कैराना उपचुनाव से पहले पीएम मोदी ने फेंका जीत का पासा

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गोरखपुर और फूलपुर के बाद अब उत्तर प्रदेश के कैराना में होने वाले उपचुनाव में एकजुट विपक्ष ने भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के सामने चुनौती खड़ी कर दी है। गन्‍ना बेल्‍ट के रूप में मशहूर कैराना में विपक्ष ने बीजेपी को मात देने के लिए गन्‍ना किसानों की समस्‍याओं को प्रमुख मुद्दा बनाया है। विपक्ष के चक्रव्‍यूह को तोड़ने के लिए रविवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मैदान में उतरे और उन्‍होंने गन्‍ना किसानों को आश्‍वासन दिया। उन्‍होंने अप्रत्यक्ष रूप से कैराना के किसानों से उनकी मदद के लिए चीनी मिलों को आर्थिक सहायता देने का वादा किया।

कैराना जीत से 2019 की लिखी जाएगी पटकथा

अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव से पहले कैराना के इन चुनावों को जीतना दोनों पक्षों के लिए बेहद जरूरी है क्योंकि माना जा रहा है कि 2019 के चुनावों में जीत की पटकथा लिखने की शुरुआत कैराना से ही होगी। शायद इसीलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चुनाव से ठीक पहले विकास को बड़े मुद्दे के रूप में पेश करने की कोशिश की है। साथ ही गन्ना किसानों के प्रति संवेदनशील रहने की आश्वासन भी दिया है।

गन्ना किसानों की समस्या है बड़ा मुद्दा

स्थानीय लोगों के मुताबिक गन्ना किसानों की परेशानियां और कानून व्यवस्था बड़ा मुद्दा है। कैराना से राष्ट्रीय लोकदल (आरएलडी) प्रत्याशी तबस्सुम हसन ने भी इसे लेकर बीजेपी पर निशाना साधा है। उन्होंने पार्टी पर विभाजनकारी राजनीति करने का आरोप लगाया है। उन्होंने कहा, ‘इलाके में गन्ना किसानों को सबसे ज्यादा तकलीफ है क्योंकि राज्य सरकार की ओर से पेमेंट नहीं किया गया।’

हालांकि, बीजेपी की ओर से कहा गया है कि राज्य में 2015-16 के दौरान गन्ना किसानों से 6443.41 लाख क्विंटल गन्ना खरीदा गया जबकि 2017-18 में 10,828.59 लाख क्विंटल। पार्टी के प्रवक्ता चंद्रमोहन ने बताया कि 2015-16 में गन्ना किसानों को 11.841 करोड़ रुपये दिए गए थे जबकि 2017-18 में 21,186 करोड़ रुपये दिए गए।

पीएम मोदी ने भी बागपत में एक्सप्रेसवे के उद्घाटन के दौरान गन्ना किसानों को आश्वासन देने की कोशिश की। उन्होंने कहा कि सरकार गन्ना किसानों के मुद्दों को लेकर संवेदनशील है और जल्द से जल्द उनकी परेशानियां सुलझाने की कोशिश कर रही है।

आर्थिक मदद का वादा

पीएम सीधे तौर पर भले ही कैराना के गन्ना किसानों को लुभाने के लिए वादे न कर सके हों लेकिन उन्होंने बिना नाम लिए वादे जरूर किए। उन्होंने कहा, ‘एक बड़े गन्ना किसानों को चीनी मिलों से बकाया मिलने में देरी न हो, इससे जुड़ा एक बड़ा फैसला लिया गया है। सरकार ने तय किया है कि प्रति क्विंटल गन्ने पर 5 रुपए 50 पैसे की आर्थिक मदद चीनी मिलों को दी जाएगी। यह राशि चीनी मिलों को न देकर सीधे गन्ना किसानों के खाते में ट्रांसफर की जाएगी। यहां के गन्ना किसानों के लिए भी हमारी सरकार निरंतर कार्य कर रही है। पिछले वर्ष ही हमने गन्ने का समर्थन मूल्य लगभग 11% बढ़ाया था। इससे गन्ने के 5 करोड़ किसानों को सीधा लाभ हुआ था।’

अखिलेश ने साधा निशाना

पीएम मोदी के रोड शो पर निशाना साधते हुए यूपी के पूर्व सीएम अखिलेश यादव ने कहा, ‘बागपत, मेरठ, शामली, मुजफ्फरनगर और बिजनौर के लोग जानते हैं कि कितना किसानों का बकाया है गन्ने का। रोड शो से गन्ने का जो बकाया पैसा है वह तो मिलना नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने ऑर्डर दिया तब सड़क (ईस्टर्न पेरिफेरल एक्सप्रेसवे) का उद्घाटन हुआ।’

ऐन वक्त पर विकास को मुद्दा बनाने की कोशिश

ईस्टर्न पेरिफेरल एक्सप्रेसवे के उद्घाटन पर पीएम के साथ पहुंचे परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश को लुभाने के लिए वादा तक कर डाला। उन्होंने कहा है कि अगले साल मार्च तक एक्सप्रेस वे पूरा हो जाएगा और दिल्ली से मेरठ की दूरी केवल 40 मिनट में तय की जा सकेगी।

माना जा रहा है कि कैराना को ध्यान में रखते हुए गडकरी ने ऐसी घोषणा करते हुए चुनाव के लिए विकास को मुद्दा बनाने की कोशिश की है। गौरतलब है कि अभी तक पार्टी चुनाव प्रचार के दौरान मुजफ्फरनगर दंगों, अलीगढ़ मुस्लिम यूनवर्सिटी में लगी मोहम्मद अली जिन्ना की तस्वीर और इलाके से हिंदुओं के पलायन को मुद्दा बनाने की कोशिश कर चुकी है। उधर विपक्ष गन्ना किसानों के हालात और ईंधन की कीमतों में बढ़ोतरी को मुद्दा बना रहा है।

हिंदुओं के पलायन को मुद्दा बनाने की कोशिश

इससे पहले साल 2016 में कैराना से हिंदुओं का पलायन भी बीजेपी ने एक बड़ा मुद्दा बनाकर पेश किया था। इस पर भी हसन ने किसी भी पलायन का खंडन करते हुए कहा, ‘यह इलाका हरियाणा के पनीपत से सटा हुआ है। मजदूर वहां के उद्योगों में काम करने जाते हैं। वह सुबह जाते हैं और शाम को वापस आ जाते हैं।’ उन्होंने दावा किया कि जिन घरों को ताला पड़े दिखाया गया था, वे केवल तस्वीरों के लिए प्रौपगैंडा के तहत इस्तेमाल किए गए थे। उन्होंने दावा किया कि कैराना में हिंदू और मुस्लिम शांति से रहते हैं।

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उधर बीजेपी प्रत्याक्षी मृगांका ने दिलचस्प तरीके से पलायन को पहले की समस्या बताते हुए कहा कि अब यह रुक गया है। हालांकि, उन्होंने एक बार फिर दावा किया कि 2017 के यूपी विधानसभा चुनावों से पहले कई हिंदू परिवार कैराना से डर के कारण चले गए थे।

बीजेपी की कोशिश, न दोहराए गोरखपुर-फूलपुर

कैराना से बीजेपी के सांसद हुकुम सिंह के निधन के बाद उनकी बेटी मृगांका सिंह बीजेपी से ही मैदान में हैं। उनके सामने राष्ट्रीय लोकदल की प्रत्याशी तबस्सुम हसन हैं जिन्हें समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और कांग्रेस तीनों का समर्थन मिल चुका है।

इससे पहले इसी साल मार्च में गोरखपुर और फूलपुर उपचुनाव हारने के बाद बीजेपी फूंक-फूंककर दम रखना चाह रही है। उस वक्त भी एसपी-बीएसपी गठजोड़ का नुकसान पार्टी को उठाना पड़ा था। शायद यही कारण है कि कैराना चुनाव के लिए प्रचार का समय खत्म होने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बागपत जाकर रैली की।

बीजेपी के सामने ‘महाविपक्ष’

लोकदल प्रत्याशी कंवर हसन ने अपना नाम वापस लेकर आरएलडी का दामन थाम लिया। इससे जहां बीजेपी के लिए चुनौती बढ़ी है वहीं, विपक्ष और मजबूत हुआ है। कैराना लोकसभा क्षेत्र में पांच सीटें हैं- शामली जिले में शामली, थाना भवन और कैराना, सहारनपुर जिले में गंगोह और नकुर सीट। कुल 17 लाख वोटरों में से बड़ी आबादी मुस्लिमों, जाटों और दलितों की है।

आरएलडी के कार्यकर्ता अब्दुल हकीम खान बताते हैं कि उन्होंने कभी ऐसे चुनाव नहीं देखे जिनमें सत्तारूढ़ पार्टी के खिलाफ विपक्ष ने मिलकर चुनौती खड़ी की हो। उनका दावा है कि कैराना की बहू तबस्सुम कैराना की बेटी मृगांका को हरा देंगी। बीजेपी की ओर से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्या खुद सहारनपुर और शामली में प्रचार कर चुके हैं। यहां तक कि कई मंत्रियों को भी इस रण में लगाया है।

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