महाराष्ट्र के खुल्दाबाद में स्थित मुगल शासक औरंगजेब की कब्र को हटाने की मांग को लेकर विवाद बढ़ गया है. विश्व हिंदू परिषद, बजरंग दल और भाजपा के कई कार्यकर्ताओं ने इसे हटाने की मांग की है. इसको लेकर नागपुर में हिंसा भी भड़क उठी, जिसमें कई लोग घायल हुए. इसी क्रम में भाजपा और शिंदे गुट की शिवसेना के कई नेताओं ने कब्र को तोड़ने की मांग की है. हालांकि, महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने साफ कहा है कि इसे चाहकर भी सरकार नहीं हटा सकती, क्योंकि यह भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के संरक्षण में है.
कब्र की कानूनी स्थिति
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के नियमों के तहत 100 साल से अधिक पुराने स्मारकों को राष्ट्रीय धरोहर घोषित किया जाता है. औरंगजेब की कब्र 1707 से मौजूद है, इसलिए इसे ASI द्वारा संरक्षित स्मारक का दर्जा मिला हुआ है.
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क्या कहता है कानून?
1958 के प्राचीन स्मारक और पुरातात्विक स्थल अधिनियम (AMASR Act) के तहत कोई भी राज्य सरकार राष्ट्रीय धरोहर घोषित संरक्षित स्मारकों को न तो हटा सकती है और न ही उनमें कोई बदलाव कर सकती है. इस कानून के तहत:
- किसी भी संरक्षित स्मारक को हटाने का अधिकार केवल केंद्र सरकार के पास होता है.
- राज्य सरकार को केवल इन स्मारकों की देखरेख करनी होती है.
- अगर कोई इन्हें नुकसान पहुंचाने की कोशिश करता है तो यह कानून का उल्लंघन माना जाएगा.
विवाद की वजह
हाल ही में रिलीज़ हुई विकी कौशल की फिल्म ‘छावा’ के बाद छत्रपति शिवाजी और उनके बेटे संभाजी के समर्थकों में औरंगजेब-विरोधी भावना तेज़ हुई है. इस बीच, समाजवादी पार्टी के नेता व विधायक अबू आजमी ने औरंगजेब की तारीफ में बयान दिया, जिससे विवाद और भड़क गया. हालांकि, अबू आजमी ने बाद में इस मामले में माफी मांग ली, लेकिन औरंगजेब की कब्र को हटाने की मांग तूल पकड़ चुकी है.
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ASI की भूमिका
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) की स्थापना 1861 में ब्रिटिश इंजीनियर अलेक्जेंडर कनिंघम ने की थी. ASI देश के 3,693 से अधिक संरक्षित स्मारकों की देखरेख करता है. महाराष्ट्र सरकार केंद्र सरकार से कब्र हटाने की अनुमति मांग सकती है, लेकिन अभी तक ऐसा कोई आधिकारिक कदम नहीं उठाया गया है.
फिलहाल महाराष्ट्र सरकार के पास औरंगजेब की कब्र हटाने का कोई कानूनी अधिकार नहीं है. केंद्र सरकार की मंजूरी के बिना ASI संरक्षित स्मारकों में कोई बदलाव नहीं किया जा सकता.