माया के ‘स्मारक मोह’ ने सरकारी पैसों को पानी की तरह बहाया !

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बहुजन समाज पार्टी सुप्रीमो मायावती ने अपने मुख्यमंत्री रहते राजधानी लखनऊ से लेकर नोएडा तक स्मारक और मूर्तियां बनवाई थी इसमें उन्होंने करोड़ों रुपए का खर्च किया था। कई सालों से लंबित मामले में शुक्रवार को  सुप्रीम कोर्ट ने याचिका पर सुनवाई करते हुए टिप्पणी की थी। 

कई बार  मीडिया में आ रही खबरों के अनुसार मायावती कई बार  खुद के संसाधनों में भी करोड़ों का खर्च किया, ये मुद्दा भी जोरों से उछाला जाता रहा है। मीडिया में उनकी सैंडल से लेकर पर्स आदि तक पर होने वाले खर्च भी काफी चर्चा हुई थी।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि करते हुए कहा है कि उनके शासनकाल में पार्कों और मूर्तियों में जो पैसा खर्च किया है उसे सरकारी खजाने में लौटाना चाहिए।

हालांकि चीफ जस्टिस रंजन गोगोई वाली बेंच ने स्पष्ट किया इस पर कोई आदेश नहीं दिया है और कहा कि यह सिर्फ उनका एक विचार है। कोर्ट का कहना है, ‘हमारा मानना है कि मायावती ने यूपी का मुख्यमंत्री रहते हुए लखनऊ और नोएडा के पार्कों में अपनी और पार्टी के सिंबल हाथी की जो विशालकाय मूर्तियां बनवाई थीं, उन पर खर्च हुए सरकारी पैसे को सरकारी खजाने में लौटाना चाहिए।

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‘ याचिकाकर्ता वकील रविकांत और सुकुमार के मुताबिक, मायावती ने इस प्रॉजेक्ट के लिए 2008-09 और 2009-10 के यूपी बजट से प्रॉजेक्ट के लिए करीब 2000 करोड़ रुपये आवंटित किए थे। इसमें जमीन की लागत भी शामिल थी। आइए आपको बताते हैं कि कहां-कहां कितने पैसे से बना पार्क या मूर्तियां-

लखनऊ में

आंबेडकर सामाजिक परिवर्तन प्रतीक स्थल

क्षेत्रफल- 125 एकड़
लागत- 1363 करोड़ रुपये

कांशीराम मेमोरियल
एरिया- 70 एकड़
लागत- 730 करोड़ रुपये

रमाबाई रैली स्थल
एरिया- 51 एकड़
लागत- 655 करोड़ रुपये

बुद्ध शांति उपवन
एरिया- 10.8 हेक्टेयर
लागत- 460 करोड़
कांशीराम इको पार्क
एरिया- 70 एकड़
लागत – 1000 करोड़ रुपये

गोमती विहार पार्क
एरिया- 30 एकड़
लागत- 300 करोड़ रुपये

गोमती पार्क
एरिया- 20 एकड़
लागत- 200 करोड़

नोएडा
राष्ट्रीय दलित प्रेरणा स्थल ऐंड ग्रीन गार्डन

एरिया- 80 एकड़
लागत- 685 करोड़ रुपये
आंबेडकर पार्क, बादलपुर, ग्रेटर नोएडा
एरिया- 10 हेक्टेयर
लागत- 96 करोड़ रुपये

बुद्ध पार्क, बादलपुर, ग्रेटर नोएडा
एरिया-4 हेक्टेयर
लागत- 46 करोड़ रुपये

पार्कों की संख्या
लखनऊ- 7
जीबी नगर- 3

हाथी की मूर्तियां
लखनऊ- 152
नोएडा- 56

मूर्तियों में लागत- 99.84 रुपये करोड़
एफआईआर के अनुसार, एक मूर्ति की लागत- 48 लाख रुपये

माया के ‘सफेद हाथी’

रविकांत और सुकुमार के मुताबिक मायावती की मूर्तियों पर 3.49 करोड़, कांशीराम की मूर्तियों पर 3.37 करोड़ और 60 हाथियों पर 52.02 करोड़ रुपये खर्च हुए हैं। गौरतलब है कि हाथी बीएसपी का चुनाव चिह्न भी है। चुनाव के दौरान आयोग हाथियों पॉलिथीन से ढकवा भी चुका है।

बीएसपी सुप्रीमो मायावती के शासनकाल में बनवाए गए पांच स्मारकों और हाथियों की सुरक्षा व रखरखाव पर हर साल 180 करोड़ रुपये खर्च हो रहे हैं। स्मारकों के रखरखाव और सुरक्षा के लिए 5,788 कर्मचारियों की तैनाती की गई है। याचिकाकर्ता ने यह भी आरोप लगाया कि यूपी संस्कृति विभाग का 90 फीसदी बजट माया, कांशीराम और हाथियों की मूर्तियों की स्थापना में खर्च हुआ।

कभी सूंड़ ऊपर करनी पड़ी तो कभी ढके गए हाथी

स्मारकों में लगी हाथी की मूर्तियां बीएसपी के लिए मुसीबत ही बनते रहे हैं। चुनाव आयोग से लेकर कोर्ट तक ने कई बार इस पर निर्देश दिए हैं। मायावती को इन मूर्तियों को बचाए रखने की तरकीब निकालने के लिए खासी मशक्कत करनी पड़ी है। सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी के बाद अब एक बार फिर विपक्ष को हमलावर होने का मौका मिल गया है।

जब हाथियों को बताया भारतीय संस्कृति का प्रतीक

मायावती सरकार में 2007 से 2012 के बीच जब स्मारकों का निर्माण हो रहा था, तब भी कोर्ट में कई बार याचिकाएं दायर की गईं। कोर्ट ने उनका संज्ञान लेते हुए समय-समय पर आदेश भी जारी किए। सबसे ज्यादा आपत्ति इस बात को लेकर हुई कि हाथी बसपा का चुनाव निशान है। ऐसे में सरकारी खर्च से पार्टी का प्रचार किया जा रहा है।

कोर्ट ने इस पर आपत्ति की तो बीएसपी ने सुप्रीम कोर्ट में यह तर्क दिया कि ये हाथी उसके चुनाव निशान के तौर पर नहीं लगाए गए हैं। ये भारतीय संस्कृति में स्वागत का प्रतीक हैं। पुराने समय में भी घरों के बाहर स्वागत करते हुए हाथी बनाए जाते थे। यह भी तर्क दिया गया कि इन हाथियों की सूंड़ ऊपर है, जबकि पार्टी के चुनाव निशान में हाथी की सूंड़ नीचे है। हालांकि उस समय यह बात भी आई थी कि कोर्ट में अपील करने से पहले रातों-रात हाथियों की सूंड़ ऊपर करवाई गई थी।

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