जानें कौन हैं दुनिया का पहले शिक्षक…?

अरस्तू और कंफ्यूशियस के बीच में क्यों है विवाद ?

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शिक्षक दिवसः माता पिता के बाद वह शिक्षक ही होता है जिसका हमारे निर्माण में सबसे बड़ा योगदान रहता है. हम क्या हैं और क्या बनेंगे इसका आधे से ज्यादा हिस्सा हमारे शिक्षक पर निर्भर करता है. यही वजह है कि शिक्षक दुनिया का सबसे बड़ा पेशा बनता जा रहा है. पूरे विश्व में स्कूल, उच्च शिक्षण संस्थानों में पढ़ाने वालो की संख्या 80 मिलियन से भी ज्यादा बताई जाती है. वैसे यह क्षेत्र हमेशा से इतना बड़ा नहीं था. एक समय तो ऐसा था इसका अस्तित्व तक न था, लेकिन कुछ महान शिक्षकों के सहयोग, मेहनत और योगदान का ही फल है जो आज शिक्षण का पेशा और शिक्षक इस उपलब्धि को हासिल करने में कामयाब हो पाए हैं.

 

हालांकि, भारत में इसका पूरा श्रेय देश के पहले उप राष्ट्रपति और दूसरे राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन को दिया जाता है. इस वजह से उनके जन्मदिन को शिक्षक दिवस के तौर पर पूरे देश में मनाया जाता है. वहीं क्या आपको मालूम है कि दुनिया के पहले शिक्षक कौन थे ? इस सवाल पर कुछ लोगों का जवाब होता है अरस्तू तो कुछ लोगों का जवाब होता है कंफ्यूशियस. इससे जन्म लेता एक और सवाल आखिर पहला शिक्षक कौन हैं तो, आइए जानते हैं क्या है ये पूरा बवाल और कौन हैं दुनिया के पहले शिक्षक ?

पुजारियों और पैगंबर को प्राचीन काल में माना जाता था शिक्षक

पुराने समय में महान ज्ञानी और विद्वान स्वयं शिक्षक की भूमिका में आ जाया करते थे. वहीं प्राचीन काल में पैगंबरों और पुजारियों को दुनिया का पहला शिक्षक माना जाता था, तब रईस घरों के बच्चों को उनके पास भेजा जाता था, जहां वे बच्चों में नेतृत्व और अन्य कौशल विकसित करते थे.

कंफ्यूशियस को क्यों कहा जाता है पहला शिक्षक ?

कंफ्यूशियस को लोग दुनिया का पहला शिक्षक मानते हैं. वे एक प्राइवेट ट्यूटर थे जो इतिहास की शिक्षा दिया करते थे. उनका जन्म चीन में 551 बीसी में हुआ था. हालांकि, उनके विषय में बहुत जानकारी नहीं मिलती है, लेकिन कहते हैं कि शिक्षा के क्षेत्र में उन्होंने बड़ी भूमिका निभाई है. बताते हैं कि गरीबी की वजह से कंफ्यूशियस खुद कभी स्कूल नहीं गए थे, लेकिन उन्होंने खुद से ही संगीत, इतिहास और गणित का ज्ञान अर्जित किया था.

दरअसल, उस दौर में शिक्षा राजघरानों और रईसों तक ही सीमित हुआ करती थी. दूसरी ओर कंफ्यूशियस चाहते थे कि शिक्षा हर वर्ग तक पहुंचे. इसलिए उनके पास जो भी ज्ञान था उन्होंने ट्यूटर के तौर पर लोगो में बांटना शुरू कर दिया और उन्होंने शिक्षा में एक बड़ा बदलाव किया. इसके साथ ही शिक्षा की ज्योति वहां तक पहुंची जो स्कूल नहीं पहुंचा सकते थे. यही वजह है कि लोग उन्हें दुनिया का पहला शिक्षक मानते हैं.

अरस्तू को क्यों माना जाता है पहला शिक्षक ?

बेशक एक बड़ा वर्ग कंफ्यूशियस को दुनिया का पहला शिक्षक मानता हो, लेकिन अरस्तू को भी पहला शिक्षक मानने वालों की कमी नहीं है. बताते है कि 384 बीसी में जन्मे ग्रीक दार्शनिक अरस्तू ने शिक्षण के हर क्षेत्र में सिस्टमैटिक और साइंटिफिक एग्जामिनेशन का प्रारंभ किया था. उस समय में अरस्तू को एक महान ज्ञानी के तौर पर देखा जाता है, जिसे हर क्षेत्र का ज्ञान होता था. इसके बाद उन्हें दार्शनिक की उपाधि दी गई. अरस्तू ने अकेले ही मेटाफिजिक्स का कॉन्सेप्ट तैयार किया और उसपर किताब भी लिखी थी. उस किताब में इस विषय पर चर्चा की कि सूचना को इकट्ठा करना, आत्मसात करना और इसे विविध क्षेत्रों में कैसे प्रसारित किया जाता है ?

424/423 बीसी में जन्मे प्लेटो 470/469 बीसी में सुकरात के शिष्य थे और अरस्तू ने उनसे शिक्षा ग्रहण की थी. अरस्तू को 18 साल की उम्र में एथेंस में प्लेटो अकेडमी में पढ़ने के लिए भेजा गया, जहां वह अगले 20 साल तक पढाई करते रहे थे. इसके बाद में मैसिडोनिया के राजा फिलिप द्वितीय ने अरस्तू को अपने बेटे अलेक्जेंडर द ग्रेट (सिकंदर महान) को पढ़ाने के लिए शिक्षक नियुक्त किया. अरस्तू का युवा सिकंदर ऐसा प्रभावित हुआ कि उसने अपनी शिक्षा और कार्यों को दूर-दूर तक फैलाने का फैसला किया. सिकंदर ने पर्शिया पर शासन किया, तो अरस्तू पूर्व तक चला गया. सिकंदर के माध्यम से ही अरस्तू का दर्शन और शिक्षा दुनिया तक पहुंची. इसने प्राचीन दर्शन को प्रभावित किया और यहूदी, क्रिश्चियन और मुस्लिम धर्मशास्तों के विकास की नींव रखी थी. यही वजह है कि कुछ लोग अरस्तू को पहला शिक्षक मानते हैं.

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निर्विवाद रूप से पहला शिक्षक कौन ?

दोनों के विषय में पढने के बाद हमने जाना कि अरस्तू ने कंफ्यूशियस के काफी साल पहले ही शिक्षा की शुरूआत कर दी थी और दोनों ने ही शिक्षा के क्षेत्र में सराहनीय योगदान भी दिया था. लेकिन इस विषय पर विवाद करने वाले लोग अपने अपने हिसाब से दोनों में से एक को दुनिया का पहला शिक्षक घोषित करते हैं.

अगर हम इस पर विचार करते हैं तो पाते है कि, यदि हम अरस्तू को पहला शिक्षक मानते हैं तो अरस्तू ने प्लेटो और सुकरात से शिक्षा ग्रहण की थी. ऐसे में सवाल यह उठता है कि, तो प्लेटो और सुकरात को हम पहला गुरू क्या न मानें ? वहीं कंफ्यूशियस के बारे में देखे तो उनका कोई गुरू नहीं था.मिस्र और मेसोपोटामिया के इतिहास में कंफ्यूशियस के अलावा किसी भी शिक्षक का जिक्र नहीं मिलता है. ऐसे में कंफ्यूशियस को निर्विवाद रूप से दुनिया का पहला शिक्षक कहा जाना शत प्रतिशत सही है.

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