वाराणसी टेंट सिटी : कछुओं को कैसे पता चला कि उनका घर बदल गया ? – NGT
NGT: वाराणसी में गंगा पार रेती पर बसाई गयी टेंट सिटी के खिलाफ याचिका पर सुनवाई करते हुए नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने कहा कि पर्यावरण मंत्रालय को कछुआ सेंक्चुअरी की अधिसूचना वापस लेना का अधिकार नहीं है. मंत्रालय से प्रश्न किया कि अधिसूचना वापस लेने से कछुओं को कैसे पता चलेगा कि उनका घर बदल गया है. इस मामले की अगली सुनवाई छह फरवरी को होनी सुनिश्चित की गयी है.
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल यानी एनजीटी की प्रमुख पीठ नई दिल्ली के चेयरपरसन न्यायमूर्ति प्रकाश श्रीवास्तव, न्यायिक सदस्य न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल और विशेषज्ञ सदस्य ए. सेंथिल वेल ने यह सुनवाई की. इसमें भारत सरकार के पर्यावरण मंत्रालय की ओर से दाखिल उस प्रार्थना पत्र पर चर्चा हुई जिसमें उस पर लगे 25 हजार रुपये के जुर्माने की राशि को माफ करने की गुहार लगायी गयी थी.
.. तो फिर कछुए कहां गए ?
सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल ने पर्यावरण मंत्रालय से कहा कि कछुआ सेंक्चुअरी को इस तरह कागज पर अधिसूचित करके नहीं हटाया जा सकता. आखिर कछुए होंगे तभी तो आपने क्षेत्र को कछुआ सेंक्चुअरी घोषित किया होगा तो कछुए गए कहां ? NGT बेंच ने मंत्रालय के अधिवक्ता से कहा कि इन सवालों का उनके पास कोई जवाब नहीं है. याचिकाकर्ता अधिवक्ता सौरभ तिवारी की ओर से प्रस्तूत की गयी गंगा नदी तल में टेंट सिटी बसाने वाली कंपनियों द्वारा किये गये कंक्रीट निर्माण की तस्वीर पर एनजीटी ने कंपनियों से जवाब तलब किया है.
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यूपी के सचिव तलब
उत्तरप्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सचिव को तलब करते हुए गंगा के तल में रोक के बावजूद पक्के निर्माण की वजह और दोषियों पर कार्रवाई के बारे में पूछा गया है. विगत 15 दिसंबर को हुई सुनवाई के दैरान एनजीटी की तीन सदस्यीय पीठ ने वाराणसी में कछुआ सेंक्चुंअरी हटाने को लेकर जवाबी शपथ पत्र नहीं प्रेश करने पर केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय के रवैये को असहयोगात्मनक मानते हुए 25 हजार रुपये का जुर्माना लगाया था. 22 दिसंबर को मंत्रालय की ओर से गंगा पार कछुआ सेंक्चुअरी को हटाने के कारणाें का जिक्र करते हुए शपथ पत्र दाखिल किया था.