कैसे बना देश का 29वां राज्य तेलंगाना, लम्बे संघर्ष के बाद मिली थी नई पहचान
आज दो जून को तेलंगाना स्थापना दिवस मनाया जा रहा है। आधिकारिक तौर पर तेलंगाना का गठन दो जून, 2014 को हुआ था और इसी दिन तेलंगाना अस्तित्व में आया था। तब से इस दिन को तेलंगाना स्थापना दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह दिन एक दशक लंबे आंदोलन का अंतिम परिणाम था जिसमें भाषाई आधार पर नहीं बल्कि सांस्कृतिक आधारों पर आधारित एक नया राज्य बनाया गया था। यह दिन उन सभी लोगों के बलिदान और सहयोग को याद करता है जिन्होंने इस अलग राज्य को बनाने में अपना जी जान लगा दिया।
2 जून को बना तेलंगाना अलग राज्य
29 नवंबर 2009 को चंद्रशेखर राव के नेतृत्व में टीआरएस ने अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल शुरू करते हुए तेलंगाना के गठन की मांग की। केंद्र सरकार पर बढ़ते दबाव के चलते 3 फरवरी 2010 को पूर्व न्यायाधीश श्रीकृष्ण के नेतृत्व में पांच सदस्यीय एक समिति का गठन किया गया। समिति ने 30 दिसंबर 2010 को अपनी रिपोर्ट केंद्र को सौंप दी। आखिरकार तेलंगाना में भारी विरोध और चुनावी दबाव के चलते 3 अक्टूबर 2013 को यूपीए सरकार ने पृथक तेलंगना राज्य के गठन को मंजूरी दे दी। 2 जून ,2014 को तेलंगना देश का 29 वा राज्य बना और चंद्रशेखर राव ने इसके पहले मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ली।
तेलंगाना का इतिहास
तेलंगाना की इतिहास की बात करें तो 1 नवंबर 1956 को तेलंगना आंध्र प्रदेश के साथ विलय कर विशेष रूप से तेलूगु भाषा बोलने वाले लोगों के लिए एक एकीकृत राज्य बनाने के लिए उस राज्य को तत्कालीन मद्रास से गढ़ा गया था। 1969 में, तेलंगाना क्षेत्र में एक नए राज्य के लिए विरोध और आंदोलन किया गया। 1969 के आंदोलन में विभिन्न सामाजिक संगठनों, छात्र संघों और सरकारी कर्मचारियों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। विरोध इतना हिंसात्मक था कि पुलिस फायरिंग में कई लोग मारे गए। यह विरोध का ही नतीजा था कि 1972 में अलग आंध्र प्रदेश के रूप में एक नए राज्य का गठन किया गया।
लगभग 40 वर्षों के विरोध के बाद, तेलंगाना बिल फरवरी 2014 में कांग्रेस वर्किंग कमीटी और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) द्वारा लोकसभा में पारित किया गया था। बिल 2014 में भारतीय संसद में पेश किया गया था और उसी साल आंध्र प्रदेश रीऑर्गेनाइजेशन एक्ट को स्वीकृति प्राप्त हुई। विधेयक के अनुसार, तेलंगाना का गठन उत्तर-पश्चिमी आंध्र प्रदेश के दस जिलों द्वारा किया गया।
पहचान और स्वायत्तता के लिए किया आंदोलन
तेलंगाना के लोग दशकों तक अलग राज्य की मान्यता और स्वायत्तता के लिए लड़ाई लड़े। सामाजिक-आर्थिक असमानताओं, उपेक्षा और राजनीतिक हाशिए पर धकेले जाने के कारण एक अलग राज्य की मांग को बल मिला। इन्हीं शिकायतों को दूर करने और लोगों के अधिकारों और आकांक्षाओं को सुरक्षित करने के लिए एक आंदोलन उभरा, जो तेलंगाना के गठन के साथ समाप्त हुआ।
1956 में विलय हुआ था तेलंगाना
एक नवंबर, 1956 को राज्य पुनर्गठन आयोग की सिफारिशों पर तेलंगाना (तात्कालीन हैदराबाद) को भाषा के आधार पर आंध्र प्रदेश में विलय हुआ था। हालांकि, आंध्र प्रदेश में विलय के कुछ समय बाद ही इसका असर दिखने लगा और राज्य के अन्य हिस्सों की तुलना में तेलंगाना क्षेत्र पिछड़ा होता चला गया, तेलंगाना क्षेत्र में आर्थिक, शैक्षणिक एवं अन्य सभी स्तरों पर पिछड़ापन देखा गया।
कैसी उठी तेलंगाना को अलग करने की मांग
इसके बाद तेलंगाना को अलग राज्य बनाने की मांग उठने लगी, लेकिन ये लड़ाई काफी लंबी चली और कई दशकों के बाद तेलंगाना को अपनी अलग पहचान मिली। वर्ष 1969 में तेलंगाना को अलग करने की मांग तेज हो गई। तेलंगाना और आंध्र प्रदेश के बीच कई अंतर थे। वर्ष 1969 में तेलंगाना को अलग करने की मांग के बाद 1972 और 2009 में दो बड़े आंदोलन हुए। इन आंदोलनों ने ही तेलंगाना को अगल किया। 1969 में तेलंगाना को अलग करने के लिए आंदोलन में करीब 300 लोगों की मौत हुई थी। इसके बाद, ये मांग और तेज होती चली गई।
वर्ष 2009 में तेलंगाना के गठन के लिए के चंद्रशेखर राव (केसीआर) भूख हड़ताल पर बैठ गए थे। इसके बाद, वो दिन पास आते गए जब तेलंगाना पहली बार अस्तित्व में आया और तेलंगाना को अगल राज्य का दर्जा मिला। वर्षों के अथक संघर्ष और शांतिपूर्ण विरोध का अंत विजय के ऐतिहासिक क्षण में हुआ। दो जून, 2014 को एक स्वतंत्र राज्य के रूप में तेलंगाना के गठन ने लोगों के सपनों को साकार किया। यह हर तेलंगानावासी के लिए अपार खुशी, गर्व और उत्सव का क्षण था।
तेलंगाना गठन में केसीआर की भूमिका
तेलंगाना आंदोलन का नेतृत्व के चंद्रशेखर राव ने किया। केसीआर ने तेलंगाना क्षेत्र की चिंताओं को दूर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इन नेताओं की दृढ़ता और अटूट प्रतिबद्धता आंदोलन के लिए एक प्रेरक शक्ति बन गई, जिससे हजारों लोगों को एक साझा लक्ष्य की खोज में एकजुट होने की प्रेरणा मिली।
तेलंगाना के लिए चला 57 साल आंदोलन
तेलंगाना का गठन तेलंगाना आंदोलन की जीत का प्रतीक है। यह आंध्र प्रदेश राज्य से तेलंगाना के ऑफिशियल अलगाव की याद दिलाता है। 2 जून 2014 को, तेलंगाना के लोगों की आशाओं को साकार करते हुए 57 साल पुराना एक आंदोलन समाप्त हो गया। आंदोलन ने न केवल क्षेत्र के लोगों को एक अलग पहचान प्रदान की, बल्कि भारत के नक्शे में भी बदलाव किया, जो अब राज्य की सीमाओं को दर्शाता है। हर साल स्थापना दिवस पर भारत के प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति के साथ-साथ देश भर के राजनीतिक नेता तेलंगाना के लोगों को शुभकामनाएं भेजते हैं।
तेलंगाना की प्रगति और विकास
अपनी स्थापना के बाद से तेलंगाना ने समावेशी विकास और विकास पर ध्यान केंद्रित करते हुए विभिन्न क्षेत्रों में महत्वपूर्ण प्रगति की है। बुनियादी ढांचे, शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल और कृषि पर सरकार के प्रयास ने अपने नागरिकों के जीवन को बदल दिया है। राज्य में सिंचाई परियोजनाओं, औद्योगिक विकास और सूचना प्रौद्योगिकी जैसे क्षेत्रों में उल्लेखनीय प्रगति हुई है। इसने वैश्विक स्तर पर अपनी स्थिति को और मजबूत किया है।
तेलंगाना की संस्कृति
तेलंगाना राज्य लंबे समय से कई विविध भाषाओं और संस्कृतियों का मिलन स्थल रहा है। यह भारत की मिश्रित संस्कृति, बहुलवाद और समावेशिता का सबसे अच्छा उदाहरण है। दक्कन के पठार के ऊपर स्थित तेलंगाना भारत के उत्तर और दक्षिण के बीच की कड़ी की तरह है। इसे ‘लघु भारत’ के नाम से भी जाना जाता है। इसके पीछे का कारण इसकी गंगा-जमुना तहज़ीब और इसकी राजधानी हैदराबाद है। तेलंगाना की संस्कृति का निर्धारण उसके भूगोलिक क्षेत्र, राजनीति और अर्थव्यस्था के आधार पर किया गया है। इस क्षेत्र में शुरुआती शासकों सातवाहन ने स्वतंत्रत और आत्मनिर्भर ग्रामीण अर्थव्यस्था के बीज बोए थे, जिसके अवशेष आज भी महसूस किए जा सकते हैं। मध्ययुगीन काल में, 11 वीं और 14 वीं शताब्दी के बीच काकतीय राजवंश के शासन ने वारंगल को अपनी राजधानी बनाया था और बाद में हैदराबाद राज्य पर शासन करने वाले कुतुब शाही और आसफजाहियों ने इस क्षेत्र की संस्कृति को परिभाषित किया था।
तेलंगाना की जनसांख्यिकी
2023 में तेलंगाना की आबादी 38.08 मिलियन (3.8 करोड़) होने का अनुमान है, मार्च 2022 तक, तेलंगाना की आबादी 3.79 करोड़ होने का अनुमान है, विशिष्ट पहचान आधार इंडिया के अनुसार, 31 मार्च 2022 को अपडेट किया गया।