यात्रीगण कृपया ध्यान दे! अगला स्टेशन पं दीनदयाल उपाध्याय जंक्शन है…

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अब मुगलसराय स्टेशन से यात्रा करने वाले यात्रीगण सावधान हो जाये। क्योंकि स्टेशन का नाम अब बदल गया है। कृपया यात्रीगण ध्यान दें …अगला स्टेशन पं दीनदयाल उपाध्याय जंक्शन है।

मुगलकालीन स्थानों के नाम बदलने की दिशा में सरकार ने शुरुआत की है। सबसे पहले मुगलसराय जंक्शन का नाम बदलकर पंडित दीनदयाल उपाध्याय जंक्शन किया गया है। लोक निर्माण विभाग के अपर मुख्य सचिव संजय अग्रवाल ने सोमवार को इसकी अधिसूचना जारी की।

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आपको बता दें कि दीनदयाल जन्मशती वर्ष के दौरान भाजपा ने चंदौली स्थित मुगल सराय जंक्शन का नाम बदलकर पंडित दीनदयाल उपाध्याय जंक्शन करने की घोषणा की थी। योगी सरकार की ओर से रेल मंत्रालय को इसका प्रस्ताव भेजा गया था। बीते महीने 15 मई को रेल मंत्रालय की हरी झंडी मिलने के बाद सोमवार को इसकी अधिसूचना जारी कर दी गई। आपको बता दें कि इसी स्टेशन पर दीनदयाल का पार्थिव शरीर मिला था।

कब हुआ था मुगलसराय स्टेशन का निर्माण

स्टेशन यूपी का मुगलसराय स्टेशन का निर्माण 1862 में हुआ था। जब ईस्ट इंडिया कंपनी हावड़ा और दिल्ली के रेल मार्ग को जोड़ती थी। यह पूर्व मध्य रेलवे जिसका हाजीपुर है। ये सबसे व्यस्त एंव प्रमुख स्टेशनों में से गिना जाता है। ये भारत रेलवे की बड़ी लाइन के लिये यह एक बड़ा रेलवे स्टेशन है। इसे एशिया के सबसे बड़े रेलवे मार्शलिंग यार्ड और भारतीय रेलवे का क्लास ए जक्शन मुगलसराय में है।

कौन थे दीन दयाल उपाध्याय…

दीन दयाल उपाध्याय का जन्म 25 सितंबर 1916 को मथुरा के नगलाचंद्रबन गांव में हुआ। दीन दयाल उपाध्याय के पिता एक ज्योतिषी थे। जब वह तीन साल के थे तब उनकी माता का देहांत हो गया और जब 8 साल के थे तब उनके पिता का देहांत हो गया। पढ़ाई में बचपन ही तेज दीन दयाल हाई स्कूल के लिए राजस्थान के सीकर चले गए। सीकर के महाराज ने दीन दयाल को पढ़ाई के लिए किताबें खरीदने के लिए 250 रुपये और 10 रुपये के स्कॉलरशिप की व्यवस्था की।1950 में जब श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने नेहरू की कैबिनेट से इस्तीफा दिया। तब 21 सितंबर, 1951 को पंडित दीन दयाल उपाध्याय ने यूपी में भारतीय जन संघ की स्थापना की थी।

पंडित दीन दयाल उपाध्याय ने डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी से मिलकर 21 अक्टूबर, 1951 को जन संघ का राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित किया गया। 1968 में वह जन संघ के अध्यक्ष बने। इसके कुछ ही समय में 11 फरवरी 1968 को उनका देहांत हो गया। दीन दयाल उपाध्याय ने राजस्थान में 9 में से 7 पार्टी विधायको को पार्टी से निकाल दिया था जब उन्होंने राज्य में जमींदारी हटाने के कानून का विरोध किया था। 1964 में उन्होंने पार्टी के सत्ता में सिद्धांत को को भी पार्टी कार्यकर्ताओं के सामने रखा था। बाद में इसका विस्तार उन्होंने 1965 में प्रस्तुत किया।

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