चीफ जस्टिस पर विपक्ष के आरोप पुख्ता नहीं, प्रस्ताव को मंजूरी मिलना मुश्किल

0

मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव का नोटिस भले ही कांग्रेस समेत 7 दलों ने उपराष्ट्रपति को सौंप दिया है, लेकिन इसमें लगाए गए आरोप तार्किक होने की बजाय राजनीतिक ज्यादा हैं। दीपक मिश्रा पर लगाए गए तीन मुख्य आरोप अगर-मगर पर आधारित हैं और उनकी भाषा ‘ऐसा हो सकता है’, ‘ऐसा हुआ होगा’ या ‘फिर ऐसा लगता है’ की है।

ऐसे में आरोप स्पष्ट न होने पर महाभियोग प्रस्ताव को मंजूरी मिलना मुश्किल है। 1968 के जज इन्क्वायरी ऐक्ट के मुताबिक हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जज के खिलाफ महाभियोग लाने के लिए आरोप ‘निश्चित’ होने चाहिए ताकि उनके आधार पर जांच कराई जा सके।मेडिकल घोटाले और केस

ट्रांसफर का आरोप

चीफ जस्टिस पर कांग्रेस की ओर से लगाया गया पहला आरोप मेडिकल एडमिशन घोटाले को लेकर है, जिसमें कहा गया है, ‘प्रथम दृष्ट्या ऐसा लगता है कि प्रसाद एजुकेशनल ट्रस्ट के मामले में चीफ जस्टिस भी फैसला पक्ष में देने की साजिश में शामिल रहे हैं।

Also Read :  कैश की किल्लतः कहां से निकाला गया ज्यादा कैश, होगी जांच

‘ दूसरे आरोप में कहा गया है कि एक मामला दो जजों की बेंच के पास सुनवाई के लिए लंबित था, उसके बाद भी सीजेआई ने केस को संवैधानिक बेंच को ट्रांसफर कर दिया। प्रस्ताव में कहा गया है कि सीजेआई ने जिस तरह से केस को डील किया, उससे वह भी जांच के दायरे में आते हैं।

आदेश की तारीख बदलने का आरोप

चीफ जस्टिस पर लगाए तीसरे आरोप में कहा गया है कि ऐसा लगता है कि उन्होंने 6 नवंबर, 2017 की तारीख से जारी एक प्रशासनिक आदेश की तारीख बदली थी, यह धोखाधड़ी का गंभीर मामला है। इस आरोप की शुरुआती भाषा है कि ऐसा लगता है और बाद में उसे गंभीर मामला करार दिया गया है।

जमीन के लिए दिया था गलत एफिडेविट

इसके अलावा चौथा मामला करीब 4 दशक पुराना है, जिसमें कहा गया है कि चीफ जस्टिस ने जमीन की खरीद के लिए एक वकील के तौर पर गलत एफिडेविट दिया था, जिसे स्थानीय अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट ने रद्द कर दिया था। विपक्ष का कहना है कि उन्होंने इस जमीन को छह साल पहले सुप्रीम कोर्ट का जज बनने के बाद सरेंडर किया।

केसों के आवंटन को लेकर है पांचवां आरोप

चीफ जस्टिस पर पांचवां और आखिरी आरोप 12 जनवरी को 4 सीनियर जजों की प्रेस कॉन्फ्रेंस से जुड़ा है। प्रस्ताव में कहा गया है, ‘चीफ जस्टिस मिश्रा ने अपनी प्रशासनिक अथॉरिटी का बेजा इस्तेमाल करते हुए मनमाने तरीके से केसों का आवंटन किया। उन्होंने राजनीतिक तौर पर संवेदनशील मामलों को निश्चित बेंच को सौंपा ताकि मनमाफिक फैसला आ सके।’ जजों की प्रेस कॉन्फ्रेंस के तुरंत बाद सीपीआई के नेता डी. राजा की जस्टिस चेलामेश्वर से मुलाकात हुई थी। इसके बाद इस पर सीजेआई को हटाए जाने को लेकर राजनीतिक प्रचार शुरू हो गया।

अयोध्या पर बहस के बाद सिब्बल भी जुड़े कैंपेन से

कुछ सप्ताह बाद ही सीनियर एडवोकेट और कांग्रेस लीडर कपिल सिब्बल की सीजेआई से अयोध्या मामले को जुलाई 2019 तक के लिए स्थगित करने की मांग पर तीखी बहस हुई थी। इसके बाद वह भी सीजेआई के खिलाफ चल रहे राजनीतिक अभियान का हिस्सा बन गए।

कहा, पहली नजर में महाभियोग के पर्याप्त सूबत

प्रस्ताव के आखिर में कहा गया है, ‘सीजेआई पर लगाए गए उपरोक्त आरोप न्यायपालिका की छवि को खराब करते हैं। इन गंभीर आरोपों को ध्यान में रखते हुए और उन पर विस्तार से दी गई जानकारी को देखते हुए सीजेआई पर महाभियोग का प्रस्ताव लाए जाने के लिए प्रथम दृष्ट्या पर्याप्त सबूत हैं।’

NBT

(अन्य खबरों के लिए हमें फेसबुक पर ज्वॉइन करें। आप हमें ट्विटर पर भी फॉलो कर सकते हैं।)

Leave A Reply

This website uses cookies to improve your experience. We'll assume you're ok with this, but you can opt-out if you wish. AcceptRead More