बंगलुरु पर फिर मंडरा रहा बाढ़ का खतरा, जानिए कारण

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सदियों पुराना एक शहर, जहां कभी बाढ़ नहीं आती हो। वहां बाढ़ का खतरा मडराने लगा हो…क्या ऐसा हो सकता है. अगर आपको लगता है नहीं। तो एक बार कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरू शहर की यह कहानी सुन लीजिए. इस बार के मानसून ने बेंगलुरू में बाढ़ जैसे हालात कर दिए है. इसकी वजह मानसून के कारण तेज बारिश से शहर के नालों और निकासी स्थलों में पानी उफान भरेगा और बेंगलुरू की सूख चुकी नदी नाले तक बाढ़ जैसे हालात बना देंगे और इसकी वजह शहर का बेतरतीब नियोजन है जो एक तरह से यहां के जलनिकासी तंत्र को खत्म कर चुका है.

हमेशा से नहीं होता था ऐसा…

ऐसा नहीं है बेंगलुरू शहर के इलाके पानी में डूबे नहीं हों. पिछले साल ही वहां मानसूनी बारिश ने शहर के कई जगहों को पानी में डुबो दिया था और तो और तीन दशकों से सूखी पड़ी रही पिनाकिनी नदी भी इस तरह से भर गई थी कि उसका पानी शहर के अंदर आ गया था. यह समस्या इस साल और गंभीर होने की पूरी उम्मीद की जा रही है और अगर इसे रोकने के लिए कुछ नहीं कया गया तो बेंगलुरू में बाढ़ देखने को मिलेगी यह तय है.

क्या है सबसे बड़ी वजह…

पिछले कई दशकों से अंधाधुंध निर्माण कार्यों के कारण हालात ऐसे हो गए हैं. डीडब्ल्यू की खबर में इंटरनेशनल प्रॉपर्टी कंसल्टेंसी फर्म नाइट फ्रैंक की रिपोर्ट “बेंगलुरु अर्बन फ्लड” के हवाले से बताया गया है बेंगलुरू को इस स्थिति से बचने के लिए बरसाती पानी के निकासी के तंत्र में बहुत ज्यादा सुधार करने की जरूरत है नहीं तो शहर में हर साल बाढ़ के हालात बनना नियम बन जाएगा.

ये काम करना बहुत जरूरी…

रिपोर्ट में साफ तौर पर कहा गया है कि बेंगलुरू में कुल 658 किलोमीटर छोटे और मध्यम बरसाती नालों को बनाना बहुत जरूरी हो गया है. नहीं तो बरसात के मौसम में इलाकों में पानी भर कर बाढ़ की स्थिति इस साल फिर से बन जाएगी. अनुमान लगाया गया है कि इसके लिए लगभग 2800 करोड़ की लागत आएगी जिसमें 80 फीसद हिससा केवल नाले बनाने में ही लग जाएगा.

तेजी से निर्माणकार्य…

बेंगलुरू को भारत की सिलिकॉन वैली माना जाता है. यहां देश विदेश के बड़ी कंपनियों सहित तीन हजार से ज्यादा दफ्तर हैं और यहां का बढ़िया मौसम इसे रहने के लिए आदर्श शहर की तरह बनाता है. यहां ना बहुत ज्यादा गर्मी होती है ना ही बहुत ऊमस के दिन होते हैं. ऐसे में कुछ ही दशकों में यहां बहुत तेजी से इमारतों का निर्माण कार्य हुआ है और ऐसा करते समय जलनिकासी तंत्र को पूरी तरह से नजरअंदाज किया गया है यह साफ दिखने लगा है.

एक सेमी बारिश ही काफी…

इसी साल अप्रैल में कर्नाटक की स्टेट नेचुरल डिजास्टर मनिटरिंग सेंटर (केएसएनडीएमसी) ने वृहद बेंगलुरू महानगर पालिका को भेजी अपने रिपोर्ट में बेंगलुरू की 226 ऐसी जगहों की पहचान की है जहां बारिश के दौरान बाढ़ के हालात बन सकते हैं. रिपोर्ट की सबसे खास बात यह है कि इसमें बताया गया है कि अगर शहर में एक सेमी बारिश भी हो गई तो कईइलाकों में बाढ़ के हालात नहीं रोके जा सकेंगे.

निकासी तंत्र पर दबाव…

भारी बारिश, तीव्र शहरीकरण और तेजी से बढ़ती आबादी का बेंगलुरू शहर की जलनिकासी प्रणाली भारी दबाव में है. सदी की शुरुआत में जहां शहर की जमीन पर निर्माण कार्य 37 फीसद से भी कम था, वहीं 2020 में निर्मित क्षेत्र बढ़कर 93.3 फीसद तक पहुंच गया था. वहीं अनुमान है कि 2022 मे शहर की 1.23 करोड़ की जनसंख्या बढ़कर 1.8 करोड़ हो जाएगी. लेकिन उसी अनुपातन में शहर का क्षेत्रफल ना बढ़ने से दबाव और ज्यादा बढ़ जाएगा.

इस तरह की समस्या भारत में केवल बेंगलुरू में ही नहीं है. बल्कि लगभग हर बड़े शहर में इस तरह का दबाव बढ़ता जा रहा है. बेंगलुरू शहर में सालाना बारिश बहुत अधिक होती है और जलवायु परिवर्तन की वजह से बारिश में तीव्रता के साथ एक बार की बारिश की मात्रा भी बढ़ने लगी है इससे खतरा और बढ़ता जा रहा है. वहीं जल स्रोतों के चारों तरफ बढ़ता निर्माण, घटती हरियाली और नालियों पर बढ़ते दबाव से शहर में पानी सोखने और उसकी निकासी की क्षमता बुरी तरह से प्रभावित हुई है और नतीजा सामने है.

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