महंगाई की चपेट में शिक्षा, बिगड़ रहा घर का बजट

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लखनऊ: देश में लगातार बढ़ रही महंगाई अब शिक्षा पर भी दिखाई देने लगी है. शिक्षा में बढ़ रही महंगाई को देखते हुए हर तरफ हाहाकार मचा हुआ है. उसमे भी ये अप्रैल का महीना ने आते ही लोगों के घरों का पूरा बजट बिगाड़ कर रख दिया है, क्योंकि इस माह में आगामी वर्ष के लिए स्कूल सत्र की शुरुआत हो गई है. पिछले वर्ष की अपेक्षा इस बार बच्चों की कॉपी-किताबों से लेकर यूनिफॉर्म के दामों में 15- 25 फीसद तक इजाफा हो गया है. इससे स्वाभाविक है कि अभिभावकों पर महंगाई का बोझ बढ़ गया है.

अभिभावक पर मंहगाई का बोझ…

बता दें कि आज के दौरे में सभी अभिभावक अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा देना चाहते हैं. मॉडर्न शिक्षा के दौरे में खर्च का बोझ इतना बढ़ गया है कि बच्चों को आगे कैसे पढ़ाएं, ये सोच-सोच कर महंगाई की मार झेल रहे अभिभावक परेशान हैं. एक तो स्कूलों में महंगे कोर्स और ऊपर से स्कूलों में हर साल हो रही फीस वृद्धि और फिर प्रत्येक वर्ष कोर्स की बदलती किताबों से अभिभावक परेशान हैं. आजकल जिधर देखों उधर ही किताबों की दुकानों पर कापी किताब के अलग-अलग सेट लगे दिख रहे हैं.

बुक स्टालों से विद्यालय का कमीशन…

बता दें कि आज के समय में सभी विद्यालय के संचालक कमाई के चलते अधिकतर स्कूलों से बुक सेंटर्स की सेटिंग है जिससे अभिभावकों से मनमाने पूरे प्रिंट रेट के दाम वसूल किए जा रहे हैं. स्कूलों की कॉपी किताबें ही नही ड्रेस, टाई-बेल्ट बैग, जूते-मोजे भी विद्यालयों की सेटिंग सहमति वाले दुकानों पर ही मिल रहे हैं. एक विद्यालय की किताबें उसी कक्षाओं की दूसरी दुकानों पर नही मिल रही है. कांवेंट स्कूलों की शिक्षा दिन ब दिन महंगी होने का सबसे बड़ा कारण यही है.

NCERT के बावजूद निजी प्रकाशन पर फोकस…

गौरतलब है कि सरकार के द्वारा NCERT की किताबें विद्यालयों में अनिवार्य की गई हैं, लेकिन अब भी अधिकतर स्कूलों में निजी प्रकाशकों की पुस्तकें ही चलाई जा रही हैं. विद्यालय संचालकों ने पुस्तक विक्रेताओं से सेटिंग कर रखी है. स्कूल से बताई गई दुकान पर जाने के बाद अभिभावक को केवल स्कूल व क्लास बताना पड़ता है. कापी किताबों से लेकर ड्रेस, टाई-बेल्ट, बैग, जूते, मोजे तक उपलब्ध कराए जाते हैं, जिसका पूरा प्रिंट रेट लिया जाता है. एक ओर इस बढ़ती महंगाई में जनता के लिए घर चलाना पहले ही मुश्किल था, उस पर अब बच्चों की शिक्षा महंगी होने से मध्यम वर्ग की कमर ही टूट कर रह गई है.

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सरकारों के वादे अधूरे…

हर सरकार बनती है, वादे करती है, नियम कायदे बनाती है पर अंत में सरकारें सिर्फ एक-दूसरे को कोसती रह जाती हैं. कोई कहता है पुराने दिन ही भले थे, कोई अच्छे दिन की ढांढस बंधाता रह जाता है. लेकिन महंगी होती शिक्षा की ये समस्या जस की तस मुंह बाय़े खड़ी रहती है. ऐसे में फिल्म पीपली लाइव का ये गाना लोगों की जुबान पर बरबस आ ही जा रहा हैं कि “सखी सैंया तो ख़ूबहीं कमात है महंगाई डायन खाए जात है.

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