 20 गुना ज्यादा खर्च होता जाता है. लेकिन इस बार कोरोना की वजह से एसा कुछ नहीं हो रहा है. चाय नाश्ते के साथ होने वाला चुनावी चकल्स नहीं हो रहा है. दावतों का दौर बंद है. जब कैंडिडेट और वोटर का मिलना-मिलाना ही कम हो गया तो लेना-देना भला कैसे हो पाएगा.
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