ताकि फिर कोई छुटनी न बने ‘डायन’
क्या कभी आपने चुड़ैल या डायन देखा है ? आपका जवाब होगा नहीं। पर हम आज आपको यहां एक ऐसी महिला के बारे में बताने जा रहे हैं जिसे कभी उनके गांव के लोगों ने डायन बताया था।
गांव के लोगों ने न सिर्फ उस महिला को डायन करार दिया बल्कि उन्हें तमाम तरह की शारीरिक व मानसिक यातनाएं भी दी। पर उस महिला ने हार नहीं मानी और उस जैसी महिलाओं को डायन करार दिये जाने के सामाजिक कुरीति के खिलाफ एक योद्धा के रूप में खुद को स्थापित किया।
उनके इसी साहस को देखते हुए भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री पुरस्कायर देने की घोषणा की है। जी हां यहां हम बात कर रहे हैं झारखंड की सोशल वर्कर छुटनी देवी की।
झारखंड के सरायकेला खरसांवा जिला के बीरबांस की रहने वाली छुटनी देवी को डायन बताकर मानव मल पिलाया गया और घर से निकाल दिया गया था। इसमें सबसे हैरान करने वाली बात यह थी कि उनके पति ने भी उनका साथ नहीं दिया।
खिलाया मानव मल-
छुटनी की 12 साल की उम्र में धनंजय महतो से शादी कर दी गयी थी। शादी के बाद कम अंतरारल पर ही एक के बाद तीन बच्चे भी हो गये। सब कुछ सामान्य चल रहा था। पर सितंबर 1995 के बाद छुटनी की जिंदगी ने करवट ली।
तब छुटनी की उम्र तीस के आसपास रही होगी। उसके पडोसी की बेटी बीमार हुई। गांव में यह प्रचार हो गया कि छुटनी ने उस पर जादू टोना कर दिया है। पंचायत बुलायी गयी और वहां पंचों ने छुटनी को डायन करार दे दिया।
छुटनी का कसूर बस इतना था कि वह देखने में सुंदर थी। गांव के कुछ लोग उसे अपनी हवस का शिकार बनाना चाहते थे। डायन करार देने के बाद उन लोगों को अवसर मिला और उन्होंने छुटनी के घर में घुसकर उसके साथ बलात्कार की कोशिश की।
अगले दिन फिर पंचायत हुई। बिना किसी दोष के पंचायत ने छुटनी पर 500 रुपए का जुर्माना लगाया। उसे चुकाने के बाद भी छुटनी के प्रति गांव वालों का रवैया नहीं बदला। बाद भी गांव वालो ने ओझा को बुलाया।
ओझा ने छुटनी पर से डायन का साया हटाने के लिए मानव का मल खिलाने का सुझाव दिया। फिर क्या था। पूरा गांव छुटनी को मानव मल खिलाने पर लग गया। इस दौरान जान छुटन ने भागने की कोशिश की तो उस पर मानव मल फेंक दिया गया। इसी भागदौड़ में मानव मल छुटनी के मुंह में भी चला गया।
घर से निकाल दिया गया-
छुटनी को घर से निकाल दिया गया। बच्चों के साथ उसने किसी तरह पेड़ के नीचे रात काटी। पुलिस से लेकर विधायक तक हर जगह शिकायत दर्ज कराई पर कहीं कोई सुनावायी नहीं हुई।
हारकर छुटनी अपने मायके चली गई। पर यहां भी डायन का साया उसका पीछा छोड़ने को तैयार नहीं था। हर कोई उसे देखकर अपने घर का दरवाजा बंद कर लेता। जहां भी वह जाती लोग डायन कह कर बुलाते।
पर भाइयों ने यहां छुटनी को संभाला और उसके जीविकोपार्जन का इंतजाम किया। धीरे-धीरे जिंदगी की गाड़ी पटरी पर लौटने लगी। पर इसमें तकरीबन पांच साल लग गये।
डायन कहे जाने के दंश रह-रह कर छुटनी को चुभता रहता। फिर उसने डायन करार दी गयी महिलाओं के लिए लड़ना शुरू किया और इसे ही अपने जीवन का मकसद बना लिया। छुटनी की लड़ाई आज तक जारी है।
उनकी इस लडाई के लिए उन्हें सरकारी और गैर सरकारी संस्थातओं की ओर से सम्मानित किया गया है। अब भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री अवार्ड देने की घोषणा की है।
झारखंड के आंकड़े चौंकाने वाले-
बताते चलें कि महिलाओं को डायन करार देकर उनकी हत्या कर दिये जाने के मामलों में झारखंड राज्य के आंकडे चौंकाने वाले हैं। न्यूज पोर्टल द वायर के अनुसार राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) ने जो रिपोर्ट जारी की है, उसमें साल 2017 में झारखंड में डायन बताकर हत्या के 19 मामले समाने आए हैं।
वहीं झारखंड पुलिस के आंकड़ों पर गौर करें तो 2017 में ऐसी हत्याओं की संख्या 41 थी। इसी तरह एनसीआरबी ने साल 2016 में झारखंड में डायन बताकर मार दी गईं महिलाओं की संख्या 27 बताई है, जबकि झारखंड पुलिस के अनुसार यह संख्या 45 है।
साल 2015 में एनसीआरबी ने झारखंड में डायन बताकर 32 महिलाओं की हत्या की बात कही है. वहीं झारखंड पुलिस ने यह संख्या 51 बताई है। समाज विज्ञानी डॉ आर रंजन कहते हैं कि अशिक्षा इस तरह की घटनाओं का सबसे बडा कारण है।
जादू टोना जैसे अंधविश्वास झारखंड के ग्रामीण इलाकों में बहुत गहरायी तक फैले हैं। जो नरबलि, महिलाओं को डायन करार दिया जाने जैसे बातों की वजह बनते हैं।
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