आजादी से अब तक! कितना बदला देश, बड़ी इकोनॉमी में छुप गए कच्चे घर

0

आज से दो दिन बाद भारत को आजाद हुए 76 साल पूरे हो जाएंगे। इस साल 2023 में देश आजादी की 77वीं वर्षगांठ मनाएगा। देश की आजादी का सरकार पिछले दो सालों से अमृत महोत्सव भी मना रही है। इसी के साथ देश अब दूसरी सबसे बड़ी इकोनॉमी भी बन गया है। सरकार का दावा है कि आगामी सालों में भारत विश्व की तीसरी इकोनॉमी बन जाएगा। मगर क्या आप जानते हैं कि सबसे बड़ी इकोनॉमी बनने की दहलीज पर खड़े भारत देश में आज भी लोग मिट्टी के घरों में ज़िन्दगी गुजार रहे हैं। चलिए आज आपको देश के वास्तविक विकास से परिचय कराते हैं।

आजादी के बाद देश गरीबी से गुजरा

प्रारंभ से ही भारत भूमि कृषि प्रधान रही है। आजादी से पहले ही देश में कई बहुमूल्य खजाना भूमि के भीतर सिमटे हुए थे। मगर परतंत्रता से स्वतंत्रता की लड़ाई में भारत गरीबी के स्तर पर पहुँच चुका था। 1947 में भारत जब आजाद हुआ तब देश हर चीज के लिए आयात पर निर्भर हो था। चाहे खाने-पीने की चीजें हों या रोजमर्रा इस्तेमाल होने वाली दूसरी वस्तुएं।

तीसरी बड़ी इकोनॉमी बनने जा रहा देश

आजादी के आज आठ दशक पूरे होने तक देश दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी इकोनॉमी बनने की दहलीज पर खड़ा है। आईएमएफ के अनुसार 2027 में भारत की 5.15 लाख करोड़ डॉलर की इकोनॉमी अमेरिका और चीन के बाद दुनिया में तीसरे स्थान पर होगी, जो अभी पांचवें स्थान पर है।

ऊंची इमारतों में ढक गए कच्चे घर

वैश्विक विकास के पीछे दौड़ते-दौड़ते आज देश वास्तविक मूल्यों के रास्तों से भटक चुका है। देश में टेक्नोलॉजी और औद्योगिकरण की भूमि तैयार करने के बीच गांव और शहरों में बड़ा अन्तर बन गया है। विकास के आइने में केवल शहर ही दिखाई देंगे, ग्रामीण क्षेत्र अब भी विकास से कोसों दूर ही है। देश में शहरों के बीच खड़ी भव्य इमारतों की आड़ में गांव के कच्चे घर बेशक छुप गए हैं।

आय दुगनी हुई तो महंगाई भी बढ़ी

इस दौरान भारत ने कृषि, उद्योग, टेक्नोलॉजी, अंतरिक्ष, सर्विसेज हर क्षेत्र में तरक्की की है। एग्रीकल्चरल स्टैटिस्टिक्स एट ए ग्लांस के अनुसार 1950-51 में प्रति व्यक्ति आय 7114 रुपये थी, यह 2022-23 में 24 गुना बढ़कर 172000 रुपये (मौजूदा मूल्यों पर) हो गई। मगर आपने सोचा है ? प्रति आय दोगुनी होने के साथ-साथ-साथ रोज़मर्रा की आवश्यकताओं की वस्तुएँ भी दोगुनी क़ीमत की हो गई। जिससे व्यक्ति की बढ़ी आय भी कम पड़ने लगी है।

देश में वितरण, विदेश में निर्यात

भले ही आज अनाज उत्पादन 508 लाख टन से छह गुना बढ़कर 2021-22 में 3157 लाख टन पहुंच गया। हम दूध और दालों के सबसे बड़े उत्पादक बन गए हैं और गेहूं-चावल और फल-सब्जियों के उत्पादन में दूसरे स्थान पर हैं। मगर 140 करोड़ देशवासियों की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए देश के एक हिस्से को आज भी अनाज वितरण करना पड़ रहा है। जिसकी वज़ह साफ है, देश आज व्यापार में 100 से ज्यादा देशों को खाद्य निर्यात कर रहा है।

भुखमरी से आत्महत्या, कहां जा रहा विकास!

ऐसे में आप य़ह आंकलन किस तरह करेंगे कि देश एक तरफ बड़ी अर्थव्यवस्था की चौखट को चूमने जा रहा है और दूसरी तरफ एक तबका गरीबी की ओर अग्रसर है। क्या हम वास्तव में विकसित देश बन चुके हैं या फिर विकासशील ढर्रे पर पड़े हैं। इस तथ्य को यूँ समझे जैसे किसी चमकती किताब का मुख्य और पहला पृष्ठ तो अच्छी क्वालिटी का रखा जाता है और भीतर के पृष्ठों से केवल काम चलाया जाता है। आज देश के विकास की भी कुछ यही परिभाषा बनती जा रही है। आजादी के अमृतकाल में भी जनता का एक तिहाई तबका भुखमरी और तंगी से आत्महत्या करने को मजबूर है और हम विकसित देश की दुहाई देकर खोखली तारीफें बटोर रहे हैं।

 

Also Read : राजभवन के सामने महिला का प्रसव, अव्यवस्था ने ली शिशु की जान

Leave A Reply

This website uses cookies to improve your experience. We'll assume you're ok with this, but you can opt-out if you wish. Accept Read More