कश्मीर के मसले पर किरेन रिजिजू ने गिनाईं जवाहर लाल नेहरू की 5 गलतियां
आज 14 नवंबर है यानि भारत के पहले पीएम जवाहर लाल नेहरू की जयंती. हर वर्ष 14 नवंबर यानि नेहरू जयंती को देश भर में बाल दिवस के रूप में भी मनाया जाता है. इस दिन को नेहरू की मृत्यु के बाद बाल दिवस के रूप में मनाने के लिए चुना गया था. पं नेहरू को बच्चे प्यार से चाचा नेहरू पुकारते थे. आज नेहरू जयंती के अवसर पर लोग उन्हें याद कर श्रद्धांजलि दे रहे हैं. लेकिन, कश्मीर के मुद्दे पर केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने जवाहर लाल नेहरू की 5 गलतियां गिनाई हैं. उन्होंने कहा कि यदि नेहरू ये ब्लंडर्स न करते तो शायद कश्मीर की तस्वीर आज कुछ और ही होती.
किरेन रिजिजू के मुताबिक, नेहरू ने 24 जुलाई, 1952 को अपने एक संबोधन में लोकसभा में कहा था कि जुलाई के मध्य में ही उनके सामने कश्मीर के विलय का सवाल उठा था. उन्होंने कहा था ‘हमारे वहां कई लोकप्रिय संगठनों से संपर्क हैं. नेशनल कॉन्फ्रेंस और उसके नेताओं से रिश्ते हैं. इसके अलावा महाराजा सरकार से भी संपर्क है. हमने दोनों को सलाह दी है कि कश्मीर एक स्पेशल मसला है. ऐसे में वहां के मामले में किसी भी तरह की जल्दबाजी करना ठीक नहीं होगा.’ इसको लेकर किरेन रिजिजू ने कश्मीर के मसले पर जवाहर लाल नेहरू की 5 गलतियां भी गिनाई हैं.
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पहली गलती…
नेहरू की पहली गलती पर किरेन रिजिजू ने बताया कि 21 अक्टूबर, 1947 को कश्मीर के तत्कालीन पीएम मेहर चंद महाजन को नेहरू ने लिखा था ‘इस मौके पर इंडियन यूनियन में कश्मीर के विलय को लेकर कोई ऐलान नहीं किया जा सकता.’ इन शब्दों से क्या पता चलता है कि कौन विलय के लिए आग्रह कर रहा था और किसने उसे खारिज किया था.एक न्यूज चैनल के लिए लिखे लेख के मुताबिक रिजिजू ने बताया कि ‘पाकिस्तान ने पहले ही 20 अक्टूबर, 1947 को कश्मीर पर हमला कर दिया था. लेकिन नेहरू उसके अगले दिन एक पत्र में लिखते हैं कि कश्मीर सरकार को फिलहाल भारत के साथ प्रदेश के विलय की बात नहीं करनी चाहिए. क्या इस सबूत को खारिज किया जा सकता है?’
दूसरी गलती…
नेहरू की दूसरी गलती पर रिजिजू ने बताया कि ’25 नवंबर, 1947 को संसद में नेहरू कहते हैं कि हम नहीं चाहते कि यह विलय सिर्फ ऊपरी स्तर के लोगों के द्वारा हो. इसके बजाय यह गठजोड़ जनता की इच्छा के आधार पर होना चाहिए. इसलिए हम जल्दबाजी नहीं करना चाहते.’ रिजिजू ने बताया कि नेहरू ने कश्मीर को लेकर यह बात ऐसे समय में कही थी, जब यह मसला अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उभर रहा था.
तीसरी गलती…
नेहरू की तीसरी गलती पर किरेन रिजिजू ने बताया कि कांग्रेस के अध्यक्ष आचार्य कृपलानी मई, 1947 में कश्मीर गए थे. ट्रिब्यून में 20 मई, 1947 को कृपलानी के विचारों को प्रकाशित करते हुए लिखा गया था ‘हरि सिंह भारत में विलय चाहते हैं. लेकिन नेशनल कॉन्फ्रेंस की ओर से उनके खिलाफ कश्मीर छोड़ो आंदोलन शुरू करना ठीक नहीं है.’ आचार्य कृपलानी कहते हैं कि महाराजा हरि सिंह कोई बाहरी नहीं हैं. उन्होंने नेशनल कॉन्फ्रेंस से कहा था कि वह कश्मीर छोड़ो का आंदोलन छोड़ दे.
चौथी गलती…
नेहरू की चौथी गलती पर किरेन रिजिजू ने बताया कि जून, 1947 में लॉर्ड माउंटबेटन के कश्मीर दौरे से पहले नेहरू ने उनसे कहा था कि हरि सिंह जो चाहते हैं, वह नहीं हो सकता. नेहरू ने अपने उस पत्र के 28वें पैरा में लिखा था ‘कश्मीर के लिए यह जरूरी होगा कि पहले भारत की संविधान सभा में वह जॉइन करें. इससे दोनों की मांगों को पूरा किया जा सकेगा और महाराजा की इच्छा भी पूरी होगी.’ इस तरह नेहरू जून, 1947 में ही जान गए थे कि महाराजा की इच्छा क्या है. इसमें सिर्फ एक ही बाधा थी और वह था नेहरू का निजी एजेंडा.
पांचवीं गलती…
नेहरू की पांचवी गलती पर किरेन रिजिजू ने बताया कि जुलाई में विलय की कोशिश को नेहरू ने झटका दे दिया था. यही नहीं सितंबर, 1947 को एक बार फिर से महाराजा हरि सिंह की ओर से कोशिश की गई थी. यह प्रयास पाकिस्तान के हमले के ठीक एक महीने पहले किया गया था. कश्मीर के पीएम मेहरचंद महाजन ने सितंबर में नेहरू के साथ मीटिंग का भी जिक्र बाद में किया था. महाजन ने अपनी आत्मकथा में लिखा था ‘मैं पंडित जवाहर लाल नेहरू से भी मुलाकात की थी. महाराजा जम्मू-कश्मीर का भारत में विलय चाहते थे और प्रशासन में भी जरूरी सुधार के लिए राजी थे. लेकिन वह प्रशासनिक सुधार के मसले पर बाद में चर्चा चाहते थे. वहीं नेहरू का कहना था कि राज्य के प्रशासन में तत्काल बदलाव किया जाए.’
बता दें देश में औद्योगिकीकरण, वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा देने समेत कई ऐसे मसले रहे हैं, जिसे लेकर नेहरू की हमेशा ही तारीफ की जाती रही है. हालांकि, चीन को समझने में असफल रहने और कश्मीर मसले को जटिल बनाने में उनकी गलतियों का भी जिक्र किया जाता रहा है.
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