भारत और नेपाल के पारस्परिक सम्बंध आज एक नाज़ुक और तनावपूर्ण दौर से गुजर रहे हैं। सामाजिक और धार्मिक रूप से जुड़े इन दोनों देशों के रिश्ते एक पड़ोसी राज्य से बढ़कर मित्र के रहे हैं। लेकिन वर्तमान समय में सीमाओं को लेकर दोनों देशों में विवाद गहराता जा रहा है। आईये भारत और नेपाल के इस विवाद को ऐतिहासिक व भौगोलिक नजरिये से समझने की कोशिश करते हैं।
अंग्रेजों से हार गया था नेपाल
मुग़लों के पतन के बाद नेपाल एक शक्तिशाली साम्राज्य के रूप में उभरा। नेपाल के गोरखा शासक ने अपने साम्राज्य का विस्तार किया जिसके फलस्वरूप पूर्व में सिक्किम, पश्चिम में कुमाऊँ और गढ़वाल ऐवम दक्षिण में अवध के तराई क्षेत्र तक नेपाली साम्राज्य स्थापित हो गया। अतः नेपाल की सीमाए पश्चिम में सतलज नदी से लेकर पूर्व में तिसता नदी तक हो गयी। नेपाल का बढ़ता साम्राज्य और प्रभुत्व ईस्ट इंडिया कम्पनी को नागवार गुजर रहा था, जो खुद भारत में अपने अधिकार क्षेत्र को लगातार बढ़ाने की कोशिश कर रहा था। इस टकराव के कारण ही 1814-1816 के बीच अंग्रेज-नेपाल युद्ध हुआ जिसे गोरखा युद्ध भी कहा जाता है। इस युद्ध में नेपाल की पराजय हुई, जिसके परिणाम स्वरूप 1816 में ईस्ट इंडिया कम्पनी और नेपाल के बीच एक संधि की गयी जिसे सुगौली संधि के नाम से जाना जाता है।
सुगौली संधि में तय हुई सीमा
सुगौली संधि के तहत नेपाल को सिक्किम, कुमाऊँ, गढ़वाल व तराई क्षेत्र को छोड़ना पड़ा और नेपाल की एक नयी सीमा का निर्धारण किया गया। संधि में निर्धारित नेपाल की नयी सीमा के अनुसार पश्चिम की सीमा उत्तराखंड की सारदा नदी जिसे नेपाल में काली या महाकाली के नाम से जाना जाता है, को माना गया और पूर्वी सीमा मेची नदी को। अब आज के परिपेक्ष में पश्चिम की यही सीमा विवाद का कारण है।
भारत सरकार की सीमा सड़क संगठन ने कालापनी से लेपुलेख दर्रा तक सड़क का निर्माण किया। कालापनी से लेपुलेख को जोड़ने के पीछे दो मुख्य कारण थे। पहला कैलाश मानसरोवर की यात्रा को सुगम और छोटा करना। पहले कैलाश मानसरोवर की यात्रा नाथुला दर्रा से हो कर की जाती थी जो की एक बहुत लम्बा रास्ता है। उत्तराखंड में स्थित लेपुलेख दर्रा से यह रास्ता काफ़ी छोटा हो जाता है। दूसरा किसी भी विपरीत स्थिति में इंडो-चाइना बॉर्डर तक के लिए सड़क का निर्माण। इसी सड़क के निर्माण के कारण विवाद की शुरूवात होती है।
महाकाली नदी का उद्गम है विवाद
विवाद का विषय है नेपाल की पश्चिमी सीमा, जिसका निर्धारण सुगौली संधि में किया गया है। दोनो ही देश इस संधि को मानते है जिसमें कहा गया हैं की महाकाली नेपाल की पश्चिमी सीमा है। विवाद इसलिए है क्योंकि महाकाली नदी का उद्गम तीन नदियों लिम्पयाधूरा, कालापनी और लेपुलेख के मिलने से होता है। भारत का मानना है की लेपुलेख से महाकाली का उद्गम होता है जो सबसे पूर्व में स्थित है जबकि नेपाल का मानना है की महाकाली की शुरूवात लिम्पयाधूरा से होती है जो की सबसे पश्चिम में स्थित है। नेपाल लिम्पयाधूरा से लेपुलेख तक के क्षेत्रफल को नेपाल का हिस्सा बता रहा है और इसके लिए उसने अपने नक़्शे में भी संशोधन कर दिया है। यह पूरा क्षेत्रफल भारत के पास है।
आपसी सहमति से सुलझ सकता है विवाद
अब सवाल यह उठता है की यह विवाद इतना गम्भीर कैसे बन गया। इस विवाद को सुलझाने की कोशिश भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी बाजपेई और नेपाल के तत्कालीन प्रधानमंत्री गिरिजा प्रसाद कोईराला ने भी की थी। परंतु आज परिस्थिति थोड़ी भारत के प्रतिकूल है क्योंकि नेपाल की सत्ताधारी पार्टी कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ नेपाल की राजनीतिक विचारधारा चाइना की राजनीतिक विचारधारा से बहुत मेल खाती है। इसके साथ ही नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली चाइना के करीबी माने जाते है। भारत और नेपाल की सफलता इसी में है की यह विवाद कूटनीति के जरिये आपसी सहमति से सुलझा लिया जाए।
[bs-quote quote=”यह लेखक के निजी विचार हैं। लेखक कमर्शियल पायलट होने के साथ ही एक इंटरप्रेन्योर हैं। पत्रकारिता में भी लंबे समय तक जुड़ें रहें।” style=”style-13″ align=”center” author_name=”शलभ प्रताप सिंह” author_avatar=”https://journalistcafe.com/wp-content/uploads/2020/05/Shalabh-Pratap-Singh.jpg”][/bs-quote]
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