चीन नहीं चाहता हल हो ‘सीमा विवाद’
भारत और चीन के बीच सीमा विवाद कूटनीतिक स्तर पर जारी है और इस बीच चीन के एक विशेषज्ञ ने कहा है कि चीन द्वारा भारत के पूर्वोत्तर राज्य अरुणाचल प्रदेश के छह जगहों का नामकरण भारत में निर्वासन पर रह रहे तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा के अरुणाचल दौरे के विरोध में नहीं है। चीनी विशेषज्ञ का वहीं यह भी कहना है कि इसके जरिए चीन यह बताना चाहता है कि दोनों देशों के बीच सीमा के मसले पर बीजिंग, भारत को किसी तरह की राहत नहीं देने वाला।
चीन वेस्ट नॉर्मल यूनिवर्सिटी में भारतीय अध्ययन केंद्र के निदेशक लोंग शिंगचुन का कहना है कि भारत द्वारा तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा को बार-बार अरुणाचल यात्रा कराकर चीन को भड़काने की नई दिल्ली की मंशा के खिलाफ पलटवार न करने के मामले में बीजिंग बेहद उदार है। उन्होंने यह भी कहा कि कुछ भारतीय ‘कट्टरपंथी’ यह सोचने की नादानी भी करते हैं कि नई दिल्ली हथियारों की होड़ में बीजिंग को पछाड़ देगा। लोंग ने कहा कि वास्तव में भारत को अपनी ‘गलत रणनीतिक धारणाओं’ से सीख लेनी चाहिए।
सरकार द्वारा प्रकाशित समाचार पत्र ‘ग्लोबल टाइम्स’ ने लोंग के हवाले से लिखा है, “भारतीय मीडिया का मानना है कि चीन द्वारा अरुणाचल प्रदेश के छह स्थानों का नामकरण किया जाना तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा की भारत और चीन के बीच विवादित सीमा क्षेत्र की यात्रा के खिलाफ चीन की बदले की कार्रवाई है। लेकिन इन जगहों के नामों का चीनी भाषा में मानकीकरण चीन की उस दृढ़ता को व्यक्त करता है, जिसके तहत बीजिंग सीमा विवाद को लेकर भारत से बातचीत में कोई छूट नहीं देने वाला।”
लोंग ने आगे लिखा है, “नई दिल्ली ने दलाई लामा के विवादित इलाके में कई यात्राओं की व्यवस्था की और दक्षिण तिब्बत पर अपना नियंत्रण मजबूत करने की कोशिश की। बीजिंग ने नई दिल्ली के साथ मैत्रीपूर्ण संबंधों के चलते भारत के उकसाने के बावजूद बदले की कार्रवाई करने की बजाय सिर्फ कूटनीतिक शिकायत दर्ज कराई।”
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ज्ञात हो कि बीजिंग तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा को अलगाववादी मानता है और अरुणाचल प्रदेश को दक्षिण तिब्बत कहता रहा है।
लोंग के अनुसार, “बीजिंग और नई दिल्ली के बीच सीमा विवाद संघर्ष का मूल बिंदु है। 1962 में भारत और चीन के बीच हुए युद्ध ने दोनों देशों के बीच मैत्रीपूर्ण द्विपक्षीय संबंधों को संघर्ष में बदल दिया। भारत और चीन के बीच 2003 में विवादित सीमा को लेकर विशेष प्रतिनिधित्व वार्ता प्रक्रिया शुरू होने के बाद से दोनों देशों ने सीमा विवाद पर बातचीत के लिए 19 बैठकें की हैं। दोनों देशों ने सीमा विवाद को एक किनारे रखते हुए द्विपक्षीय कूटनीतिक संबंधों को प्रभावित नहीं होने दिया है।”
वह आगे लिखते हैं, “दोनों देशों को शांति एवं सौहार्द बनाए रखने के लिए सीमा विवाद पर सब्र से काम लेना चाहिए और साथ-साथ बातचीत के लिए अनुकूल माहौल तैयार करना चाहिए। भारत के कुछ कट्टरपंथियों को लगता है कि भारत की सैन्य शक्ति में तेजी से इजाफा हुआ है और हथियार की होड़ में वे चीन से आगे निकलने को बेताब हैं। वास्तव में 1962 के युद्ध में भारत लाभ की स्थिति में रहा था और उन्हें अपने गलत रणनीतिक फैसलों से सीख लेनी चाहिए और मौजूदा अंतर्राष्ट्रीय परिस्थितियों का सावधानीपूर्वक मूल्यांकन करना चाहिए।”