वाराणसी। पूर्वांचल के बाहुबली मुख्तार अंसारी को उनके ही ‘गढ़’ में घेर पाना, कुछ वैसे ही जैसे सांप के बिल में हाथ डालना। लेकिन योगी सरकार में ये मुमकिन होता दिख रहा है। पिछले दो महीनों से चुन-चुनकर मुख्तार अंसारी के गुर्गों के खिलाफ मऊ पुलिस कार्रवाई कर रही है। मुख्तार गैंग के फाइनेंसरों के अर्थतंत्र पर लगातार चोट की जा रही है। काले कारोबार को अंजाम देने वालों की संपत्ति जब्त की जा रही है। मऊ के अंदर मुख्तार गिरोह की कमर तोड़ने वाले आईपीएस का नाम है अनुराग आर्य। योगी सरकार ने अब अनुराग आर्य को ईनाम देने जा रही है। 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस पर पुलिस विभाग की ओर से अनुराग आर्य को सिल्वर मेडल से नवाजा जाएगा।
अनुराग आर्य ने मुख्तार गिरोह के गिरेबां पर डाला हाथ !
2013 बैच के आईपीएस अनुराग आर्य की गिनती यूपी के तेज तर्रार पुलिस अफसरों में होती है। बेहद कम समय में अनुराग आर्य ने पुलिस विभाग के अंदर अपनी अलग छवि बना ली। यही कारण था कि सीएम योगी आदित्यनाथ ने भी उनके ऊपर भरोसा दिखाया था और उन्हें एक ऐसे जिले की कमान सौंपी, जहां हमेशा अंसारी परिवार का सिक्का चलता रहा। राजनीति से लेकर ठेके-पट्टे और अपराध की दुनिया में मुख्तार अंसारी गिरोह का कब्जा रहा है। लेकिन अनुराग आर्य के कार्यकाल में मुख्तार अंसारी गिरोह के शूटर और फाइनेंस पनाह मांगते नजर आ रहे हैं। अनुराग आर्य की अगुवाई में पुलिस ने मुख्तार अंसारी के किलर गैंग का एक तरह से सफाया कर दिया है। असलहों के लाइसेंस निरस्त किए जा रहे हैं। गुंडा एक्ट के तहत कार्रवाई की जा रही है। तो दूसरी ओर आर्थिक मददगारों की संपत्तियां जब्त की जा रही है। अभी तक पुलिस ने मऊ में मुख्तार अंसारी गिरोह के नजदीकियों की चालीस करोड़ की चल-अचल संपत्ति जब्त की है। इसके अलावा पुलिस ने मुख्तार अंसारी के मछली कारोबार को भी तहस-नहस कर दिया है।
डिप्टी एसपी शैलेंद्र के बाद अनुराग आर्य ने दिखाई हिम्मत
ऐसा नहीं है कि मुख्तार अंसारी के खिलाफ किसी पुलिस अधिकारी ने कार्रवाई करने की हिम्मत नहीं दिखाई हो। लेकिन ये भी हकीकत है कि जिसने भी ऐसा करने की जुर्रत की उसका हश्र बुरा हुआ। 2004 की बात है। उन दिनों उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल में मुख्तार अंसारी का जलजला था। उस वक्त के सीएम मुलायम सिंह का उन्हें वरदहस्त हासिल था। कोई उसके खिलाफ कुछ भी करने की हिम्मत नहीं करता था। लेकिन एसटीएफ में एक डिप्टी एसपी था, जिसने हिम्मत दिखाई। कहीं से जानकारी मिली कि सेना से एक भगौड़ा एक लाइट मशीन गन लेकर भागा है। और इस मशीन गन को मुख्तार अंसारी खरीद रहा है। डिप्टी एसपी ने तुरंत अपना जाल बिछा दिया। मुख्तार और उस भगोड़े का फोन सर्विलांस पर लगवा दिया। शक सही निकलने पर भगौड़ा पकड़ लिया गया। मुख्तार के पास से मशीन गन भी बरामद कर ली गई। इसके बाद डिप्टी एसपी ने मुख्तार के खिलाफ पोटा के तहत मुकदमा लिख दिया। इस अधिकारी का नाम था शैलेंद्र सिंह. मगर ये बहादुरी ही शैलेंद्र को ले डूबी। सत्ता के दबाव में शैलेंद्र ना मुख्तार को गिरफ्तार कर पाए और ना कोई और कार्रवाई। उन पर इतना दबाव पड़ा कि आखिर में उन्होंने इस्तीफा दे दिया।
योगी के भरोसेमंद हैं अनुराग आर्य
हाल्कि अनुराग आर्य के साथ ऐसी परिस्थिति नहीं है। अनुराग आर्य सीएम योगी आदित्यनाथ के भरोसेमंद पुलिस अफसरों में शामिल हैं। इसके पीछे उनकी ईमानदार छवि और वर्किंग स्टाइल है। मूल रुप से बागपत के छपरौली गांव के रहने वाले अनुराग आर्य ने जून 2019 को मऊ की कमान संभाली थी। इसके पहले उनकी नियुक्ति कानपुर इस्ट, अमेठी और बलरामपुर जिले में रही है। देहरादून के सैनिक स्कूल से पढ़ाई लिखाई करने वाले अनुराग आर्य बास्केटबाल के नेशनल प्लेयर भी रह चुके हैं। बीएचयू से ग्रेजुएशन और डीयू से पोस्ट ग्रेजुएशन करने के बाद उन्होंने सिविल सर्विसेज की तैयारी करनी शुरु की। आईपीएस बनने के पहले अनुराग आर्य की बैंक मैनेजर के तौर पर नौकरी लगी थी। लेकिन उन्हें आईपीएस बनने से नीचे कुछ मंजूर नहीं था। अपने पहले प्रयास में ही वो आईपीए बन गए। वर्दी का फर्ज निभाते हुए उन्होंने यूपी के सबसे बड़े बाहुबली के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। जिसकी चर्चा न सिर्फ पुलिस महकमे में हो रही है बल्कि लोगों की जुबान पर उनका नाम है।
मऊ में चलता है अंसारी परिवार का सिक्का
मऊ की गिनती पूर्वांचल के एक संवेदनशील जिले के तौर पर होती है। छोटे-छोटे विवादों पर ये शहर कब सुलग जाए, किसी को पता नहीं। दशकों से इस जिले में मुख्तार अंसारी की सल्लतनत चलती आ रही है। मुख्तार अंसारी जेल में हो या फिर बाहर, मऊ सदर पर कब्जा उनका ही होता है।
-साल 1996 से वो लगातार मऊ सदर सीट से विधायक चुने जाते रहे हैं
-1996 में बीएसपी प्रत्याशी के तौर पर जीत हासिल की
-साल 2002 और 2007 में निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़े और जीते
-2012 में कौमी एकता दल बनाई और जीत हासिल किए
-2017 में फिर बीएसपी में शामिल हुए और जीत हासिल की
-साल 2009 के लोकसभा चुनाव में वाराणसी में मुरली मनोहर जोशी के खिलाफ चुनाव लड़ा और कड़ी टक्कर दी
कुल मिलाकर लगभग ढाई दशक के दौरान मुख्तार ने मऊ में ऐसा चक्रव्यूह बना लिया है, जिसे तोड़ पाना बेहद कठिन है। ढाई दशकों के दौरान ना जाने कितनी सरकार आईं। ना जाने कितने पुलिस कप्तान आए और चले गए लेकिन किसी ने मुख्तार अंसारी के गिरोह के गिरेबां तक हाथ डालने की हिम्मत नहीं दिखाई। मुख्तार अंसारी के राजनीतिक रसूख का अंदाजा इस बात से लग सकता है कि साल 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने मुख्तार अंसारी को हराने के लिए अपने सभी घोड़े खोल दिए। यहां तक की पीएम नरेंद्र मोदी की सभा भी हुई, बावजूद इसके मुख्तार अंसारी जेल में रहने के बाद भी जीत हासिल करने में कामयाब रहा। यही नहीं लोकसभा चुनाव में भी उसने अपने करीबी अतुल राय को जीत दिलाई। लेकिन बदले वक्त ने मुख्तार अंसारी के लिए खतरे की घंटी बजा दी है। हालांकि मऊ के अंदर मुख्तार के चाहने वाले उन्हें रॉबिनहुड भी कहते हैं।
जेल से चलती है मुख्तार की हुकूमत
मुख्तार अंसारी 2005 से जेल में बंद हैं। वो जेल में रहते हुए भी पिछले तीन विधानसभा चुनाव जीते हैं। फिलहाल रंगदारी के एक मामले में वो पंजाब के रोपड़ जेल में बंद हैं। लगभग पंद्रह साल से जेल में रहने के बावजूद मुख्तार अंसारी की ताकत कभी कम नहीं हुई। पूर्वांचल के जिलों में उनका वर्चस्व अभी भी कायम रहा है। कहते हैं कि मुख्तार अंसारी जेल से ही अपना गिरोह चलाता है। लेकिन अनुराग आर्य के आने के बाद पहली बार ऐसा हुआ, जब कोई पुलिस वाला उन्हें टक्कर देते हुए दिख रहा है।
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