फिरोज खान प्रकरण- किसकी जीत, किसकी हार ?

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बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी में चल रहे फिरोज खान नियुक्ति विवाद पर विराम लग गया है। फिरोज खान ने संस्कृत धर्म विद्या विज्ञान संकाय से इस्तीफा दे दिया। उनकी नई नियुक्ति कला संकाय के संस्कृत विभाग में हुई है। लगभग एक महीने तक चले इस विवाद ने महामना की बगिया से जुड़े लोगों को वो टीस दी है, जो सालों साल सालती रहेगी। धर्म के आधार पर नियुक्ति के विरोध की इस रस्साकशी में जीत किसकी हुई, ये तो नहीं मालूम, लेकिन बीएचयू जरूर हार गया। ऐसा हम नहीं बल्कि बहुतेरे लोग कह रहे हैं। परंपरा और धार्मिक भावनाओं के आगे के जिस तरह नियम-कानून ने दम तोड़ तोड़ा, वो परेशान करने वाली बात है। क्या ये अच्छा होता नहीं होता कि संस्कृत धर्म विद्या विज्ञान संकाय में फिरोज खान की नियुक्ति को सहर्ष स्वीकार कर, बीएचयू पूरे देश में एक नजीर पेश करता।

सोशल मीडिया पर तरह-तरह की प्रतिक्रिया-

फिरोज खान के इस्तीफे के बाद सिर्फ बीएचयू ही नहीं बल्कि सोशल मीडिया पर तरह-तरह के रिएक्शन आ रहे हैं। देश की फिल्मी हस्तियों ने इस घटना को लेकर तीखी प्रतिक्रिया दी है। इन्ही में से एक हैं बॉलीवुड एक्टर फरहान अख्तर। लगभग हर समसामियक मुद्दों पर अपनी राय ट्विटर के जरिए जनता के समक्ष रखने वाले बॉलीवुड एक्टर फरहान अख्तर ने फिरोज खान के इस कदम पर नाराजगी जताई है। उन्होंने बीएचयू के छात्रों का अपने ट्विटर हैंडल से एक वीडियो शेयर किया है। इस वीडियो में छात्र एक-दूसरे को मिठाई खिलाते हुए नजर आ रहे हैं। इस वीडियो को शेयर करते हुए फरहान अख्तर ने लिखा, ‘धब्बा.’ फरहान अख्तर के इस ट्वीट पर लोग खूब कमेंट कर रहे हैं और अपनी प्रतिक्रिया देते हुए दिखाई दिए। सिर्फ फरहान अख्तर ही नहीं ट्वींकल खन्ना ने भी इस मसले को लेकर ट्वीट किया। उन्होंने लिखा कि जाति, मजहब और संप्रदाय के नाम पर भेदभाव गलत है।

कहीं जश्न तो कहीं विरोध प्रदर्शन-

फिरोज खान की नियुक्ति को शुरू से ही विश्वविद्यालय दो भागों में बंटा रहा। छात्रों का एक दल फिरोज खान की नियुक्ति का विरोध करते हुए लगभग एक महीने तक धरने पर बैठा रहा। और ये विरोध प्रदर्शन तब तक जारी रहा, जब तक फिरोज खान ने संस्कृत धर्म विद्या विज्ञान संकाय से इस्तीफा नहीं दे दिया। जैसे ही फिरोज खान के इस्तीफे की खबर सामने आई, छात्रों का ये दल जश्न मनाने लगा। कैम्पस में मिठाई बांटी गई। छात्रों ने इसे भारतीय संस्कृति और महामना के मूल्यों कि जीत बताया। विरोध की अगुवाई करने वाले शोध छात्र चक्रपाणि ओझा कहते हैं कि “हम किसी धर्म और सम्प्रदाय का विरोध नहीं कर रहे थे। हमारा विरोध महामना मैदान मोहन मालवीय जी की ओर से बनाये गए परंपरा को तोड़ने के खिलाफ था। ये जीत-हार का प्रश्न नहीं है। फिरोज खान ने भी हमारी भावनाओं का सम्मान किया। इसके लिए वो बधाई के पात्र हैं।” दूसरी ओर फिरोज खान का समर्थन करने वाले छात्रों ने इस घटना को विश्वविद्यालय के इतिहास पर एक धब्बा करार दिया। छात्रों ने लंका से एक विरोध मार्च निकाला। प्रदर्शनकारियों ने फिरोज खान के इस्तीफे को मनुवादियों की जीत बताया। शोध छात्र स्वदेश बनर्जी कहते हैं कि बीएचयू और हम सभी छात्रों के लिए इससे शर्मनाक घटना और क्या हो सकती है। जिस तरह धार्मिक भावनाओं की आड़ में नियमों को कुचला गया, वो बेहद अफसोसजनक है। बेहतर होता

नियुक्ति पर बंटे रहे विश्वविद्यालय के प्रोफेसर-

ऐसा नहीं है कि फिरोज खान की नियुक्ति को लेकर सिर्फ छात्र ही बंटे नजर आए बल्कि संस्कृत धर्म विद्या विज्ञान संकाय के प्रोफेसर भी दो फाड़ में दिखे। इस मसले को लेकर बीएचयू के 50 से अधिक वर्तमान और पूर्व प्रोफेसरों ने तो बाकायदा राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को लेटर लिखा और फिरोज खान की नियुक्ति को लेकर आपत्ति जताई। राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को भेजे गए पत्र में अलग-अलग विभागों के पूर्व विभागाध्यक्ष, संकाय अध्यक्ष सहित 11 अध्यापकों ने भी हस्ताक्षर किए। पत्र में लिखा गया कि काशी हिंदू विश्वविद्यालय की ओर से गलती से फिरोज खान की नियुक्ति संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय में धार्मिक साहित्य विभाग के अध्यापक के रूप में किए जाने का संज्ञान लेकर इसे तत्काल रद्द करने का आदेश दिया जाए। संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय को छोड़कर विश्वविद्यालय के अन्य किसी भी संकाय में स्थित संस्कृत विभागों में यदि फिरोज खान अपनी योग्यता के अनुसार नियुक्त किए गए होते तो इसमें खुशी होती क्योंकि संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय के अतिरिक्त अन्य दूसरे संकाय सभी मत-पंथों के लिए कानून के अनुसार खुले हुए हैं। आलम ये था की संकाय के कुछ प्रोफेसरों ने मीडिया में सामने आकर खुलेआम नियुक्ति का विरिध किया। इसके बाद संकाय अध्यक्ष ने मीडिया से बात करने पर रोक लगा दी।

दलित प्रोफेसर पर हमले की कोशिश-

एक तरफ जहां प्रोफेसरों का एक गुट नियुक्ति का विरोध कर रहा था, तो दूसरी ओर कुछ ऐसे भी प्रोफेसर थे जो फिरोज खान के समर्थन में थे। इसहिं में से एक थे दलित एसोसिएट प्रोफेसर शांतिलाल सालवी। शांति लाल ने फिरोज खान के समर्थन की हिमाकत की तो धरना देने वाले छात्रों के विरोध का सामना करना पड़ा। 9 दिसम्बर को छात्रों ने शांतिलाल के ऊपर उस समय हमला कर दिया जब वो छात्रों को समझाने की कोशिश कर रहे थे। इसी दौर कुछ छात्रों ने उनके ऊपर हमला कर दिया। शांतिलाल किसी तरह भागते हुए वीसी आवास पहुंचे और ऊनी जान बचाई। इस संबंध में उन्होंने वीसी से शिकायत की और लंका थाने में चार छात्रों के खिलाफ केस दर्ज कराया। शांतिलाल का कहना था कि चूंकि वो राजस्थान से ताल्लुक रखते हैं। इसलिए उनके ऊपर ये आरोप लग रहे हैं कि फिरोज खान की नियुक्ति में उनका हाथ है। जबकि सच्चाई ये है कि फिरोज खान अपनी काबिलियत के जरिये यहां तक पहुंचे हैं।

निशाने पर कुलपति राकेश भटनागर-

पूरे प्रकरण के बीच बीएचयू के कुलपति राकेश भटनागर की भूमिका को लेकर भी सवाल उठते रहे हैं। विश्वविद्यालय के प्रोफेसरों का एक धड़ा शुरू से ही उनके ऊपर वामपंथी विचारधारा को बढ़ावा देने का आरोप लगाता रहा है। इसके पीछे की वजह भी है। दरअसल राकेश भटनागर जेनएयू से जुड़े रहे हैं। दक्षिणपंथ का गढ़ होने के बावजूद राकेश भटनागर ने बीएचयू में इस विचारधारा से जुड़े लोगों को खुली छूट नहीं दी। उनके ऊपर ये आरोप लगते रहे हैं कि वो विश्वविद्यालय में होने वाले धार्मिक क्रियाकलापों में रुचि नहीं लेते। यही नहीं बीएचयू में तैनाती होने के बावजूद उनका अधिक समय दिल्ली और देश के बाहर बिताता रहा है। पिछले दिनों हाई- फाई पार्टी में उनकी एक फ़ोटो वायरल हुई तो आरोपों को और भी बल मिल गया। विश्वविद्यालय में उनकी उपस्थिति प्रतिशत को लेकर भी सवाल उठते रहे हैं। फिरोज खान की नियुक्ति को लेकर भी वीसी के अड़ियल रवैये को लेकर सवाल उठते रहे हैं। बताया जा रहा है कि जब संस्कृत धर्म विद्या विज्ञान संकाय में फिरोज खान की नियुक्ति को लेकर विवाद हुआ तो वीसी ने विरोधियों को दू टूक कहा दिया कि नियुक्ति होकर रहेगी। पहले दिन से ही विश्वविद्यालय ने अपनी मंशा जाहिर कर दी, जबकि उनके इस फैसले से प्रोफेसरों का एक बड़ा गुट इत्तेफाक नहीं रख रहा था। जब मामले ने तूल पकड़ा तो फिरोज खान का आयुर्वेद संकाय और कला संकाय में सात्क्षत्कार कराया। आखिरकार उन्हें कला संकाय में नियुक्ति से दी गई।

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