लॉकडाउन : फैशन उद्योग पर अस्तित्व का संकट
कोरोना वायरस इंफेक्शन और उससे निजात के लाये गये लॉकडाउन ने पूरी दुनिया के इकॉनमी पर बहुत खराब असर डाला है। फैक्ट्रियां बंद और व्यापार चौपट हो गया है। संकट के इस दौर से गुजर रहे तमाम तरह के उद्योग धंधों में फैशन भी शामिल है। जी हां आम तौर पर वर्ष के इन दिनों लोग अपनी जेब के अनुसार गर्मियों के स्वागत के लिए फैशनेबल कपड़े खरीदते हैं और वार्डरोब सजाने का काम करते हैं। इन्हीं दिनों वे विदेशों में गर्मियों की छुट्टियां मनाने के लिए भी हॉलिडे प्लान को अमलीजामा पहनाते हैं। पर लॉकडाउन के चलते यह सब पूरी तरह बंद है।
कपड़ों की बिक्री में जोरदार कमी-
यह देखा जा रहा है कि इस साल मार्च में कपड़ों की बिक्री में 34 प्रतिशत तक कमी आई है, क्योंकि दुनिया की अधिकांश आबादी लॉकडाउन की पाबंदियों के कारण यात्राओं पर नहीं जा पा रही है। यहां तक कि सामाजिक सरोकारों से संबंधित कार्यक्रमों में भी वह शरीक नहीं हो पा रही है। यह तो यह जाहिर है कि ‘कोई भी व्यक्ति अपने घर में पहनने या रखने के लिए फैशन के कपड़े तो नहीं खरीदता है।’
साइमन वोल्फसन जो एक फैशन हाउस के सीईओ हैं, बताते हैं कि वित्त वर्ष का आखिरी महीना ऐसे कपड़ों के व्यवसाय के लिए अच्छा नहीं गया है। कोरोना वायरस का फैशन उद्योग पर नकारात्मक असर हुआ है, उत्पादन ठप हो गया है, मांग कम हो गई है और खुदरा दुकानें बंद हो गई हैं। यह एक ऐसा उद्योग है जो पूरी तरह से खुदरा बिजनेस पर निर्भर है। 80 प्रतिशत से अधिक बिक्री अब भी खुदरा दुकानों से ही होती है। उपभोक्ता कपड़े खरीदने में दिलचस्पी ही नहीं ले रहे हैं।
सता रहा है आउट ऑफ फैशन होने का डर-
लॉकडाउन अवधि में लोगों का सारा जोर खाद्य सामग्रियों की खरीद पर है। आज फैशन के बारे में कोई सोच नहीं रहा है। कम बिक्री के चलते यह सवाल उठना लाजमी है कि दुकानों और गोदामों में जो मौजूदा स्टॉक है, उसका क्या होगा?
हालांकि “भोजन या दवाओं के विपरीत, फ़ैशन उत्पाद जल्द बेकार तो नहीं होते हैं, पर स्टाइल बदल जाने से नुकसान काफी हो जाता है। प्रमुख अर्थशास्त्री कहते हैं कि “कभी-कभी, मौसमी परिधानों के मार्केट से जल्द आउट आफ फैशन होने का खतरा रहता है।” ‘गैप’ और ‘एचएंडएम’ ब्रांडों को ही लीजिये, ये कितनी जल्दी मिड सीजन सेल में आ गये हैं। इसी तरह फैशन का दूसरा नाम ‘यूनिक्लो’ है जो घरों में पहनने के लिए आरामदायक कपड़ों को रियायती दरों पर बेचने की पेशकश कर रहा है।
कपंनियों ने रोक दिये हैं विज्ञापन-
स्टॉक निकालने के पहले यह जानना होगा कि दुनिया के एक हिस्से में अगर गर्मी है तो दूसरे में सर्दियां हैं, ऐसे में बेहद सकारात्मक तरीके से व्यवसाय को अंजाम देना होगा ताकि घाटा कम से कम हो। आज 10-15 साल पहले के मुकाबले फैशन के प्रति लोगों का रुझान तेजी से बदल रहा है। इसलिए बुद्धिमानी यही है कि इसे समझते हुए बिजनेस को विपरीत परिस्थिति में भी बरकरार रखने का सार्थक प्रयास किया जाये। आप देख ही रहे होंगे कि वर्तमान समय में बिक्री कम होने से, कई ब्रांडों ने अपने विज्ञापन रोक दिये हैं, कुछ प्रतिष्ठित ब्रांडों ने सोशल मीडिया के जरिये इसे जारी रखा है ताकि लोगों की जेहन में ब्रांड इमेज बनी रहे।
सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर है प्रमोशन-
आप गौर करेंगे तो पायेंगे कि मशहूर माडल एमिली कैनहम, जिनके इंस्टाग्राम पर 700,000 से अधिक फालोवर हैं, नियमित रूप से हेल्दी खाद्य पदार्थों, मेकअप सामग्रियों और छुट्टियों व हालिडेज में पहने जाने वाले कपड़ों को बढ़ावा देने का काम जारी रखे हुए है।
कैनहम एक न्यूज एजेंसी से बात करते हुए कहती हैं, “मेरे लिए अभी यह जरूरी है कि यह बताते रहा जाये कि वर्तमान परिस्थिति में जरूरी क्या है। लॉकडाउन टाइम में उनकी कुछ हालिया पोस्ट आयी है जिनमें वह किसी ब्रांड को प्रमोट करने के बजाये वर्तमान समय के अनुसार जीवनशैली अपनाने के बारे में बताती हैं। वह कहती है: “मेरे फालोवर आमतौर पर वही पहनते हैं जो परंपरागत नहीं होते बल्कि मौसम के अनुरुप आराम देने वाले होते हैं।
फैशन उद्योग में शामिल सभी लोग अभी अनिश्चितता के भंवर जाल में हैं कि भविष्य के “फैशन उद्योग” का स्वरुप क्या होगा?
प्रमुख फैशन पत्रिका वोग की संपादक डेम अन्ना विंटोर ने बीते हफ्ते कहा कि निश्चित तौर पर मैं कह सकती हूं कि लोगों की मान्यताएं बदलने जा रही हैं। मेरा यह भी मत है कि कोरोना के बाद की स्थिति इंडस्ट्री के लिए एक अवसर जैसी होगी क्योंकि रहन-सहन, मूल्यों, मान्यताओं के बदलने के चलते धन खर्च करने की शक्ति में अभूतपूर्व कमी दर्ज होगी। इंडस्ट्री को गति कैसे मिले इस बाबत भी नये विचारों के साथ आगे आना जरूरी हो जायेगा।
प्रदूषण का कड़वा सच-
जैसा कि आप सभी लोग जानते हैं, फैशन उद्योग उस सूची में सर्वोच्च है जो दुनिया भर में सबसे अधिक प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों के रूप में पहचाने गये हैं। यह उद्योग 1.2 अरब टन कार्बन का उत्सर्जन हर साल कर रहा है। इसलिए दुनिया भर के पर्यावरणविद इस पर लगातार सवाल उठा रहे हैं।
इसका एक कारण यह भी है कि नित बदलते फैशन के कारण लगातार उत्पादन बढ़ाने की जरूरत होती है क्योंकि कुछ फैशन परस्त तो बहुत ही कम इस्तेमाल के बाद कपड़ों को फेंक देते हैं। फैशन इंडस्ट्री के लिए यह शब्द कड़वा जरूर है पर सोचना होगा कि लोग परिधानों को लेकर थोड़ा और जागरुक बनें।
लोग फैशन करें पर इसे लेकर जल्दबाजी घातक होती जा रही है तथा संकट इतना गहरा हो जायेगा कि यह पूरी इंडस्ट्री अनियंत्रित हालत में आ जायेगी। अगर लॉकडाउन जारी रहा तो जो इंडस्ट्री अबतक ढाई खरब डालर का व्यापार कर रही थी, बैठ जायेगी।
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[bs-quote quote=”इस आर्टिकल के लेखक एक स्टूडेंट हैं। जो सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय मुदृदों पर लिखते रहते हैं।
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