महाशिवरात्रि 2025: भक्ति का बड़ा ही महत्व होता है, जो इसके भाव में डूब गया मानों वो भोले भंडारी का हो गया. भक्ति-भावना से भरा ये एहसास जो हर किसी को नहीं होता, जी हां, भक्ति का रस बड़ा ही मीठा होता है. श्रद्धा और भक्ति, ये दो शब्द एक प्रेम रस की तरह होते हैं, जो इसकी मिठास में घुल जाए उसका जीवन ही पार हो जाए. इन दो शब्दों में आसमान-जमीन का अंतर है, श्रद्धा में, सम्मान की गंगा बहती है, तो, भक्ति में प्रेम की लहरे उठती हैं. ये वही भाव है जिसे महसूस करने वाला भक्त भगवान भोले की भक्ति में रमता जोगी बन जाता है. हूबहू, भोले बाबा के प्यारे नंदी बैल जी भी कुछ ऐसे ही है, जो भोले बाबा की भक्ति में इस कदर मग्न रहते हैं मानों उन्हें शिव भक्ति के सिवा कुछ भाता ही ना हो.
आज 26 फरवरी के दिन देशभर महाशिवरात्रि का त्योहार मना रहा है. इस पर्व पर सुबह से ही मंदिरों में भक्तों की लंबी-लंबी कतारें नजर आ रही हैं. ऐसे में हर भक्त के मन में ये सवाल उठता है कि आखिर नंदी बैल को भोले बाबा अपना प्रिय भक्त क्यों मानते हैं. तो आज हम आपको इसके पीछे का राज बताएंगे. हर-हर महादेव की माला जपने वाले नंदी बैल भोले बाबा के लिए सिर्फ उनकी सवारी नहीं बल्कि वो शिव जी को इतने प्यारे है कि तीनों लोकों के स्वामी पार्वती माता के कैलाश पति जी इनके बिना अधूरे माने जाते हैं.
यही कारण है कि मंदिरों में नंदी और शिव जी दोनों की पूजा करना काफी महत्वपूर्ण माना गया है, जिसके चलते हर शिव मंदिरों में नंदी बैल की स्थापना जरूर की जाती है. नंदी के लिए भोले बाबा का ये प्रेम देख भक्ति की भावना को और भी बढ़ा देता है. बचपन से ही नंदी को शिव की भक्ति करना बड़ा ही पसंद था. तभी तो भगवान शिव के प्रति अपनी भक्ति और समर्पण के चलते नंदी उनके वाहन बन बैठे. इसलिए नंदी बैल को भक्ति और शक्ति का प्रतीक माना गया है जिसके चलते नंदी को शिव का पार्वती भी कहा जाता है.
भोले बाबा के प्रिय और परम भक्त नंदी बैल उनकी वाहन सवारी भी है. ऐसे में उन्हें बुद्धि-ज्ञान का प्रतीक भी माना गया है. नंदी और भोले बाबा के बीच प्रेम भरे इस रिश्ते को देख ऐसा महसूस होता है जो भक्त भगवान शिव की भक्ति में खुद को समर्पित कर दें, उसे भला शिव जी अपने से कैसे दूर रख सकते हैं. प्रेम के भूखे भोले बाबा की पूजा-अर्चना कर नंदी ने शिव जी को प्रसन्न कर दिया. जिसके चलते वो देवों के देव महादेव के प्रिय वाहन सवारी बन बैठे. ऐसे में शिव जी ने उन्हें वरदान दिया था कि जहां उनका निवास होगा वहीं नंदी भी विराजमान रहेंगे. इन्हीं मान्यताओं के चलते हर मंदिरों में नंदी बैल की मूरत स्थापित की जाती है. जहां शिव जी की पूजा करने के बाद नंदी बैल की पूजा की जाती है.
जानिए नंदी के कान में क्यों कही जाती है मनोकामनाएं
मान्यताओं के अनुसार,भोले बाबा एक तपस्वी हैं इसलिए वो हमेशा अपनी समाधि में ही लीन रहते हैं. ऐसे में उनकी तपस्या में किसी तरह का विघ्न न पड़े इसलिए नंदी जी पहरेदार बनकर उनकी सेवा में खड़े रहते हैं. नंदी के कानों में मनोकामना कहने के पीछे एक बड़ा महत्व है. पुराणों में कहा गया है कि, भगवान शंकर जी ने नंदी को यह वरदान दिया था कि जो तुम्हारे कानों में अपनी मुराद कहेगा उसकी हर इच्छा पूरी होगी. ये वरदान इतना महत्व रखता है कि भोले बाबा की अर्धांगिनी माता पार्वती जी ने खुद अपनी इच्छा नंदी के कान में कही थी, जिसके बाद उनकी मनोकामना को शिव जी ने पूरी की थी.
आखिर कौन है नंदी बैल
आपको बता दें, शिलाद नाम के एक मुनि थे जो ब्रह्मचारी होने के नाते वंश समाप्ति की उन्हें चिंता सताने लगी. इससे परेशान पिता शिलाद मुनि ने संतान की ख्वाहिश पूरी करने के लिए भगवान शिव की तपस्या कर जन्म और मृत्यु हीन संतान मांगा. उनकी शक्ति और भक्ति से खुश होकर भोले बाबा ने उन्हें ये वरदान दे दिया. इस वरदान के बाद एक दिन शिलाद मुनि जमीन जोत रहे थे, तभी उन्हें एक नन्हा बालक मिला, जिसे पाकर शिलाद खुशी से झूम उठे. इस बालक का नाम उन्होंने नंदी रख दिया.
एक दिन अचानक मित्रा और वरूण नाम के दो मुनि उनके आश्रम आ पहुंचे. वहां दोनों मुनियों ने भविष्यवाणी कर बताया कि नंदी तो अल्पायु यानी कि कम आयु का है. ये बात सुनकर पिता शिलाद काफी परेशान हो गए. ये देख नंदी ने चिंता में पड़े पिता को समझाते हुए कहा कि आपने मुझे भगवान शंकर की कृपा से पाया है तो मेरे मरने-जीने की रक्षा भी वहीं करेंगे. नंदी की पूजा और प्रेम भाव से प्रसन्न भगवान शिव ने ये कहते हुए नंदी को अपना गणाध्यक्ष बना लिया कि तुम मेरे ही अंश हो, फिर तुम्हें भला मृत्यु से भय कैसे हो सकता है. इसके बाद से नंदी भोले बाबा की शरण में रहकर उनकी सेवा में अपना जीवन खुशी से बिताने लगे. तो ये थी प्रिय भक्त नंदी की भक्ति जिसका संसार में आज भी गुण गाया जाता है.