तीन तलाक के लिए सरकार कानून लाए : सुप्रीम कोर्ट

0

सर्वोच्च न्यायालय ने बुधवार को केंद्र सरकार को सुझाव दिया कि तीन तलाक के मुद्दे पर वह न्यायालय के फैसले का इंतजार करने के बजाय मुस्लिमों में तीन तलाक सहित शादी व तलाक से संबंधित मुद्दों के समाधान के लिए एक कानून लाए। प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति जगदीश सिंह केहर की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संवैधानिक पीठ ने महान्यायवादी मुकुल रोहतगी से कहा, “हम मुद्दे पर फैसला कर भी सकते हैं और नहीं भी, लेकिन आप तो कीजिए।”

सरकार के उस रुख का उल्लेख करते हुए कि न्यायालय पहले तीन तलाक को अमान्य घोषित करे उसके बाद वह कानून लाएगी, पीठ ने पूछा कि ऐसा क्यों लगता है कि सरकार अपनी जिम्मेदारी से भाग रही है?

इस पर रोहतगी ने कहा, “मुझे जो करना है, मैं करूंगा। सवाल यह है कि आप (न्यायालय) क्या करेंगे।”

किसी भी कानून की गैर मौैजूदगी में कार्यस्थल पर महिलाओं की सुरक्षा करने को लेकर शीर्ष न्यायालय द्वारा तैयार विशाखा दिशा-निर्देशों का जब रोहतगी ने संदर्भ दिया, तो न्यायमूर्ति कुरियन ने कहा कि यह कानून का मामला है न कि संविधान का।

रोहतगी ने जब हिदू धर्म में सती प्रथा, भ्रूणहत्या तथा देवदासी प्रथा सहित कई सुधारों का हवाला दिया, तो न्यायमूर्ति जोसेफ ने कहा कि इन सबों पर विधायी फैसले लिए गए हैं।

न्यायमूर्ति केहर ने कहा, “क्या इसे न्यायालय ने किया? नहीं, इन सबसे विधायिका ने निजात दिलाई।”

रोहतगी ने तीन तलाक को ‘दुखदायी’ प्रथा करार देते हुए न्यायालय से अनुरोध किया कि वह इस मामले में ‘मौलिक अधिकारों के अभिभावक के रूप में कदम उठाए।’

देश के बंटवारे के वक्त के आतंक तथा आघात को याद करते हुए उन्होंने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 25 को संविधान में इसलिए शामिल किया गया था, ताकि सबके लिए यह सुनिश्चित हो सके कि उनकी धार्मिक भावनाओं के बुनियादी मूल्यों पर राज्य कोई हस्तक्षेप न कर सके।

तीन तलाक की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाले एक याचिकाकर्ता की तरफ से न्यायालय में पेश हुईं वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह ने कहा कि न्यायालय मामले पर पिछले 67 वर्षो के संदर्भ में गौर कर रहा है, जब मौलिक अधिकार अस्तित्व में आया था न कि 1,400 साल पहले जब इस्लाम अस्तित्व में आया था।

उन्होंने कहा कि न्यायालय को तलाक के सामाजिक नतीजों का समाधान करना चाहिए, जिसमें महिलाओं का सबकुछ लुट जाता है।

संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत कानून के समक्ष बराबर तथा कानून के समान संरक्षण का हवाला देते हुए जयसिंह ने कहा कि धार्मिक आस्था तथा प्रथाओं के आधार पर देश महिलाओं व पुरुषों के बीच किसी भी तरह के मतभेद को मान्यता न देने को बाध्य है।

इससे पहले, सुबह में पीठ ने ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) से पूछा कि क्या यह संभव है कि निकाह की सहमति देने से पहले महिला को विकल्प मुहैया कराया जाए कि उसकी शादी तीन तलाक से नहीं टूटेगी और क्या काजी उनके (एआईएमपीएलबी) निर्देशों का पालन करेंगे।

न्यायमूर्ति केहर ने एआईएमपीएलबी से कहा, “आप इस विकल्प को निकाहनामे में शामिल कर सकते हैं कि निकाह के लिए सहमति देने से पहले वह तीन तलाक को ना कह सके।”

सुझाव पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए वरिष्ठ वकील यूसुफ हातिम मुच्चाला ने कहा कि काजी एआईएमपीएलबी के निर्देश से बंधे नहीं हैं।

एआईएमपीएलबी की कार्यकारिणी समिति के सदस्य मुच्चाला ने हालांकि एआईएमपीएलबी द्वारा लखनऊ में अप्रैल महीने में पारित उस प्रस्ताव की ओर इशारा किया, जिसमें उसने समुदाय से वैसे लोगों का बहिष्कार करने की अपील की है, जो तीन तलाक का सहारा लेते हैं।

उन्होंने कहा कि वह विनम्रता पूर्वक सुझाव पर विचार करेंगे और उसे देखेंगे।

तीन तलाक की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं की सुनवाई के दौरान एआईएमपीएलबी को न्यायालय का सुझाव सामने आया।

एआईएमपीएलबी हालांकि ने मंगलवार को सर्वोच्च न्यायालय से कहा कि तीन तलाक एक ‘गुनाह और आपत्तिजनक’ प्रथा है, फिर भी इसे जायज ठहराया गया है और इसके दुरुपयोग के खिलाफ समुदाय को जागरूक करने का प्रयास जारी है।

 (अन्य खबरों के लिए हमें फेसबुक पर ज्वॉइन करें। आप हमें ट्विटर पर भी फॉलो कर सकते हैं।)

Leave A Reply

This website uses cookies to improve your experience. We'll assume you're ok with this, but you can opt-out if you wish. AcceptRead More