24 साल की युवा उम्र में दिया सर्वोच्च बलिदान, जानिए स्वतंत्र भारत के पहले परमवीर के बारे में 

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बात जब देश के लिए कुछ कर गुजरने वालों की होती है तो उन वीरों को याद किया जाता है जो मुल्क की हिफाजत के लिए रणभूमि में अदम्य साहस और वीरता का परिचय देते हुए सहर्ष अपने प्राणों को न्योछावर कर देते हैं।

हालांकि यूं तो वीरता और देश के लिए दिए गए बलिदान की तुलना नहीं की जा सकती है।

 

लेकिन कई वीर शहीद जवानों और उनके शौर्य की अगणित गाथाओं की पृष्ठभूमि इतने सुनहरे अध्याय में लिखी हुई होती है जिनको इतिहास भी अपने अंदर संजोए रखता है।

इन्हीं अमर शहीद जवानों में एक नाम मेजर सोमनाथ शर्मा का भी आता है, जिनको स्वतंत्र भारत के पहले परमवीर के रूप में भी जाना जाता है।

 

कौन थे मेजर सोमनाथ शर्मा ?

 

– मेजर सोमनाथ शर्मा भारतीय थल सेना की कुमाऊ रेजिमेंट की चौथी बटालियन की डेल्टा कंपनी के कंपनी कमांडर थे।

उनका का जन्म 31 जनवरी 1923 को जम्मू में हुआ था, जिनको बचपन से ही खेल कूद और एथेलेटिक्स में गहरी रुचि थी।

 

– मेजर शर्मा के पिता अमरनाथ शर्मा भी सेना में डॉक्टर थे बाद में वे आर्मी मेडिकल सर्विस के डायरेक्टर जनरल पद से सेवामुक्त हुए थे। पढ़ाई – लिखाई की बात करें तो सोमनाथ शर्मा की प्राथमिक शिक्षा अलग अलग जगहों से होती रही, जहां इनके पिता की पोस्टिंग होती थी।

 

– शर्मा ने अपना सैन्य जीवनकाल सन 1942 से शुरू किया था जब उन्होंने चौथी कुमायूं रेजिमेंट में बतौर कमीशंड ऑफिसर प्रवेश लिया था।

यहां गौर करने वाली बात है कि जब मेजर शर्मा को कश्मीर में भेजा गया था, उस समय उनको सेना में शामिल हुए मात्र 5 साल ही वक्त हुआ था

 

मात्र 24 वर्ष की अल्पआयु में दिया सर्वोच्च बलिदान, पाया परमवीर चक्र

 

मेजर सोमनाथ शर्मा ही वो पहले भारतीय हैं जिन्हें उनके बहादुरी के लिए मरणोपरांत वीरता के सर्वोच्च सम्मान परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था।

 

– दरअसल सन 1947 में अक्टूबर – नवंबर के दौरान पाकिस्तान ने स्थानीय कबाइलियों की मदद से कश्मीर पर अचानक हमला कर दिया।

तब भारतीय सेना ने 27 अक्टूबर 1947 को अपनी एक टुकड़ी दुश्मनों से मुकाबला करने और उन्हें आगे बढ़ने से रोकने के लिए कश्मीर घाटी में भेजी।

 

– दिलचस्प बात यह है कि मेजर सोमनाथ शर्मा उस समय कुमाऊं बटालियन के डी कंपनी में पदस्थ थे, जब उनकी कंपनी ने उन्हें कश्मीर में तैनात करने का जारी कर दिया।

जिस समय उनको कश्मीर में मोर्चा संभालने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी, तब उनके दाहिने हाथ में प्लास्टर चढ़ा हुआ था। जो हॉकी खेलते वक्त लगे चोट की वजह से था।

इस बीच 3 नवंबर को अपनी कंपनी के साथ वे बड़गाम पहुंचे जहां उन्हें उत्तर दिशा से आने वाले पाकिस्तानी सैनिकों और आतंकवादियों को रोकने का कार्यभार दिया गया था।

 

– अचानक संघर्ष शुरू हुआ, जिसके दौरान स्थानीय घरों से भी डी कंपनी पर फायरिंग होने लगी, जिसकी आड़ में लगभग 700 पाकिस्तानियों ने डेल्टा कंपनी की डी यूनिट पर हमला करके तीन तरफ से घेर लिया।

मेजर सोमनाथ शर्मा मुस्तैदी से डटे रहे और अपनी टुकड़ी सहित वे भी पीछे नहीं हटे। एक हाथ में प्लास्टर लगे होने के बाद भी वे खुद भाग भागकर अपने सैनिकों को गोला और बारूद की सप्लाई कर रहे थे।

 

– इसी बीच अचानक मेजर के ऊपर एक बड़ा हमला हुआ जिससे भयंकर विस्फोट हुआ और वे बुरी तरह घायल हो गए।

जवाबी कार्रवाई में पूरे सात सौ सैनिकों के सामने उन्होंने अपनी टुकड़ी के साथ मिलकर लगभग 200 आतंकियों को ढेर कर दिया।

दुर्भाग्यवश इस संघर्ष में मेजर सोमनाथ शर्मा सहित उनके 20 जूनियर कमांडर जवान शहीद हुए।

इसके बाद 21 जून 1950 को उन्हे मरणोपरांत देश के पहले परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।

 

जानिए, क्या है परमवीर चक्र ? किसको और कैसे मिलता है ये सम्मान ?

 

– परमवीर चक्र प्राप्त करने की पात्रता…

 

ये जरूरी है कि यह पुरस्कार प्राप्तकर्ता सेना, नौसेना, वायुसेना, रिज़र्व बल, टेरिटोरियल सेना, अथवा विधि दवारा सथापित किसी भी सशस्त्र बल के पुरुष अथवा महिला सैनिक या फिर सैन्य अधिकारी हो।

 

– परमवीर चक्र भारत का सर्वोच्च शौर्य सैन्य पुरस्कार है जो दुश्मनों की मौजूदगी में उच्च कोटि की बहादुरी और त्याग के लिए प्रदान किया जाता है। इसकी स्थापना 26 जनवरी 1950 को की गई थी, जब भारत एक पूर्ण गणराज्य बनकर तैयार हुआ था।

 

– परमवीर चक्र को भारत रत्न के बाद सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कार समझा जाता है।

जानकारी के लिए आपको बता दें कि जब भारतीय सेना ब्रिटिश सरकार के तहत काम करती थी तो सेना का सर्वोच्च सम्मान विक्टोरिया क्रॉस हुआ करता था।

 

– एक दिलचस्प तथ्य है कि परमवीर चक्र हासिल करने वाले शूरवीरों में सूबेदार मेजर बन्ना सिंह ही एकमात्र ऐसे व्यक्ति थे जो कारगिल युद्ध तक जीवित थे।

 

 अभी तक इतने लोगों को मिला चुका है परमवीर चक्र…

 

ज्ञात हो कि अभी तक कुल 21 शूरवीरों को ये प्रतिष्ठित पुरस्कार से नवाजा गया है।

जिनमें से 14 शहीदों को ये पुरस्कार (मरणोपरांत) वीरगति प्राप्त करने के बाद मिला है।

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