क्या फिर जलेगा बेंगलुरु?, जानिए आखिर क्या है मामला
कर्नाटक के संगठनों ने महादायी नदी के पानी के बंटवारे पर जारी विवाद के मद्देनज़र 25 जनवरी को राज्य बंद और 4 फरवरी को बेंगलुरु बंद का ऐलान किया है। 4 फरवरी को ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बीजेपी की ‘परिवर्तन रैली’ में हिस्सा लेने के लिए बेंगलुरु में होंगे। गोवा और कर्नाटक में महादयी नदी की एक सहायक नदी के मार्ग को लेकर काफी समय से विवाद चल रहा है। इस बंद के दौरान हिंसा की आशंकाओं से भी इनकार नहीं किया जा रहा है और सुरक्षा के मद्देनज़र लोकल एजेंसियों को अलर्ट पर रखा गया है।
क्या है महादयी विवाद
कर्नाटक सरकार राज्य की सीमा के अंदर महादयी नदी से 7.56 टीएमसी पानी मलप्रभा डैम में लाना चाहती है। पानी की धारा कलसा और बंडूरी नामक दो नहरों के जरिए मोड़ी जानी है, जिसके कारण इसे कलसा-बंडूरी नहर परियोजना कहा जाता है। इसके जरिये धारवाड़, गदग और बेलगावी जिले को पीने के पानी की आपूर्ति की जाएगी। परियोजना के पूरे होने के बाद नरगुंद, नवलगुंद, बादामी,रोण और गदग तालुक के अलावा आसपास के 100 गांवों को पीने का पानी मिल सकेगा। इन इलाकों में फिलहाल 10 दिनों के अंतराल पर पेयजल की आपूर्ति की जाती है।
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महादयी नदी या मोंडोवी, जैसा कि इसे गोवा में कहा जाता है, कर्नाटक के भीमगढ़ के पास स्थित 30 झरनों के क्लस्टर से निकलती है। बेलागावी जिले के खनकपुर तालुका में देगांव में यह नदी का स्वरूप लेती है। महादयी वैसे तो बारिश आधारित नदी है, जो मानसून के महीनों में इसमें काफी पानी होता है। यह नदी कर्नाटक में 35 किमी और फिर गोवा में 52 किमी तक बहती है फिर जाकर अरब सागर में जाकर मिल जाती है। महादयी कैचमेंट एरिया में 2,032 किमी का इलाका आता है।
गोवा कर रहा है विरोध
गोवा सरकार इस परियोजना के विरोध में तर्क देती है कि ये यह पर्यावरण के अनुकूल नहीं है। इससे गोवा की पारिस्थितिकी पर प्रतिकूल असर पड़ना तय है। गोवा के विरोध के चलते बीते 40 सालों ये योजना अटकी हुई है. इसके आलावा महादयी नदी पूरी तरह मानसून आधारित नदी है। जून से अक्टूबर महीने तक ही इसमें काफी पानी रहता है। ऐसे में कर्नाटक सरकार यदि पानी को डायवर्ट करती है तो इसका सीधा असर गोवा के लोगों पर पड़ने वाला है। गोवा का कहना है कि महादयी नदी के पानी को डायवर्ट किया गया तो राज्य में जलसंकट खड़ा हो जाएगा। इसका पश्चिमी घाटों की अति–संवेदनशील इकोलॉजी पर भी गहरा असर पड़ेगा।
काम अटका और बढ़ती गई लागत
सैद्धांतिक तौर पर इस परियोजना को केंद्र सरकार से हरी झंडी मिल गई लेकिन गोवा के विरोध के कारण मंजूरी को लंबित रख दिया। इसी बीच, सुप्रीम कोर्ट ने परियोजना के काम पर स्थगनादेश दे दिया,जिसके कारण काम अटका पड़ा है। शुरूआती दौर में यह परियोजना सिर्फ 100 करोड़ की थी जो 2013 में 120 करोड़ रुपए हो गई थी और अब इसकी लागत का अनुमान बढ़कर 200 करोड़ रुपए बताया जाता है।
कब क्या हुआ
1976: कर्नाटक सरकार ने पहली बार इस परियोजना की घोषणा की।
1980: तत्कालीन मुख्यमंत्री आर गुंडूराव ने एस आर बोम्मई की अध्यक्षता में मलप्रभा नदी क्षेत्र में कम पानी के कारण नवलगुंद और नरगुंद तालुकों में सिंचाई की समस्या का हल तलाशने के लिए समिति गठित की। इस समिति ने महादयी और मलप्रभा नदी को जोडऩे का सुझाव दिया।
1989: गोवा और कर्नाटक के बीच महादयी नदी के पानी के बंटवार को लेकर सहमति बनी। तत्कालीन मुख्यमंत्री बोम्मई ने गोवा के अपने समकक्ष प्रताप सिंह राणे के साथ कई दौर की बातचीत के लिए उन्हें इस परियोजना के लिए राजी कर लिया था लेकिन राज्य में सियासी उथल पुथल के कारण बोम्मई सरकार का पतन हो गया है और पानी बंटवारे का बोम्मई-राणे फ़ॉर्मूला असफल साबित हुआ।
2000: एस एम कृष्णा के नेतृत्व वाली सरकार ने परियोजना को लागू करने के लिए कदम उठाने का निर्णय किया।
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2001: कर्नाटक सरकार ने परियोजना के लिए केंद्र सरकार से मंजूरी मांगी।
2002: केंद्र सरकार ने 30 अप्रेल 2002 को जारी पत्र में परियोजना को सैद्धांतिक मंजूरी दी। राष्ट्रीय पर्यावरण अभियांत्रिकी संस्थान से भी इसे हरी झंडी मिल गई लेकिन गोवा की मनोहर पर्रिकर के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने मंजूरी पर आपत्ति जताई जिसके बाद सितम्बर में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली केंद्र की राजग सरकार ने परियोजना को दी गई मंजूरी को स्थगित कर दिया। तब से ही दोनों राज्यों के बीच इस परियोजना को लेकर कानूनी लड़ाई चल रही है।
2006: एच डी कुमारस्वामी के नेतृत्व वाली बीजेपी-जद(एस) गठबंधन सरकार ने चार साल से लंबित परियोजना का निर्माण शुरू करने का निर्णय किया। 22 सितंबर को कुमारस्वामी ने बेलगावी जिले के खानपुर तालुक के कन्नकुंबी में इसका शिलान्यास भी किया। लेकिन गोवा सरकार ने कर्नाटक की पहल के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की। कोर्ट में कर्नाटक ने तर्क दिया कि आश्वयक मंजूरी मिलने तक वह नदी से पानी नहीं लेगा. इसके बाद कोर्ट ने परियोजना पर पूर्ण प्रतिबंध की गोवा की मांग को खारिज करते हुए कर्नाटक को वनक्षेत्र में निर्माण नहीं करने का निर्देश दिया।
2010 : गोवा की मांग पर 23 नवम्बर को जस्टिस जे एस पंचाल की अध्यक्षता में महादयी जल विवाद ट्रिब्यूनल (एमडब्ल्यूडीटी) का गठन हुआ।
2011: सुप्रीम कोर्ट ने महादयी नदी से जुड़े सभी मामले महादयी जल विवाद ट्रिब्यूनल (एमडब्ल्यूडीटी) को स्थानांतरित किए।
2014 : महादयी जल विवाद ट्रिब्यूनल (एमडब्ल्यूडीटी) ने अपनी पहली बैठक में कर्नाटक के निर्माण को ढहाने की मांग खारिज कर दी लेकिन कर्नाटक को मामले का निस्तारण होने तक नहर में नदी का पानी आ पाए, इसका उपाय करने का निर्देश दिया।
27 जुलाई 2016: कर्नाटक को बड़ा झटका देते हुए महादयी जल विवाद ट्रिब्यूनल (एमडब्ल्यूडीटी) ने महादयी नदी के 7.56 टीएमसीएफटी पानी को महादयी नदी बेसिन से मलप्रभा नदी की ओर मोड़ने के कर्नाटक के दावे को ठुकरा दिया।
गोवा के मंत्री ने दी थी ‘गाली’
बीते दिनों गोवा की मनोहर पर्रिकर सरकार में मंत्री विनोद पालयेकर ने महादयी नदी विवाद को लेकर कर्नाटक के लोगों को ही गाली दे दी थी। गोवा की भाजपा सरकार में जल संसाधन मंत्री विनोद पालयेकर ने कर्नाटक के लोगों को ‘हरामी’ कह दिया था। हालांकि बाद में जब उन्हें अहसास हुआ कि वो गलत बोल गए हैं, तो उन्होंने माफ़ी भी मांग ली थी।
news18
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